अस्वीकरण (DISCLAIMER):-
यह वेबसाइट केवल शैक्षिक और सूचना प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई है। “मौर्य काल (322 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व): पीएसयू परीक्षा हेतु प्रश्नोत्तर सहित विस्तृत अध्ययन” लेख में दी गई जानकारी विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों, शोधपत्रों और सामान्य ज्ञान पर आधारित है।
इस लेख में प्रस्तुत सामग्री पूर्णतः सत्यापित या त्रुटि-रहित होने की गारंटी नहीं दी जा सकती। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे परीक्षा अध्ययन या ऐतिहासिक संदर्भों के लिए अतिरिक्त प्रमाणिक स्रोतों से जानकारी प्राप्त करें।
इस वेबसाइट पर दी गई जानकारी से यदि किसी भी प्रकार की असुविधा, हानि या नुकसान होता है, तो इसकी कोई ज़िम्मेदारी वेबसाइट के मालिक या लेखक की नहीं होगी।
इस लेख में उपयोग किए गए चित्र, उद्धरण और संदर्भ केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए हैं और इनका किसी भी प्रकार का व्यावसायिक उपयोग नहीं किया गया है।
यदि किसी भी सामग्री पर कॉपीराइट या अन्य कोई आपत्ति हो, तो कृपया हमें सूचित करें, हम उचित सुधार करने के लिए तत्पर रहेंगे।
इस वेबसाइट का उपयोग करने का अर्थ है कि आप उपरोक्त शर्तों से सहमत हैं।
मौर्य काल (322 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व): एक विस्तृत अध्ययन:-
मौर्य साम्राज्य का परिचय:-
मौर्य साम्राज्य प्राचीन भारत का एक प्रमुख और शक्तिशाली साम्राज्य था, जिसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग 321 ईसा पूर्व में की थी। यह साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप का पहला बड़ा साम्राज्य था, जिसने उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक विशाल भूभाग पर शासन किया।
सम्राट अशोक और अशोक चक्र: आधुनिक भारत में महत्व;-
सम्राट अशोक: एक महान शासक:-
सम्राट अशोक (268 ईसा पूर्व – 232 ईसा पूर्व) मौर्य वंश के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली शासकों में से एक थे। उन्होंने अपने शासनकाल में न केवल भारत को एक विशाल साम्राज्य में परिवर्तित किया बल्कि अहिंसा और धर्म की नीति को अपनाकर अपने राज्य को एक नैतिक शक्ति भी दी। अशोक का राज्य पूरे भारतीय उपमहाद्वीप तक फैला हुआ था, जिसमें वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और अफगानिस्तान का एक बड़ा भाग शामिल था।
कलिंग युद्ध और धम्म नीति:-
अशोक के जीवन में सबसे बड़ा परिवर्तन कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) के बाद आया। इस युद्ध में हुई भीषण तबाही और हजारों लोगों की मृत्यु से अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ और उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाकर अहिंसा और शांति का मार्ग चुना। उन्होंने अपने शासनकाल में अनेक स्तंभों और शिलालेखों के माध्यम से धम्म (धर्म) नीति का प्रचार किया और समाज में नैतिकता, सहिष्णुता और करुणा को बढ़ावा दिया।
अशोक चक्र: इसका महत्व और प्रतीकात्मकता
अशोक चक्र सम्राट अशोक की धम्म नीति और उनके आदर्शों का प्रतीक है। यह 24 तीलियों वाला चक्र है, जो कर्म, जीवन और समय के निरंतर प्रवाह का संकेत देता है। यह बौद्ध धर्म में ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ का भी प्रतीक है, जिसका अर्थ है सत्य, धर्म और नीति की ओर अग्रसर होना।
आधुनिक भारत में अशोक चक्र का महत्व:-
अशोक चक्र आज भी भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बना हुआ है। इसे कई राष्ट्रीय प्रतीकों में स्थान मिला है:
राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र:-
22 जुलाई 1947 को भारतीय संविधान सभा ने तिरंगे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया।
तिरंगे के केंद्र में स्थित गहरे नीले रंग का अशोक चक्र भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता, न्याय और प्रगति का प्रतीक है।
यह 24 तीलियों के साथ निरंतर विकास, सच्चाई और न्याय की भावना को दर्शाता है।
भारतीय मुद्रा और आधिकारिक प्रतीक:-
भारतीय रुपये के नोटों और सिक्कों पर अशोक स्तंभ का चित्र अंकित किया जाता है।
सरकारी दस्तावेजों, पासपोर्ट और अन्य आधिकारिक प्रतीकों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
अशोक स्तंभ राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में:-
सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ के शीर्ष भाग को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है।
इसमें चार सिंहों को दर्शाया गया है, जो शक्ति, साहस, आत्मविश्वास और गरिमा का प्रतीक हैं।
अशोक चक्र पुरस्कार:-
भारत में शांति और राष्ट्रीय सेवा के क्षेत्र में असाधारण योगदान देने वालों को ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया जाता है। यह भारत का सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है।
अशोक चक्र का व्यापक महत्व:-
अशोक चक्र केवल एक ऐतिहासिक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और विचारधारा का एक अभिन्न अंग है। यह हमें सिखाता है कि समाज में शांति, सहिष्णुता और नैतिकता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह न केवल भारत के अतीत का गौरवशाली प्रतीक है बल्कि यह आधुनिक भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और विकास की दिशा में बढ़ते कदमों का भी संकेत देता है।
निष्कर्ष:-
सम्राट अशोक और अशोक चक्र भारत के इतिहास और संस्कृति के दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। अशोक का धम्म नीति और उनकी शिक्षा आज भी प्रासंगिक हैं और हमें नैतिकता, अहिंसा और सत्य की राह पर चलने की प्रेरणा देती हैं। अशोक चक्र, जिसे आज हम अपने राष्ट्रीय ध्वज में देखते हैं, हमें निरंतर कर्म करने, सच्चाई के मार्ग पर चलने और भारत को एक सशक्त और विकसित राष्ट्र बनाने की प्रेरणा देता है।
कौटिल्य और मौर्य साम्राज्य का संबंध:-
भारतीय इतिहास में मौर्य साम्राज्य का उत्थान एक महत्वपूर्ण घटना थी और इसके पीछे आचार्य कौटिल्य (चाणक्य) का बड़ा योगदान था। कौटिल्य एक महान राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और कूटनीतिज्ञ थे, जिन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को एक शक्तिशाली शासक बनाने में अहम भूमिका निभाई। उनकी नीतियों और योजनाओं के कारण ही मौर्य साम्राज्य एक संगठित और सशक्त प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित कर सका।
कौटिल्य का परिचय:-
आचार्य कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, एक ब्राह्मण विद्वान थे। वे तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षक थे और राजनीति, अर्थशास्त्र एवं कूटनीति के ज्ञाता माने जाते थे। उन्होंने अपनी नीतियों को “अर्थशास्त्र“ नामक ग्रंथ में संकलित किया, जो आज भी राजनीति और प्रशासन में प्रासंगिक माना जाता है।
कौटिल्य और चंद्रगुप्त मौर्य का संबंध:-
कौटिल्य और चंद्रगुप्त मौर्य का संबंध गुरु-शिष्य जैसा था। उन्होंने नंद वंश के अत्याचारी शासन को समाप्त कर चंद्रगुप्त मौर्य को भारत का सम्राट बनाने की योजना बनाई। कौटिल्य ने चंद्रगुप्त को राजनीतिक और सैन्य शिक्षा दी और उसे एक योग्य शासक बनने के लिए तैयार किया। उनकी नीतियों के परिणामस्वरूप मौर्य साम्राज्य की नींव पड़ी और एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था विकसित हुई।
कौटिल्य की प्रमुख नीतियाँ और मौर्य साम्राज्य:-
केंद्रीकृत शासन प्रणाली:-
कौटिल्य ने एक मजबूत केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था बनाई, जिससे मौर्य साम्राज्य शक्तिशाली बन सका।
गुप्तचर प्रणाली:-
उन्होंने एक सशक्त गुप्तचर व्यवस्था स्थापित की, जिससे राजा को हर क्षेत्र की जानकारी रहती थी।
राजस्व प्रणाली:-
कौटिल्य ने कर प्रणाली को सुव्यवस्थित किया और कृषि, व्यापार तथा उद्योगों से कर वसूली की नीति बनाई।
सैन्य संगठन:-
मौर्य सेना को संगठित और सशक्त बनाने में कौटिल्य की नीतियाँ महत्वपूर्ण थीं।
धार्मिक सहिष्णुता:-
कौटिल्य की नीति थी कि धर्म को राजनीति से अलग रखा जाए, जिससे साम्राज्य में स्थिरता बनी रहे।
कौटिल्य की नीतियों से जुड़ी लोकोक्तियाँ:-
“नीति से ही राजा बलवान बनता है।“ – कौटिल्य ने सिखाया कि एक शासक की असली शक्ति उसकी नीति और कूटनीति में निहित होती है।
“समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता।“ – यह लोकोक्ति कौटिल्य के धैर्य और योजनाबद्ध रणनीति के महत्व को दर्शाती है।
“शत्रु की दुर्बलता को पहचानना ही सबसे बड़ी ताकत है।“ – कौटिल्य ने चंद्रगुप्त को सिखाया कि शत्रु की कमजोरियों का सही उपयोग ही विजय की कुंजी है।
“विद्या ही व्यक्ति की सबसे बड़ी पूंजी होती है।“ – कौटिल्य का मानना था कि ज्ञान से बड़ा कोई धन नहीं।
“जिसका गुप्तचर बलवान होता है, वही राजा शक्तिशाली होता है।“ – मौर्य शासन में गुप्तचरों की महत्वपूर्ण भूमिका थी, जो कौटिल्य की रणनीतियों का हिस्सा था।
निष्कर्ष:-
कौटिल्य और मौर्य साम्राज्य का संबंध केवल एक गुरु-शिष्य के रिश्ते तक सीमित नहीं था, बल्कि यह भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण धुरी थी। उनकी नीतियों ने न केवल मौर्य साम्राज्य को शक्तिशाली बनाया, बल्कि आने वाले युगों तक प्रशासन और राजनीति को भी प्रभावित किया। उनके विचार और रणनीतियाँ आज भी प्रासंगिक हैं और नीति-निर्माताओं के लिए प्रेरणादायक हैं।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र: मौर्यकालीन आर्थिक संरचना:-
भूमिका:-
कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, प्राचीन भारत के एक महान अर्थशास्त्री, राजनीतिक विचारक और कूटनीतिज्ञ थे। उन्होंने “अर्थशास्त्र” नामक ग्रंथ की रचना की, जो मौर्य साम्राज्य के शासन और आर्थिक नीति का मूल स्तंभ माना जाता है। उनके विचार आज भी प्रशासन, अर्थशास्त्र और राजनीति में प्रासंगिक हैं।
मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ:-
मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था कृषि, व्यापार, कर-व्यवस्था और उद्योगों पर आधारित थी। इस काल में अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने और उसे सुचारू रूप से संचालित करने के लिए कई नीतियाँ अपनाई गईं।

कृषि और सिंचाई:-
कृषि मौर्यकाल की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार थी।
राज्य सिंचाई व्यवस्था का विशेष ध्यान रखता था।
किसानों को करों में रियायतें दी जाती थीं और भूमि सुधार की नीति लागू की गई थी।
व्यापार और वाणिज्य:-
आंतरिक और बाहरी व्यापार को बढ़ावा दिया गया।
सड़कों और जलमार्गों का निर्माण किया गया ताकि व्यापार को सुगम बनाया जा सके।
विदेशी व्यापार विशेष रूप से यूनान, रोम और चीन के साथ विकसित हुआ।
कर प्रणाली:-
अर्थशास्त्र में कराधान को विशेष महत्व दिया गया।
विभिन्न प्रकार के कर जैसे कृषि कर, व्यापार कर, उत्पादन कर और आयकर वसूले जाते थे।
कर संग्रहण की प्रभावी व्यवस्था थी और राजकोष को मजबूत बनाए रखने पर ध्यान दिया जाता था।
उद्योग और कारीगरी:-
हथकरघा, धातु-निर्माण, बर्तन-निर्माण और अन्य उद्योग विकसित किए गए।
राजकीय नियंत्रण में लोहा, तांबा, रेशम और अन्य उत्पादों का उत्पादन किया जाता था।
न्याय और प्रशासन:-
अर्थशास्त्र में प्रशासनिक संरचना को विस्तृत रूप से बताया गया है।
अपराध और दंड व्यवस्था को व्यवस्थित किया गया था जिससे आर्थिक स्थिरता बनी रहे।
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कड़े नियम बनाए गए थे।
कौटिल्य के आर्थिक विचारों की प्रासंगिकता:-
कौटिल्य का अर्थशास्त्र केवल प्राचीन भारत तक सीमित नहीं था, बल्कि आज भी यह प्रशासनिक नीति, वित्तीय प्रबंधन और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
कराधान: उन्होंने कर प्रणाली को संतुलित और प्रभावी बनाने पर जोर दिया।
व्यापार नीति: राज्य की भागीदारी और विदेशी व्यापार नीति को नियंत्रित करने के विचार आज भी आर्थिक नीतियों में दिखते हैं।
प्रबंधन और प्रशासन: कौटिल्य के सिद्धांत आधुनिक कॉर्पोरेट प्रशासन और आर्थिक योजनाओं में देखे जा सकते हैं।
निष्कर्ष:-
कौटिल्य का अर्थशास्त्र मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था का एक विस्तृत दस्तावेज है, जो प्रशासन, अर्थशास्त्र और राजनीति के लिए मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। उनके विचार न केवल तत्कालीन भारत में बल्कि आधुनिक युग में भी प्रभावी हैं। उनके द्वारा प्रतिपादित आर्थिक और प्रशासनिक नीतियाँ किसी भी राज्य की समृद्धि और सुदृढ़ता के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं।
मौर्य साम्राज्य की स्थापना:-
मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी, जिन्होंने महान रणनीतिकार चाणक्य (कौटिल्य) के सहयोग से नंद वंश का अंत किया और एक संगठित और सशक्त शासन प्रणाली स्थापित की।
प्रमुख मौर्य शासक:-
चंद्रगुप्त मौर्य (322 ईसा पूर्व – 298 ईसा पूर्व):-
चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश को पराजित कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) उनके प्रमुख सलाहकार थे, जिन्होंने “अर्थशास्त्र” की रचना की।
यूनानी शासक सेल्यूकस प्रथम से युद्ध कर उसे पराजित किया और एक मजबूत साम्राज्य की नींव रखी।
उन्होंने एक संगठित प्रशासनिक तंत्र की स्थापना की और कर संग्रह प्रणाली को मजबूत किया।
अपने अंतिम दिनों में चंद्रगुप्त ने जैन धर्म अपनाया और कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में संन्यास लिया।
बिंदुसार (298 ईसा पूर्व – 273 ईसा पूर्व):-
चंद्रगुप्त के पुत्र बिंदुसार ने साम्राज्य को और विस्तार दिया।
उन्होंने दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों को अपने अधीन किया।
बिंदुसार को “अमित्रघात” (शत्रुओं का संहार करने वाला) भी कहा जाता था।
उन्होंने ग्रीक शासकों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखे।
उनके शासनकाल में साम्राज्य की आंतरिक शांति बनी रही।
अशोक महान (273 ईसा पूर्व – 232 ईसा पूर्व):-
अशोक मौर्य वंश का सबसे प्रतापी शासक था।
उसने अपने शासनकाल के प्रारंभिक वर्षों में कई युद्ध किए और साम्राज्य को विस्तारित किया।
कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और अहिंसा का प्रचार किया।
अशोक ने धम्म नीति को अपनाया और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपने दूतों को श्रीलंका, मध्य एशिया, मिस्र आदि देशों में भेजा।
उनके शासनकाल में सड़कें, कुएं, धर्मशालाएं और अस्पतालों का निर्माण किया गया।
उन्होंने कई स्तंभों और शिलालेखों का निर्माण कराया, जिनमें उनकी नीति और आदेशों का उल्लेख किया गया।
अशोक के शासनकाल को भारत के स्वर्णिम युगों में गिना जाता है।
अशोक महान: भारतीय इतिहास के महान सम्राट:-
अशोक महान, जिन्हें सम्राट अशोक या अशोक विक्रमी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास के सबसे महान और प्रभावशाली सम्राटों में से एक माने जाते हैं। उनका शासनकाल लगभग 273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक रहा और उनका साम्राज्य प्राचीन भारत के अधिकांश हिस्सों में फैला हुआ था। अशोक का नाम न केवल उनके सैन्य अभियानों के लिए बल्कि उनके धम्म (धर्म) के प्रति समर्पण और शांतिपूर्ण शासन के लिए भी प्रसिद्ध है। उनके शासन के दौरान भारत में महत्वपूर्ण सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक बदलाव हुए, जिन्हें आज भी याद किया जाता है।
अशोक का जन्म और प्रारंभिक जीवन:-
अशोक का जन्म 273 ईसा पूर्व में मौर्य वंश के सम्राट बिंदुसार और उनकी पत्नी के यहां हुआ था। वह मौर्य साम्राज्य के तीसरे सम्राट थे। अशोक के प्रारंभिक जीवन के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि वे एक साहसी और जुझारू योद्धा थे। उनके बचपन में ही उन्होंने कई युद्धों में भाग लिया और एक कुशल सैनिक के रूप में ख्याति प्राप्त की।
अशोक का साम्राज्य और विजय:-
अशोक ने अपने पिता बिंदुसार के बाद मौर्य साम्राज्य की गद्दी संभाली। उनका साम्राज्य बहुत बड़ा था और इसमें वर्तमान भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांगलादेश, और अफगानिस्तान के कुछ हिस्से शामिल थे। अशोक ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए कई युद्धों का संचालन किया। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण युद्ध “कलिंग युद्ध” था, जो 261 ईसा पूर्व में हुआ। इस युद्ध के दौरान अशोक ने कलिंग (वर्तमान ओडिशा) पर विजय प्राप्त की, लेकिन इस युद्ध में बड़ी संख्या में जानमाल की हानि हुई। इस युद्ध की भीषणता और उसके परिणाम ने अशोक के जीवन को गहरे प्रभाव डाले और उन्हें अहिंसा और धर्म की ओर मोड़ दिया।
