इस कहानी का किसी जीवित या मृत या जाती धर्म या सम्प्रदाय या क्षेत्र से कोई संबंध नहीं है। कहानी के सिर्फ पात्र है। ये कहानी सिर्फ शिक्षा या मनोरंजन के लिए बनाया गया है।
घमंड चाहे किसी भी चीज का हो ज्ञान का हो, बुद्धि का हो या पैसे का हो ये मानव के लिए हितकारी नहीं होता है। ये उसका विनाश का कारण बनता है। यही उसे विनाश कर देता है।
किसी के पास अत्यधिक ज्ञान हो या अत्यधिक धन हो या अन्न हो उसका उपयोग हमेशा जन कल्याण में करना चाहिए। जिस तरह से वृक्ष पर फल लगने के बाद पेड़ झुक जाता है और मानव को शायद ये कहने की कोशिश कर रहा है कि अब मैं झुककर मानव को मेरा फल प्राप्त करने में आसानी होगी। पेड़ जन कल्याणकारी काम करता है अपना फल मानव या पशु पक्षी के लिए।
एक पथिक है। गर्मी का दिन है। पैदल कही जा रहा था। रास्ता बहुत ही खराब था। पथिक अपने गंतव्य स्थान की ओर चले जा रहा था। पथिक को बहुत जोर की प्यास लगती है। अब वो पानी की तलाश में लग जाता है। कुछ दूरी पर एक गांव दिखाई देता है। पथिक वह पहुंचता है। एक माता जी कुएं से पानी निकाल रही थी। पथिक माता जी से पानी पिलाने को कहता है।
माता जी पूछती है कि तुम कौन हो। अपना परिचय दो। मैं तुम्हे अवश्य पानी पीला दूंगी।
पथिक कहता है कि मैं पथिक हु। कृपया पानी पीला दे।
माता जी कहती है – तुम पथिक कैसे हो सकते हो। पथिक तो सिर्फ दो ही है सूर्य और चन्द्रमा जो निरन्तर चलते रहते है जो रुकते नहीं है। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।
पथिक कहता है – मैं मेहमान हु। कृपया पानी पीला दीजिए।
माता जी कहती है – तुम मेहमान कैसे हो सकते हो। इस संसार में दो ही मेहमान है । पहला धन और दूसरा यौवन जिसे जाने में देर नहीं लगता है। तुम सत्य बताओ कौन हो।
पथिक बहुत ही परेशान हो गया था और निरुत्तर था। पर अपने आप को बहुत बड़ा विद्वान समझता था।इसकी विद्या का प्रसार चारों तरफ हो रखा था। अतः इसे अपनी विद्वता पर घमंड हो रखा था।
पथिक बोलता है – मैं सहनशील हु। माता कृपया कर अब तो पानी पीला दीजिए।
माता जी कहती है – नहीं, सहनशील तो दो ही है। पहली धरती जो पापी और पुण्यात्मा सबकी बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने के बाद भी अन्न देती है। दूसरी पेड़, जिसपर पत्थर मारे तो भी वो मीठे फल देता है। सत्य बताओ तुम कौन हो।
तर्क वितर्क से पथिक मूर्छा की स्थिति में आ गया और बोला मै हठी हु।
माता जी बोलती है – तुम असत्य बोल रहे हो। हठी तो दो ही है। पहला नख और दूसरा केश। जितना काटो उतना बढ़ता है। सत्य बताओ तुम कौन हो।
पथिक पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुका था।
पथिक कहता है – तो मैं मूर्ख हु।
माता जी कहती है – नहीं तुम फिर असत्य बोल रहे हो। मूर्ख तो सिर्फ दो ही है। पहला जो बिना योग्यता के सब पर शासन करता है। दूसरा वो दरबारी जो राजा को प्रसन्न करने के लिए तर्क कुतर्क दे कर अपनी बात सही करने की कोशिश करता है।
अब पथिक कुछ और ना बोलने की स्थिति में था। माता जी पैर पकड़कर पानी की अचना करने लगा।
माता जी कहती है – उठो पथिक। पथिक देखता है कि माता सरस्वती साक्षात प्रगट हो गई है।पथिक माता से अपनी गलती स्वीकार करता है और क्षमा मांगता है।
माता जी कहती है- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार। तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और सम्मान को ही अपनी उपलब्धि मन बैठा। इसलिए तुम्हारा घमंड तोड़ने के लिए ये सब करना पड़ा।
पथिक को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पी कर आगे चला गया।
शिक्षा – विद्वता पर कभी घमंड न करे यही घमंड विद्या को नष्ट कर देता है।
अन्ना के कन्न को और मिले हुए क्षण को कभी भी व्यर्थ न जाने दे।
कहानी कैसी लगी। अपना विचार कमेंट में जाकर आवश्यक करे।
