आदत

इस कहानी का किसी जीवित या मृत या जाती धर्म या सम्प्रदाय या क्षेत्र से कोई संबंध नहीं है। कहानी के सिर्फ पात्र है। ये कहानी सिर्फ शिक्षा या मनोरंजन के लिए बनाया गया है।

 मनुष्य या जीव जंतु या पक्षी इस प्रकृति का अनमोल रत्न है। सभी का इस प्रकृति में अपना अहम रोल है। सभी अपना अपना रोल अपनी अपनी क्षमता के अनुसार अपना अपना किरदार हे हिसाब से इस रंगमंच रूपी जीवन में अपनी अपनी कला का प्रदर्शन का रहा है। सभी एक दूसरे के कला की प्रदर्शन का सभी मिलजुलकर आनंद उठा रहे है।

इस रंगमंच रूपी जीवन में जो कलाकार जिस रोल को अदा करता है कलाकार उस किरदार के हिसाब से अपने आप को ढाल लेता है। फिर वो उसकी दिनचर्या बन जाता है। वहीं उसकी आजीविका का साधन बन जाता है।

जीवन में मनुष्य अपना जीवकोपार्जन करने के लिए तरह तरह का काम शुरू करता है। किसी को जल्दी सफलता हासिल हो जाता है तो किसी को बहुत समय लगता है या किसी की जीवन भर प्रयास ही करते रहना पड़ता है।

मानव समाज कर्म प्रधान है। कर्म के हिसाब से या अपनी क्षमता के हिसाब से कोई रोजगार शुरू करता है तो कोई सेवा में जाता है तो कोई रंगमंच पर अपना काम की शुरुआत करता है।

पर प्रकृति ने पशु या पक्षी को इतना मौका नहीं दिया है। उनके पास बहुत कम विकल्प उपलब्ध है। अतः पशु या पक्षी की दिनचर्या या जीवकोपार्जन का साधन सीमित है और वो लोग एक निश्चित दिनचर्या का पालन करते है। उनकी आदतें लगभग सामान्य ही रहता है कामों वेश। हा, पर उनके परिवेश में अंतर होने से उनकी भी आदतें और विचार व्यवहार में अंतर आता है।

मनुष्य के पास हजारों विकल्प है अपने जीवकोपार्जन का। मनुष्य उन हजारों विकल्प में से किसी एक को अपना जीवकोपार्जन का साधन चुनता है और उसमें ढल जाता है। वो काम ही उसकी आदत बन जाता है। बैंक में काम करने वाले को पैसों से तो सुरक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले को अस्त्र शस्त्र से तो इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में कम करने वाले को उसके संयंत्र से वगैरह वगैरह से लगाव हो जाता है और पूरी निष्ठा से अपना काम करता है।

एक पुरानी कहावत है कि ये अपनी आदत से लाचार है।

आदि आपका काम की आदत सर चढ़कर बोलने लगे तो आप समझ जाए कि आप आदत नाम की बीमारी से ग्रसित हो गए है।

यदि आदमी समूह में या समाज में कही बैठा है किसी मुद्दे पर चर्चा हो रही है और अगला दूसरा मुद्दा पर बोलना शुरू कर दे तो आप समझ जाए कि वो आदमी पूरी तरह से आदत नाम की बीमारी से ग्रसित है।

कोई आदमी आपके साथ काफी देर से बैठकर बाते कर रहा है उसमें कभी कभी अपनी दिनचर्या के बारे में बोलता है तो समझिए कि वो आदमी आदत नाम की बीमारी से कम ग्रसित है।

अगला प्रकार होता है कि जब तक आप उससे उसकी दिनचर्या के बारे में आप नहीं पूछेंगे तब तक वो आपको अपनी दिनचर्या नहीं बताएगा। ऐसा आदमी आदत नामक एक नई तरह की बीमारी से ग्रसित नहीं है। स्वास्थ्य है।

अब कहानी की तरफ चलते है। ये सिर्फ मनोरंजन के लिए है। किसी के काम को उपहास बनाने के लिए नहीं है। माफ करे।

एक रेलवे कर्मचारी है। वो अपने जीवन में बहुत ही ईमानदारी और मेहनत से काम किए है और इस दौरान बच्चों की शिक्षा शादी विवाह सब कम करके अपने आप को स्वतंत्र कर लिए है। एक आलीशान घर भी बनवा लिए है। अब प्रत्येक महीने पेंशन भी आना शुरू हो गया है। इनका नाम है झामलाल।

आमतौर पर अपनी सेवा समाप्त होते होते बूढ़े जैसे दिखने लगते है या किसी न किसी बीमारी का शिकार हो जाते है। पर झामलाल जी बिल्कुल स्वास्थ और तंदुरुस्त है। ये लंबे चौड़े कद काठी के भी है।

कुछ महीनों के बाद झामलाल जी धर्मपत्नी उनसे कहती है कि मुझे डॉक्टर के पास जाना है कुछ चेकअप करना है। इस पर झामलाल जी मान जाते है।