धम्म की ओर रुझान:-
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने अपने शासन में बड़े बदलाव किए। युद्ध की भयावहता और उसमें हुई मौतों के बाद अशोक ने हिंसा से तौबा कर लिया और अहिंसा को अपने शासन का प्रमुख सिद्धांत बना लिया। उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया और इसके सिद्धांतों को फैलाने का कार्य शुरू किया। उन्होंने राज्य के सभी हिस्सों में बौद्ध धर्म के संदेश को फैलाने के लिए धार्मिक शिलालेखों को खुदवाया, जो आज भी कई स्थानों पर पाए जाते हैं।
अशोक ने धम्म को केवल एक धार्मिक मार्गदर्शन के रूप में नहीं बल्कि एक सामाजिक और नैतिक कोड के रूप में स्थापित किया। उन्होंने अपने शिलालेखों में लोगों को नैतिकता, सहिष्णुता, और भाईचारे का संदेश दिया। वह यह चाहते थे कि लोग दूसरों के प्रति दया, सम्मान और सहानुभूति दिखाएं।
अशोक के शासन के प्रमुख कार्य:-
अशोक ने अपने शासनकाल के दौरान कई सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार किए। उन्होंने स्वास्थ्य, शिक्षा, और प्रशासनिक सुधारों के लिए कई योजनाएं बनाई। उनके शासन में शांति और समृद्धि आई, और उन्होंने जनकल्याण के लिए कई कदम उठाए, जैसे सड़कों का निर्माण, अस्पतालों की स्थापना, और पेड़-पौधों की देखभाल के लिए प्रोत्साहन दिया।
अशोक की धरोहर:-
अशोक का योगदान केवल उनके शासनकाल तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म पर जो प्रभाव छोड़ा, वह आज भी जीवित है। उनके द्वारा अपनाया गया बौद्ध धर्म न केवल भारत में बल्कि पूरे एशिया में फैल गया। उनके द्वारा लिखवाए गए शिलालेख आज भी भारतीय इतिहास और संस्कृति के महत्वपूर्ण स्त्रोत माने जाते हैं। उनका योगदान आज भी भारतीय राजनीति, समाज और संस्कृति में प्रभावशाली है।
अशोक महान के शासन और उनके सिद्धांतों का अध्ययन आज भी किया जाता है और उनकी छवि एक न्यायप्रिय, शांतिपूर्ण और प्रबुद्ध शासक के रूप में अंकित है। उनके जीवन से यह सिखने को मिलता है कि एक सशक्त शासक केवल युद्ध और शक्ति के माध्यम से नहीं, बल्कि नैतिकता, अहिंसा और धर्म के पालन से भी महान बन सकता है।
अशोक महान का नाम भारतीय इतिहास में सदैव अमर रहेगा।
दशरथ मौर्य (232 ईसा पूर्व – 224 ईसा पूर्व):-
अशोक के उत्तराधिकारी दशरथ मौर्य थे, जो साम्राज्य को एकजुट रखने में असफल रहे।
उन्होंने बौद्ध धर्म को संरक्षण देना जारी रखा और कई बौद्ध विहारों का निर्माण कराया।
संप्रति मौर्य (224 ईसा पूर्व – 215 ईसा पूर्व):-
संप्रति मौर्य बौद्ध धर्म के साथ-साथ जैन धर्म के भी समर्थक थे।
उनके शासनकाल में जैन धर्म का प्रसार बढ़ा।
वे प्रशासनिक सुधारों में अधिक सफल नहीं रहे, जिससे साम्राज्य कमजोर होता चला गया।
शालिसुक मौर्य (215 ईसा पूर्व – 202 ईसा पूर्व):-
शालिसुक मौर्य के शासनकाल में साम्राज्य की शक्ति और प्रभाव धीरे-धीरे कम होता गया।
प्रशासनिक नियंत्रण कमजोर हो गया और प्रांतों में विद्रोह होने लगे।
बृहद्रथ मौर्य (202 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व):-
बृहद्रथ मौर्य मौर्य साम्राज्य के अंतिम शासक थे।
उनकी कमजोरी का फायदा उठाकर उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में उन्हें मारकर शुंग वंश की स्थापना की।
इस प्रकार मौर्य साम्राज्य का अंत हो गया।
मगस्थनीज की मौर्य साम्राज्य यात्रा: एक ग्रीक राजदूत की दृष्टि
मौर्य साम्राज्य (321–185 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली साम्राज्यों में से एक था। इसके संस्थापक सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य थे और उनके पौत्र, अशोक महान, इसके सबसे प्रसिद्ध शासक बने। इस साम्राज्य के बारे में सबसे मूल्यवान विवरणों में से एक ग्रीक राजदूत मेगस्थनीज के लेखन से प्राप्त होता है, जिन्होंने शासन, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और प्राचीन भारत के दैनिक जीवन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी।
मेगस्थनीज कौन थे?
मेगस्थनीज एक ग्रीक इतिहासकार, राजनयिक और यात्री थे, जिन्हें सेल्यूकस प्रथम निकेटर, जो हेलेनिस्टिक सेल्यूकिड साम्राज्य के शासक थे, द्वारा मौर्य दरबार में राजदूत के रूप में भेजा गया था। उन्होंने कई वर्षों तक पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना), जो मौर्य साम्राज्य की राजधानी थी, में समय बिताया। उनके अवलोकनों को इंडिका नामक पुस्तक में संकलित किया गया था, जो अब विलुप्त हो चुकी है, लेकिन इसके अंश बाद के इतिहासकारों जैसे कि एरियन, स्ट्रैबो और डायोडोरस के लेखों में मिलते हैं।
मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य साम्राज्य:-
मेगस्थनीज के विवरण मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था, समाज, अर्थव्यवस्था और भौगोलिक स्थिति की अनूठी और विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं।
प्रशासन और शासन व्यवस्था
मेगस्थनीज मौर्य साम्राज्य की संगठित और प्रभावी प्रशासनिक प्रणाली से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने एक सुव्यवस्थित सरकार का वर्णन किया, जिसमें कृषि, व्यापार, सैन्य मामलों और जनकल्याण देखने के लिए विभिन्न अधिकारी नियुक्त थे। साम्राज्य को कई प्रांतों में विभाजित किया गया था, जिन्हें स्थानीय शासकों द्वारा नियंत्रित किया जाता था और वे सम्राट के अधीन कार्य करते थे। न्याय व्यवस्था कठोर और सख्त थी।
राजधानी – पाटलिपुत्र
पाटलिपुत्र को एक भव्य शहर बताया गया था, जिसे लकड़ी की दीवारों से घेरा गया था और इसमें विशाल द्वार और बुर्ज थे। यह शहर सुव्यवस्थित सड़कों, उद्यानों और भव्य महलों से सुसज्जित था, जो मौर्यकालीन नगर नियोजन की उन्नत स्थिति को दर्शाता है। यह व्यापार, राजनीति और संस्कृति का केंद्र था।
सैन्य शक्ति
मेगस्थनीज ने मौर्य साम्राज्य की सैन्य शक्ति पर विशेष ध्यान दिया। उनके अनुसार, मौर्य सेना में 600,000 पैदल सैनिक, 30,000 घुड़सवार, 9,000 युद्ध हाथी और बड़ी संख्या में रथ थे। यह विशाल सैन्य बल आंतरिक स्थिरता बनाए रखने और बाहरी आक्रमणों से रक्षा करने में सहायक था।
समाज और वर्ण व्यवस्था
मेगस्थनीज ने भारत में वर्ण व्यवस्था का प्रारंभिक विवरण दिया, जिसमें उन्होंने इसे सात वर्गों में विभाजित किया: दार्शनिक, कृषक, पशुपालक, शिल्पकार, सैनिक, पर्यवेक्षक और परामर्शदाता। उनके अनुसार, भारत में व्यवसायों में कुछ लचीलापन था, जो बाद में कठोर जाति व्यवस्था में परिवर्तित हुआ।
कृषि और अर्थव्यवस्था
मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित थी, जिसमें चावल, गेहूं, जौ और अन्य फसलें उगाई जाती थीं। सिंचाई प्रणाली अत्यधिक विकसित थी और भूमि उपजाऊ थी। व्यापार आंतरिक और बाहरी दोनों स्तरों पर फल-फूल रहा था, और व्यापारी ग्रीस और फारस जैसे दूरस्थ क्षेत्रों तक व्यापार करते थे।
धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू
मेगस्थनीज भारतीय धर्मों और दार्शनिक परंपराओं में गहरी रुचि रखते थे। उन्होंने संन्यासियों को “दार्शनिक” कहकर वर्णित किया, जो साधारण और अनुशासित जीवन जीते थे। हालांकि, उनका हिंदू और बौद्ध धर्म का ज्ञान सीमित था, फिर भी उनके लेखों से यह पता चलता है कि मौर्य समाज धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देता था।
मेगस्थनीज की इंडिका की विरासत
हालाँकि इंडिका अपने मूल रूप में नहीं बची है, फिर भी इसके अंश प्रारंभिक भारतीय इतिहास को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक हैं। उनके लेखनों ने पश्चिमी दुनिया को प्राचीन भारत की संपत्ति, परिष्कृत शासन प्रणाली और संस्कृति की झलक प्रदान की। यद्यपि उनके कुछ विवरण अतिरंजित थे या गलतफहमी से भरे थे, फिर भी वे मूल्यवान ऐतिहासिक संदर्भ के रूप में कार्य करते हैं।
निष्कर्ष:-
मेगस्थनीज की मौर्य साम्राज्य की यात्रा भारत-ग्रीस संबंधों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। उनके विवरणों ने दो महान सभ्यताओं के बीच पुल का कार्य किया और प्राचीन भारत की समृद्धि पर प्रकाश डाला। आज भी, उनके लेखन इतिहासकारों, विद्वानों और यात्रियों के लिए आकर्षण का विषय बने हुए हैं, जो भारतीय इतिहास के इस महान युग को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसे ही और भी रोचक ऐतिहासिक यात्रा लेखों और प्राचीन सभ्यताओं की जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर बने रहें!
मौर्य प्रशासन
मौर्य साम्राज्य (321-185 ईसा पूर्व) प्राचीन भारत का पहला महान साम्राज्य था, जिसका प्रशासनिक ढांचा अत्यंत संगठित और प्रभावी था। इसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी और इसके प्रशासन की नींव कौटिल्य (चाणक्य) के अर्थशास्त्र पर आधारित थी। मौर्य प्रशासन ने भारत में केंद्रीकृत शासन प्रणाली की नींव रखी।
प्रमुख प्रशासनिक संरचना
राजा और केंद्रीय प्रशासन
मौर्य शासन प्रणाली का केंद्र राजा था, जो निरंकुश शासक था। राजा की सहायता के लिए एक मंत्रीपरिषद (मंत्रि परिषद्) होती थी, जिसमें योग्य और अनुभवी व्यक्तियों को शामिल किया जाता था। कौटिल्य के अनुसार, राजा का कर्तव्य न्याय, सुरक्षा और धर्म का पालन कराना था।
मंत्री परिषद
राजा की सहायता के लिए एक प्रभावशाली मंत्री परिषद थी, जिसमें प्रधानमंत्री, पुरोहित, सेनापति और अन्य प्रमुख अधिकारी शामिल होते थे। यह परिषद राजा को नीतिगत निर्णय लेने में सहायता करती थी।
प्रांतीय प्रशासन
मौर्य साम्राज्य को चार प्रमुख प्रांतों में विभाजित किया गया था:
उत्तर प्रांत (उज्जयिनी)
पश्चिम प्रांत (तक्षशिला)
दक्षिण प्रांत (सुवर्णगिरि)
पूर्वी प्रांत (पाटलिपुत्र – राजधानी)
हर प्रांत का शासन एक कुमार या आर्यपुत्र करता था, जिसे राजा द्वारा नियुक्त किया जाता था। कुमार को महा-अमात्य और अन्य अधिकारियों की सहायता प्राप्त होती थी।
स्थानीय प्रशासन
स्थानीय प्रशासन को नगर और ग्राम स्तर पर व्यवस्थित किया गया था। नगरों के प्रशासन के लिए नगराध्यक्ष (नगर अधिकारी) नियुक्त किए जाते थे, जो व्यापार, जल आपूर्ति, कर संग्रहण आदि का ध्यान रखते थे। गांवों का प्रशासन ग्राम प्रधान द्वारा संचालित किया जाता था।
प्रशासनिक अधिकारी
मौर्य प्रशासन में विभिन्न पदाधिकारी होते थे, जिनका कार्य स्पष्ट रूप से निर्धारित था। कुछ महत्वपूर्ण पदाधिकारी इस प्रकार थे:
अंतपाल – सीमावर्ती क्षेत्रों का प्रशासन
दंडपाल – न्याय व्यवस्था का प्रमुख
सामाहर्ता – राजस्व एवं कर संग्रहण का कार्यभार
अकियुक्त – सैन्य संगठन का प्रमुख अधिकारी
अध्यक्ष – विभिन्न सरकारी विभागों के प्रमुख
न्यायिक और सैन्य व्यवस्था
न्यायिक प्रणाली
मौर्य प्रशासन में न्यायिक प्रणाली कठोर और प्रभावी थी। राजा सर्वोच्च न्यायाधीश था और उसके अधीन कई न्यायालय कार्यरत थे। न्यायिक व्यवस्था को तीन स्तरों में विभाजित किया गया था:
स्थानीय ग्राम न्यायालय – छोटे विवादों का निपटारा
नगर न्यायालय – गंभीर अपराधों की सुनवाई
राज्य न्यायालय – राजा द्वारा संचालित सर्वोच्च न्यायालय
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अपराधों के लिए कठोर दंडों का प्रावधान किया गया था।
सैन्य व्यवस्था
मौर्य सेना अत्यंत संगठित और शक्तिशाली थी। इसमें मुख्य रूप से चार भाग होते थे:
पैदल सेना (इन्फैंट्री)
अश्व सेना (कैवेलरी)
रथ सेना (चेरियट्री)
हाथी सेना (एलीफेंट्री)
मौर्य सेना का नेतृत्व सेनापति करता था और राज्य की रक्षा के लिए किलेबंदी की व्यवस्था भी की गई थी।
राजस्व और अर्थव्यवस्था
मौर्य शासन में कर प्रणाली सुव्यवस्थित थी। कृषि, व्यापार, खनन, उद्योग आदि से कर वसूला जाता था।
भूमिकर – किसानों से लिया जाने वाला कर
शुल्क – व्यापारिक लेन-देन पर लगने वाला कर
सैनिक कर – सेना के खर्च के लिए लिया जाने वाला कर
सामाहर्ता इस पूरी कर प्रणाली का प्रमुख अधिकारी होता था।
निष्कर्ष
मौर्य प्रशासन एक अत्यधिक संगठित और सुव्यवस्थित प्रणाली थी, जिसने भारतीय प्रशासनिक ढांचे को एक नई दिशा दी। यह प्रणाली न केवल एक सशक्त केंद्रीय शासन प्रदान करती थी, बल्कि स्थानीय प्रशासन पर भी ध्यान देती थी। मौर्य शासन की यह प्रशासनिक प्रणाली बाद के शासकों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनी।
मौर्य काल और पाटलिपुत्र (पटना)
प्रस्तावना
भारत के गौरवशाली इतिहास में मौर्य साम्राज्य का एक विशेष स्थान है। यह साम्राज्य न केवल अपने प्रशासनिक व्यवस्था और सैन्य शक्ति के लिए प्रसिद्ध था, बल्कि इसकी राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) भी प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण नगरों में से एक थी। यह लेख मौर्य काल और पाटलिपुत्र के ऐतिहासिक महत्व को विस्तार से प्रस्तुत करेगा।
पाटलिपुत्र: प्राचीन भारत की प्रमुख राजधानी
पाटलिपुत्र, जिसे वर्तमान में पटना के नाम से जाना जाता है, प्राचीन भारत की एक महत्वपूर्ण नगरी थी। यह नगर गंगा, सोन और गंडक नदियों के संगम पर स्थित था, जिससे यह व्यापार और यातायात का एक प्रमुख केंद्र बना। इसके सामरिक महत्व के कारण इसे विभिन्न शासकों ने अपनी राजधानी बनाया।
मौर्य साम्राज्य की स्थापना और पाटलिपुत्र की भूमिका
मौर्य साम्राज्य की स्थापना 321 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी। उन्होंने मगध के नंद वंश को पराजित कर अपने साम्राज्य की नींव रखी। उनकी राजधानी पाटलिपुत्र न केवल प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थी, बल्कि यह सांस्कृतिक और बौद्धिक गतिविधियों का भी केंद्र थी।
चाणक्य, जो कि चंद्रगुप्त के प्रमुख सलाहकार थे, ने इस नगर को सुशासन का आदर्श उदाहरण बनाने में सहायता की। ‘अर्थशास्त्र’ में पाटलिपुत्र के प्रशासन और आर्थिक नीतियों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
अशोक और पाटलिपुत्र का स्वर्ण युग
सम्राट अशोक (268-232 ईसा पूर्व) के शासनकाल में पाटलिपुत्र ने अपनी चरम उन्नति प्राप्त की। अशोक ने इसे एक समृद्ध और संगठित नगर के रूप में विकसित किया। उन्होंने अनेक बौद्ध स्तूपों, विहारों और शिलालेखों का निर्माण करवाया, जिससे यह नगर बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र बन गया।
मेगस्थनीज, जो कि सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था, ने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’ में पाटलिपुत्र के बारे में विस्तृत वर्णन किया है। उसने इसे एक सुव्यवस्थित और भव्य नगर बताया, जिसमें मजबूत किलेबंदी और सुनियोजित सड़कों का जाल था।
पाटलिपुत्र की नगर योजना और प्रशासन
मौर्य काल में पाटलिपुत्र की नगर योजना अत्यंत विकसित थी। नगर को लकड़ी की दीवारों और विशाल द्वारों से घेरा गया था। यह प्रशासनिक और सैन्य दृष्टि से सुदृढ़ था। नगर में जल निकासी और स्वच्छता की उन्नत व्यवस्था थी, जो इसकी उच्च नगर योजना को दर्शाती है।
नगर में विभिन्न प्रकार के बाजार, उद्यान, और विशाल सभा भवन थे, जहां राज्य के महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते थे। यह नगर विभिन्न संस्कृतियों और विचारधाराओं के आदान-प्रदान का प्रमुख केंद्र था।
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद पाटलिपुत्र की स्थिति
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद, पाटलिपुत्र की स्थिति कमजोर हो गई। शुंग, गुप्त और बाद में पाल वंश ने इस नगर को अपनी राजधानी बनाए रखा, लेकिन इसकी पूर्व की महिमा धीरे-धीरे कम हो गई।
निष्कर्ष