शाम को दोनों पति और पत्नी डॉक्टर के पास जाते है। झामलाल जी डॉक्टर के केबिन की तरफ इशारा करते हुए कहते है कि जाइए डॉक्टर साहब से। इसपर उनकी पत्नी ने भोली सूरत बनाते हुए कहती है कि दरअसल के मै आपको दिखाने आई हु डॉक्टर साहब से। ये तो बहाना था। पति और पत्नी दोनों डॉक्टर साहब के पास जाते है।

अब झामलाल जी की पत्नी डॉक्टर साहब को उनकी बीमारी की पुलिंदा बताना शुरू करती है। उसकी एक झलक देखते है।

डॉक्टर साहब मेरे पति पिछले 35 साल से टीटी का काम कर रहे थे। सप्ताह में कभी एक दिन दो कभी दो दिन घर आते थे बाकी दिन घर के बाहर रहकर रेल यात्रा के वातावरण को सहन कर रहे थे

रिटायरमेंट के बाद घर पर आकर पूरे घर को रेलवे का वातावरण में बदल दिए है। चार फीट चौड़े पलंग को काटकर दो फीट का कर दिया है। अटैची को चेन से बांध कर ताला लगाते है । तकिए में हवा भरते है। चप्पलें अपने सिरहाने रखते है। कमरे का ट्यूब लाइट बाहर लगवा दिए है और उसकी जगह जीरो वाट का बल्ब लगा दिए है ।

टेप रिकॉर्डर से फिल्मी गानों का कैसेट बाहर निकाल दिए है। अब उसकी जगह रेलवे अनाउंसमेंट, गाड़ी चलने की आवाज, घंटी की घनघनाहट, गरम चाय गर्म समोसा इडली बड़ा कटलेट इत्यादि की कर्कश आवाज की कैसेट लगा कर सुनते है।

डॉक्टर साहब मै तो रात भर जगती हु और ये आराम से सोते है। पता नहीं कैसी जिंदगी जीते है। कप में चाय दो तो कुल्हड़ में पीते है।

एक रात मेहमान आए तो इन्हें जगाया तो इन्होंने करवट बदली और मेरे हाथ में एक टिकट और सौ रुपया पकड़ा दिया।

मेरे पिताजी दहेज में सोफा सेट दिए थे उसे ये आधे दामों ने बेच आए और उसके बदले में सीमेंट की दो बेंच खरीद कर ले आए।

बेडरूम ने बहुत ही सुंदर पेंटिंग्स थी उसे हटाकर भारतीय रेल आपकी संपति है, जंजीर खींचना मना है। लिखवा दिया है।

एक रात इनके पास आकर मै बैठी तो इन्होंने पांव मोरे और बोले इसे आराम से बैठिए।

डॉक्टर साहब आपसे बताने शर्म आती है पर आपसे क्या छिपना। इन्होंने मुझसे पूछा कि बहन जी आपको कहा जाना है।

डाइनिंग टेबल पर खाने से मना करते है। पुरिया मिठाई के डब्बे में और शब्जी प्लास्टिक में भरते है।

एक रात मेरे पिताजी और भाई लोग आए। इनकी हरकत दिख बहुत ही शर्माए। इनकी अटैची थोड़ी सी खिश्काए होंगे तो ये गुस्से से बोलते है कि जंजीर खींचू। चोरी करते शर्म नहीं आती है।

सुबह सुबह बूढ़े पिताजी उठ कर नहाने जा रहे थे । बालकनी में खड़की से हाथ मारकर इन्हें जगाया तो ये बोलते है कि इस तरह मत जगाया करो । यह कुछ नहीं मिलेगा। बाबा आगे जाओ, पिताजी आगे गए तो वापस बुलाया और उन्हें एक रुपया का सिक्का देकर पूछा कौन सा स्टेशन आया।

 डॉक्टर साहब इनका अजीब सा कारनामा है। रोज एक से बढ़कर एक हंगामा है। अभी कूड़े वाले के पास से एक टेबल फैन लेकर आ गए है। छत पर लटके अच्छी खासी सेलिंग फैन को उतारकर उसकी जगह टेबल फैन लटकाया है। उसे चालू करने का तरीका भी विचित्र अपने है। अपने पॉकेट से कंघी निकर उसे घुमाते है।

सुबह मंजन ब्रश साबुन लेकर बाथरूम जाते है । मै मना करती हु की बेटा गया है तो वो वही लाइन लगाते है। समझाती हु कि आ जाए तो रोकते है और हर दो मिनट पर बाथरूम का दरवाजा खटखटाते है।

इन्होंने पूरे घर को सिर पर उठा लिया है घर को वेटिंग रूम और बेडरूम को ट्रेन का कंपार्टमेंट बना दिया है।

डॉक्टर साहब मेरी बाकी की जिंदगी इनके साथ कैसे कटेगी मैं यही सोचकर घबरा रही हु।

शिक्षा:-

आप जो भी कम करते हो चाहे सेवा में हो या व्यवसाय में हो अपना काम अपने कार्यस्थल पर ही खत्म कर आए। उस जगह की आदत अपने परिवार पर थोपने की कोशिश न करे। घर को घर की तरह ही रहने दे । हर घर का अपना अलग अलग रीति रिवाज होता है अपनी अलग पहचान होता है उसे उसी तरह से चलने दे।

THANKS.

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