मौर्य काल में पाटलिपुत्र भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था। यह नगर न केवल मौर्य प्रशासन का गवाह रहा, बल्कि यह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थल बना रहा। आज भी, पटना में अनेक ऐतिहासिक स्थल मौर्य काल की महानता की झलक प्रदान करते हैं।
मौर्य अर्थव्यवस्था: एक प्राचीन साम्राज्य की रीढ़
मौर्य साम्राज्य (322–185 ईसा पूर्व) प्राचीन भारत के सबसे शक्तिशाली और सुव्यवस्थित राज्यों में से एक था। इसकी अर्थव्यवस्था ने इसके विशाल क्षेत्रीय विस्तार और सैन्य शक्ति को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार और अशोक के नेतृत्व में, साम्राज्य ने एक सुव्यवस्थित आर्थिक प्रणाली विकसित की, जिसने व्यापार, कृषि और कराधान को समर्थन दिया।
कृषि: आर्थिक नींव
कृषि मौर्य अर्थव्यवस्था का मुख्य स्रोत थी। गंगा और अन्य नदियों के किनारे की उपजाऊ भूमि ने कृषि उत्पादन के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया। राज्य ने सिंचाई परियोजनाओं में सक्रिय भूमिका निभाई, जिससे खेती को सतत और उत्पादक बनाया गया। चावल, गेहूं, जौ, दालें और गन्ने जैसी फसलें व्यापक रूप से उगाई जाती थीं। किसानों को अपनी उपज का एक हिस्सा कर के रूप में देना पड़ता था, जो राज्य के राजस्व का एक प्रमुख स्रोत था।
व्यापार और वाणिज्य: विकास की प्रेरणा
साम्राज्य के भीतर और विदेशी राष्ट्रों के साथ व्यापार फला-फूला। आंतरिक व्यापार मार्गों ने पाटलिपुत्र, उज्जैन और तक्षशिला जैसे प्रमुख शहरों को जोड़ा, जिससे वस्तुओं का आदान-प्रदान सुगम हुआ। साम्राज्य ने फारस, ग्रीस और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भी व्यापार किया, जहां से वस्त्र, मसाले, हाथी दांत और कीमती पत्थरों का निर्यात किया जाता था। एक सुव्यवस्थित सड़क नेटवर्क, जिसमें प्रसिद्ध ग्रैंड ट्रंक रोड भी शामिल थी, ने वाणिज्यिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया।
कर प्रणाली: एक मजबूत राजस्व मॉडल
मौर्य प्रशासन ने एक प्रभावी कर प्रणाली लागू की। चाणक्य (कौटिल्य) द्वारा लिखित “अर्थशास्त्र” में उन कर नीतियों का वर्णन किया गया है, जिन्होंने साम्राज्य की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित की। कृषि, व्यापार, खनन और अन्य उद्योगों से कर एकत्र किया जाता था। इस राजस्व का उपयोग सेना के रखरखाव, सार्वजनिक निर्माण और कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए किया जाता था।
खनन और उद्योग: आर्थिक विविधता
मौर्यों ने एक मजबूत खनन उद्योग विकसित किया, जिसमें सोना, चांदी, तांबा और लोहे जैसी धातुओं का उत्खनन किया जाता था। इन धातुओं का उपयोग सिक्के, हथियार और औजार बनाने में किया जाता था। हस्तकला, वस्त्र और मिट्टी के बर्तन उद्योग भी फलते-फूलते थे, जो अर्थव्यवस्था में योगदान देते थे। राज्य ने उद्योगों को विनियमित किया, जिससे गुणवत्ता उत्पादन और निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को सुनिश्चित किया गया।
मौर्य मुद्रा और बैंकिंग
साम्राज्य में चांदी के पंच-चिह्नित सिक्कों के साथ एक मानकीकृत मुद्रा प्रणाली थी, जिसने व्यापार और वाणिज्य को आसान बनाया। व्यापारी और व्यापारी इन सिक्कों का उपयोग लेन-देन के लिए करते थे और शहरी केंद्रों में ऋण और उधार जैसी बैंकिंग गतिविधियाँ प्रचलित थीं।
राज्य–नियंत्रित अर्थव्यवस्था और कल्याणकारी उपाय
मौर्य शासकों, विशेष रूप से अशोक, ने आर्थिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया। राज्य ने प्रमुख उद्योगों को नियंत्रित किया, व्यापार को विनियमित किया और श्रमिकों के लिए उचित वेतन सुनिश्चित किया। अशोक की नीतियों ने सामाजिक कल्याण पर भी जोर दिया, जिसमें अस्पताल, विश्राम गृह और सड़कों का निर्माण शामिल था, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला।
निष्कर्ष
मौर्य अर्थव्यवस्था कृषि, व्यापार, कराधान और राज्य नियंत्रण का एक संतुलित मिश्रण थी। इसकी मजबूत आर्थिक नीतियों ने साम्राज्य की समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित की। मौर्य आर्थिक मॉडल से आज भी शासन, व्यापार और आर्थिक नियोजन में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्राप्त की जा सकती है।
समाज और धर्म: मौर्य काल में सामाजिक एवं धार्मिक व्यवस्था
मौर्य साम्राज्य (321-185 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण काल था, जिसने समाज और धर्म दोनों पर गहरा प्रभाव डाला। इस अवधि में सामाजिक संरचना सुदृढ़ और संगठित थी, जबकि धार्मिक नीति बहु-आयामी और सहिष्णु रही।
मौर्य समाज की संरचना
मौर्य युग में समाज वर्ण व्यवस्था पर आधारित था, जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ग प्रमुख थे। हालाँकि, मौर्य शासकों ने सामाजिक गतिशीलता को प्रोत्साहित किया, जिससे विभिन्न वर्गों के लोगों को नए अवसर मिले। इस काल में व्यापार और वाणिज्य का भी विस्तार हुआ, जिससे शहरीकरण और समृद्धि में वृद्धि हुई।
महिला स्थिति
मौर्य काल में महिलाओं की स्थिति मिश्रित थी। शाही परिवारों की महिलाओं को शिक्षा और प्रशासनिक कार्यों में भाग लेने की स्वतंत्रता थी, लेकिन आम महिलाओं के लिए सामाजिक स्वतंत्रता सीमित थी। विवाह और पारिवारिक जीवन पर पितृसत्तात्मक व्यवस्था का प्रभाव बना रहा।
धार्मिक नीति और विविधता
मौर्य शासकों ने धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया। प्रारंभिक मौर्य शासक हिन्दू परंपराओं का पालन करते थे, लेकिन सम्राट अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण मिला। हालाँकि, अशोक ने अन्य धर्मों को भी समान सम्मान दिया।
बौद्ध धर्म का प्रसार
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को व्यापक स्तर पर अपनाया और उसके प्रसार के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए शिलालेखों और अभिलेखों की स्थापना की तथा विदेशी देशों में भी बौद्ध धर्म के संदेशवाहकों को भेजा। इसके परिणामस्वरूप, बौद्ध धर्म केवल भारत तक सीमित न रहकर श्रीलंका, अफगानिस्तान, और अन्य एशियाई देशों में भी फैल गया।
हिन्दू धर्म और अन्य परंपराएँ
मौर्य युग में वैदिक परंपराएँ भी प्रचलित थीं, लेकिन इस काल में भक्ति और तपस्या पर आधारित धार्मिक धाराएँ भी उभरीं। जैन धर्म को भी इस काल में समर्थन मिला और अनेक व्यापारिक समुदायों ने इसे अपनाया।
निष्कर्ष
मौर्य काल में समाज और धर्म एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए थे। इस अवधि में जहाँ सामाजिक व्यवस्था संगठित और स्थिर रही, वहीं धार्मिक विविधता और सहिष्णुता को भी बढ़ावा मिला। मौर्य शासकों की धार्मिक नीति और सामाजिक दृष्टिकोण ने भारतीय संस्कृति और इतिहास पर दीर्घकालिक प्रभाव डाला।
मौर्य काल में कला और स्थापत्य
मौर्य वंश (321-185 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण युग था, जिसने न केवल राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत किया, बल्कि कला और स्थापत्य के क्षेत्र में भी अद्भुत विकास किया। यह काल विशेष रूप से सम्राट अशोक के शासन में कला और स्थापत्य की उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध है।
मौर्यकालीन कला की विशेषताएँ
मौर्यकालीन कला में भारतीय और विदेशी प्रभावों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इस काल की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
सरलता और भव्यता – मौर्यकालीन मूर्तियाँ और स्थापत्य संरचनाएँ मजबूत, सरल लेकिन प्रभावशाली थीं।
पॉलिश पत्थर – मौर्यकाल की कला में चमकदार पॉलिश किए गए पत्थरों का उपयोग बहुतायत में हुआ।
बौद्ध प्रभाव – विशेष रूप से सम्राट अशोक के शासन में बौद्ध धर्म से प्रेरित कला का विकास हुआ।
स्थापत्य कला
मौर्यकालीन स्थापत्य कला में स्तूप, स्तंभ, गुफाएँ और महल शामिल थे।
स्तूप
स्तूप बौद्ध धर्म के प्रतीक थे और इनमें भगवान बुद्ध की अस्थियाँ रखी जाती थीं।
सांची स्तूप – सम्राट अशोक द्वारा निर्मित यह स्तूप भारत की प्राचीन वास्तुकला का एक अनमोल उदाहरण है।
धमेक स्तूप (सारनाथ) – यह स्तूप अशोक द्वारा निर्मित करवाया गया था और इसे बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार से जोड़ा जाता है।
अशोक स्तंभ
सम्राट अशोक ने पूरे भारत में कई स्तंभों का निर्माण करवाया, जिन पर उनके आदेश और बौद्ध धर्म से जुड़े उपदेश अंकित थे।
सारनाथ स्तंभ – इस स्तंभ के शीर्ष पर चार सिंहों की मूर्ति बनी है, जिसे भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है।
लौरिया नंदनगढ़ स्तंभ – यह बिहार में स्थित एक प्रसिद्ध अशोक स्तंभ है।
गुफा वास्तुकला
मौर्य काल में पत्थरों को काटकर गुफाओं का निर्माण किया गया, जो बौद्ध और जैन भिक्षुओं के लिए निवास स्थल के रूप में कार्य करते थे।
बाराबर गुफाएँ (बिहार) – ये भारत की सबसे प्राचीन रॉक-कट गुफाएँ हैं और इनमें पॉलिश किए गए ग्रेनाइट पत्थर का प्रयोग किया गया है।
नागार्जुनी गुफाएँ – ये गुफाएँ भी मौर्यकाल की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
महल और किले
पाटलिपुत्र का महल – यह महल लकड़ी से निर्मित था और इसकी तुलना ईरान और ग्रीस की वास्तुकला से की जाती है।
कुम्हरार के अवशेष – यहाँ खुदाई में मौर्यकालीन स्तंभों और महलों के अवशेष मिले हैं, जो उस समय की उन्नत स्थापत्य कला को दर्शाते हैं।
मूर्तिकला
मौर्यकाल की मूर्तिकला में अधिकतर धार्मिक और राजनैतिक संदेशों को व्यक्त किया जाता था।
यक्ष और यक्षिणी की मूर्तियाँ – इन मूर्तियों को अद्भुत कलात्मक शैली में बनाया गया था और ये देवी-देवताओं से जुड़ी हुई थीं।
ध्यान मुद्रा में बुद्ध की मूर्तियाँ – बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं वाली मूर्तियाँ इस काल में प्रसिद्ध थीं।

निष्कर्ष
मौर्यकाल की कला और स्थापत्य न केवल भारत की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के स्वर्णिम युग का प्रतीक भी है। सम्राट अशोक के प्रयासों से इस काल में स्थापत्य कला और मूर्तिकला ने ऊँचाइयों को छुआ। मौर्यकालीन स्थापत्य शैली ने आगे चलकर गुप्त काल, अजंता-एलोरा की गुफाओं और मथुरा शैली को प्रभावित किया। यह काल भारतीय कला और स्थापत्य के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहा।
मौर्य साम्राज्य का पतन
परिचय:–
मौर्य साम्राज्य भारतीय इतिहास का पहला महान साम्राज्य था, जिसने लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। इसकी स्थापना 321 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी और सम्राट अशोक के शासनकाल में यह अपने चरम पर पहुंचा। लेकिन, सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर होने लगा और अंततः 185 ईसा पूर्व में समाप्त हो गया। इस लेख में हम मौर्य साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करेंगे।
अशोक की नीतियां और उनका प्रभाव:
सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) के बाद अहिंसा और बौद्ध धर्म को अपनाया। उन्होंने सैन्य विस्तार नीति को त्याग दिया और अपने शासनकाल में शांति व धार्मिक प्रचार पर अधिक ध्यान दिया। हालांकि, इससे साम्राज्य की सैन्य शक्ति कमजोर हो गई और सीमांत क्षेत्रों पर प्रभाव कम हो गया, जिससे बाहरी आक्रमणों की संभावना बढ़ गई।
कमजोर उत्तराधिकारी:–
अशोक के बाद उनके उत्तराधिकारी शासन की क्षमता में कमजोर थे। दशरथ, संप्रति और बृहद्रथ जैसे शासकों ने प्रभावी प्रशासन नहीं किया, जिससे साम्राज्य में अस्थिरता फैलने लगी। कमजोर नेतृत्व के कारण प्रजा में असंतोष बढ़ा और क्षेत्रीय गवर्नर स्वतंत्र होने लगे।
अत्यधिक विस्तारित साम्राज्य:–
मौर्य साम्राज्य बहुत विशाल था, जिसे एक कुशल प्रशासन के बिना संभालना कठिन था। दूर-दराज के प्रांतों पर केंद्रीय शासन की पकड़ कमजोर होने लगी, जिससे क्षेत्रीय शासक अपनी स्वतंत्रता की मांग करने लगे। यह प्रशासनिक ढांचे की कमजोरी को दर्शाता है।
आर्थिक समस्याएं:–
अशोक द्वारा बड़े पैमाने पर सार्वजनिक कल्याणकारी योजनाएं, जैसे सड़कों, स्तूपों और धर्मशालाओं का निर्माण, अत्यधिक व्ययकारी सिद्ध हुआ। भारी कराधान और सैन्य खर्च में कमी ने साम्राज्य की आर्थिक नींव को कमजोर कर दिया।
ब्राह्मणों और क्षत्रियों का असंतोष:-
अशोक द्वारा बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के कारण ब्राह्मण वर्ग असंतुष्ट हो गया, क्योंकि इससे हिंदू धर्म की स्थिति कमजोर हुई। इसके अलावा, सेना की उपेक्षा से क्षत्रिय वर्ग भी नाराज हो गया, जिसने मौर्य शासन के खिलाफ विद्रोह को जन्म दिया।
विदेशी आक्रमण और क्षेत्रीय विद्रोह:–
उत्तर-पश्चिमी सीमा पर यूनानी, शक और पार्थियनों की गतिविधियां बढ़ने लगीं। मौर्य शासकों की कमजोरी का लाभ उठाकर इन विदेशी शक्तियों ने भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश किया। साथ ही, दक्षिण और पूर्वी भारत के स्थानीय शासकों ने भी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए विद्रोह किया।
पुष्यमित्र शुंग का विद्रोह:-
अंततः, 185 ईसा पूर्व में अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या उनके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और शुंग वंश की स्थापना की। यह घटना मौर्य साम्राज्य के आधिकारिक अंत का प्रतीक बनी।
निष्कर्ष:–
मौर्य साम्राज्य के पतन के कई कारक थे, जिनमें कमजोर उत्तराधिकारी, प्रशासनिक असफलताएं, आर्थिक संकट, सामाजिक असंतोष और बाहरी आक्रमण प्रमुख थे। हालांकि, इस साम्राज्य ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया और इसके प्रशासनिक और राजनीतिक मॉडल ने आने वाले कई राजवंशों को प्रभावित किया।
यहाँ मौर्य काल (322 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व) पर आधारित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं, जो PSU (सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों) की परीक्षाओं में पूछे जा सकते हैं:
प्रश्न 1: मौर्य वंश की स्थापना किसने की थी?
उत्तर: मौर्य वंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में की थी।
प्रश्न 2: चंद्रगुप्त मौर्य का प्रमुख सलाहकार और प्रधानमंत्री कौन था?
उत्तर: चंद्रगुप्त मौर्य का प्रमुख सलाहकार आचार्य चाणक्य (कौटिल्य या विष्णुगुप्त) था, जिसने “अर्थशास्त्र” की रचना की थी।
प्रश्न 3: अशोक किस युद्ध के बाद बौद्ध धर्म की ओर मुड़ा?
उत्तर: अशोक कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) के बाद बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हुआ और अहिंसा का मार्ग अपनाया।
प्रश्न 4: मौर्य साम्राज्य की राजधानी क्या थी?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) थी।
प्रश्न 5: मौर्य शासन में प्रशासन को कितने भागों में बाँटा गया था?
उत्तर: मौर्य शासन में प्रशासन को तीन स्तरों में बाँटा गया था – केंद्रीय प्रशासन, प्रांतीय प्रशासन और स्थानीय प्रशासन।
प्रश्न 6: मौर्य शासकों द्वारा जारी किए गए शिलालेख और अभिलेख किस लिपि में लिखे गए थे?
उत्तर: अधिकांश शिलालेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे, लेकिन उत्तर-पश्चिमी भारत में खरोष्ठी लिपि का भी उपयोग किया गया था।
प्रश्न 7: मौर्य साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध सम्राट कौन था और क्यों?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध सम्राट अशोक महान था, जिसने बौद्ध धर्म को अपनाया और अपने धम्म (धर्म) के संदेशों को पूरे एशिया में फैलाया।
प्रश्न 8: मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था का वर्णन किस ग्रंथ में मिलता है?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था का वर्णन आचार्य चाणक्य द्वारा रचित “अर्थशास्त्र“ ग्रंथ में मिलता है।
प्रश्न 9: मौर्य काल में राजस्व वसूली का मुख्य स्रोत क्या था?
उत्तर: मौर्य काल में राजस्व वसूली का मुख्य स्रोत कृषि कर था, जो कुल उत्पादन का लगभग 1/4 भाग होता था।
प्रश्न 10: मौर्य काल के पतन का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य के पतन के मुख्य कारण थे – कमजोर उत्तराधिकारी, विशाल साम्राज्य की प्रशासनिक कठिनाइयाँ, सैन्य संसाधनों की कमी, ब्राह्मणों और स्थानीय राजाओं का विरोध।
प्रश्न 11: अशोक ने कितने प्रमुख शिलालेख जारी किए थे?
उत्तर: अशोक ने कुल 14 प्रमुख शिलालेख (Major Rock Edicts) जारी किए थे।
प्रश्न 12: मौर्यकालीन व्यापार और अर्थव्यवस्था का क्या स्वरूप था?
उत्तर: मौर्यकाल में आंतरिक और बाहरी व्यापार बहुत विकसित था। रोम, ग्रीस, मिस्र और श्रीलंका से व्यापार होता था। मुद्रा का उपयोग बढ़ा और सिल्क रूट जैसी व्यापारिक मार्ग विकसित हुए।
प्रश्न 13: मेगस्थनीज कौन था, और उसने मौर्य काल के बारे में कौन-सा ग्रंथ लिखा?
उत्तर: मेगस्थनीज एक ग्रीक राजदूत था, जो सेल्यूकस निकेटर का प्रतिनिधि बनकर चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था। उसने “इंडिका“ नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें मौर्य प्रशासन और समाज का वर्णन है।
प्रश्न 14: मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक कौन था?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य था, जिसे उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में मारकर शुंग वंश की स्थापना की।
प्रश्न 15: अशोक ने अपने अभिलेखों में खुद को क्या कहा है?
उत्तर: अशोक ने अपने अभिलेखों में खुद को “देवनामप्रिय“ (देवताओं का प्रिय) और “प्रियदर्शी“ (सुंदर दृष्टि वाला) कहा है।
प्रश्न 16: मौर्य काल में गुप्तचरी (गुप्तचर व्यवस्था) का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर: मौर्य काल में गुप्तचरी व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य प्रशासनिक नियंत्रण बनाए रखना, विद्रोह को रोकना, और शासक को राज्य की गतिविधियों की जानकारी देना था। यह व्यवस्था चाणक्य की नीति का हिस्सा थी।
प्रश्न 17: मौर्य काल में सड़क एवं परिवहन व्यवस्था कैसी थी?
उत्तर: मौर्य काल में सड़क और परिवहन प्रणाली अत्यधिक विकसित थी। सबसे प्रसिद्ध सड़क उत्तरापथ थी, जो तक्षशिला से पाटलिपुत्र तक जाती थी। इसे धर्म मार्ग भी कहा जाता था।
प्रश्न 18: मौर्यकालीन समाज की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
- समाज वर्ण व्यवस्था पर आधारित था।
- कृषि और व्यापार का प्रमुख स्थान था।
- महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर थी।
- बौद्ध और जैन धर्म का प्रसार हुआ।
प्रश्न 19: मौर्य साम्राज्य की न्याय व्यवस्था कैसी थी?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य में राजा सर्वोच्च न्यायाधीश था। न्यायिक प्रणाली में राजा, महामात्य, और ग्राम पंचायतें न्याय करते थे। कड़े दंड और मृत्युदंड का प्रावधान था।
प्रश्न 20: अशोक के शिलालेखों में मुख्यतः किन विषयों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर: अशोक के शिलालेखों में धर्म, अहिंसा, शांति, दया, सत्य, सामाजिक सद्भाव और प्रजा कल्याण का उल्लेख मिलता है।
प्रश्न 21: मौर्य साम्राज्य के कौन से दो महत्वपूर्ण विदेशियों ने भारत की यात्रा की?
उत्तर:
- मेगस्थनीज (ग्रीक राजदूत)
- दिमाचस और डायोनिसियस (मिस्र और सीरिया के राजदूत)
प्रश्न 22: अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किन देशों में दूत भेजे गए थे?
उत्तर:
- श्रीलंका – महेंद्र और संघमित्रा (अशोक के पुत्र-पुत्री)
- मध्य एशिया, ग्रीस, मिस्र, सीरिया और म्यांमार
प्रश्न 23: मौर्यकालीन सेना की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
- विशाल स्थायी सेना थी।
- सेना में पैदल सैनिक, घुड़सवार, हाथी दल और रथ दल होते थे।
- नौसेना भी विकसित थी।
- सेना पर भारी खर्च होता था, जिसे करों द्वारा पूरा किया जाता था।
प्रश्न 24: मौर्य शासकों के आर्थिक सुधारों में कौन-कौन से प्रमुख कार्य किए गए?
उत्तर:
- सिंचाई और कृषि को बढ़ावा दिया गया।
- व्यापार और वाणिज्य को संगठित किया गया।
- राजकीय नियंत्रण वाली कई नदियों पर बांध बनाए गए।
- सिक्का मुद्रा (पंचमार्क सिक्के) प्रचलित हुई।
प्रश्न 25: मौर्य काल में व्यापार के प्रमुख केंद्र कौन-कौन से थे?
उत्तर: तक्षशिला, पाटलिपुत्र, उज्जयिनी, कौशांबी, मथुरा, वैशाली, और तमिलनाडु के बंदरगाह प्रमुख व्यापार केंद्र थे।
प्रश्न 26: अशोक ने कितने स्तंभ अभिलेख स्थापित करवाए थे?
उत्तर: अशोक ने 7 स्तंभ अभिलेख स्थापित करवाए, जिनमें बौद्ध धर्म और धम्म नीति का प्रचार किया गया था।
प्रश्न 27: मौर्य काल में राजकीय अधिकारियों को क्या कहा जाता था?
उत्तर: मौर्य काल में राजकीय अधिकारियों को महामात्य कहा जाता था, जो प्रशासन के विभिन्न कार्यों को देखते थे।
प्रश्न 28: अशोक का सबसे प्रसिद्ध शिलालेख कौन सा है?
उत्तर: गिरनार शिलालेख (गुजरात) और धौली–कालिंग शिलालेख (ओडिशा) अशोक के प्रमुख शिलालेख हैं।
प्रश्न 29: कौन-से स्रोत मौर्य साम्राज्य की जानकारी प्रदान करते हैं?
उत्तर:
- अर्थशास्त्र – चाणक्य
- इंडिका – मेगस्थनीज
- बौद्ध ग्रंथ – महावंश, दीपवंश
- जैन ग्रंथ – परिशिष्ट पर्व
प्रश्न 30: मौर्य साम्राज्य के बाद भारत में कौन-सा राजवंश आया?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद शुंग वंश (185 ईसा पूर्व) सत्ता में आया, जिसकी स्थापना पुष्यमित्र शुंग ने की।
प्रश्न 31: अशोक के समय में राजकीय धर्म का प्रचार करने वाले अधिकारियों को क्या कहा जाता था?
उत्तर: इन्हें धम्म महामात्य कहा जाता था, जो धम्म (बौद्ध धर्म) का प्रचार करने के लिए नियुक्त किए गए थे।
प्रश्न 32: मौर्यकाल में नगर प्रशासन की देखरेख कौन करता था?
उत्तर: नगर प्रशासन की देखरेख नगराध्यक्ष (नगरीक) करता था, जिसके अधीन विभिन्न विभाग होते थे।
प्रश्न 33: अशोक के अभिलेखों में “धम्म” का क्या अर्थ है?
उत्तर: अशोक के अभिलेखों में “धम्म” का अर्थ है नैतिकता, अहिंसा, सहिष्णुता, सत्य और लोक कल्याण।
प्रश्न 34: मौर्य काल में खेती और सिंचाई के लिए कौन-से प्रमुख कार्य किए गए?
उत्तर:
- कृत्रिम जलाशय और बांध बनाए गए।
- गंगा घाटी में कृषि उत्पादन बढ़ाया गया।
- कर प्रणाली को व्यवस्थित किया गया।
प्रश्न 35: मौर्य काल में बौद्ध धर्म का प्रचार किन प्रमुख देशों में हुआ?
उत्तर: श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, ग्रीस, अफगानिस्तान, मिस्र और चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार हुआ।
प्रश्न 36: मौर्य कालीन सिक्कों को क्या कहा जाता था?
उत्तर: मौर्य काल में पंचमार्क (Punch-Marked) सिक्कों का प्रचलन था।
प्रश्न 37: अशोक के कौन-से अभिलेख बौद्ध धर्म के प्रचार से संबंधित हैं?
उत्तर: अशोक के रुम्मिनदेई शिलालेख, सारनाथ शिलालेख, और बराबर गुफा अभिलेख बौद्ध धर्म के प्रचार से संबंधित हैं।
प्रश्न 38: अशोक ने कितनी बार बौद्ध संघ की सहायता की?
उत्तर: अशोक ने बौद्ध संघ को तीन बार दान दिया था और वह तीसरी बौद्ध संगीति (250 ईसा पूर्व) का संरक्षक था।
प्रश्न 39: मौर्यकालीन नगरों के प्रमुख विभाग कौन-कौन से थे?
उत्तर: राजकोष विभाग, सुरक्षा विभाग, व्यापार एवं कर विभाग, स्वास्थ्य विभाग और जल आपूर्ति विभाग प्रमुख थे।
प्रश्न 40: मौर्यकाल के सबसे महत्वपूर्ण स्मारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर: सांची स्तूप, बाराबर गुफाएँ, अशोक स्तंभ (सारनाथ, लौरिया नंदनगढ़) और धौली शिलालेख।
मौर्य काल (322 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व) पर और प्रश्नोत्तर:
प्रश्न 41: चंद्रगुप्त मौर्य ने किस यूनानी शासक को हराकर मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया था?
उत्तर: चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस निकेटर (यूनानी शासक) को हराया था और उससे पश्चिमोत्तर भारत के क्षेत्र प्राप्त किए थे।
प्रश्न 42: चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने शासन के अंतिम वर्षों में कौन-सा धर्म अपना लिया था?
उत्तर: चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में जैन धर्म अपना लिया था और श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में संन्यास ग्रहण कर लिया था।
प्रश्न 43: मौर्य शासन में “अवन्तिराष्ट्र” (उज्जैन) का महत्व क्या था?
उत्तर: अवन्तिराष्ट्र (उज्जैन) मौर्य साम्राज्य का एक प्रमुख प्रांतीय केंद्र था, जो व्यापार और प्रशासनिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध था।
प्रश्न 44: मौर्य साम्राज्य में किस प्रकार की प्रशासनिक व्यवस्था थी?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य में केंद्रीयकृत प्रशासन था, जहाँ राजा सर्वोच्च शासक होता था और महामात्य, मंत्री, और अधिकारी उसकी सहायता करते थे।
प्रश्न 45: अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कौन-कौन से प्रमुख कार्य किए?
उत्तर:
- बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धम्म महामात्य नियुक्त किए।
- स्तूपों और विहारों का निर्माण करवाया।
- बौद्ध भिक्षुओं को श्रीलंका, म्यांमार, ग्रीस और एशियाई देशों में भेजा।
- तीसरी बौद्ध संगीति (250 ईसा पूर्व) का आयोजन करवाया।
प्रश्न 46: कौन-सा अभिलेख अशोक के कलिंग युद्ध के बाद किए गए पश्चात्ताप को दर्शाता है?
उत्तर: धौली और जौगढ़ शिलालेख (ओडिशा) अशोक के पश्चात्ताप और अहिंसा के मार्ग को अपनाने का उल्लेख करते हैं।
प्रश्न 47: मौर्य साम्राज्य में कितने मुख्य प्रशासनिक विभाग थे?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य में मुख्य रूप से 6 प्रशासनिक विभाग थे –
- राजस्व विभाग
- सेना विभाग
- वाणिज्य एवं व्यापार विभाग
- जल संसाधन विभाग
- न्यायिक विभाग
- जनकल्याण विभाग
प्रश्न 48: मौर्य शासन में “सामंत” और “महामात्र” कौन थे?
उत्तर:
- सामंत – स्थानीय शासक या साम्राज्य के अधीनस्थ शासक होते थे।
- महामात्र – प्रशासन और कर संग्रहण से जुड़े उच्च अधिकारी होते थे।
प्रश्न 49: मौर्य शासकों द्वारा निर्मित प्रमुख नगर कौन-कौन से थे?
उत्तर: पाटलिपुत्र, तक्षशिला, उज्जयिनी, वैशाली, मथुरा, और सुगौरा (नेपाल) प्रमुख नगर थे।
प्रश्न 50: अशोक द्वारा बनाए गए प्रमुख स्तूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर: सांची स्तूप (मध्य प्रदेश), भरहुत स्तूप (मध्य प्रदेश), धामेक स्तूप (सारनाथ, उत्तर प्रदेश), और रामग्राम स्तूप (नेपाल)।
प्रश्न 51: कौन-सा मौर्य शासक सबसे अधिक धार्मिक सहिष्णु माना जाता है?
उत्तर: अशोक महान, क्योंकि उसने बौद्ध धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों को भी समर्थन दिया और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया।
प्रश्न 52: अशोक के शिलालेखों में कितनी भाषाओं का प्रयोग किया गया है?
उत्तर: ब्राह्मी, खरोष्ठी, ग्रीक और अरामाइक लिपियों में शिलालेख लिखे गए थे।
प्रश्न 53: मौर्यकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति कैसी थी?
उत्तर: महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी थी। वे शिक्षा प्राप्त कर सकती थीं, व्यापार कर सकती थीं, और कुछ शिलालेखों में उन्हें दान देने का भी उल्लेख मिलता है।
प्रश्न 54: मौर्य शासनकाल में किसानों की स्थिति कैसी थी?
उत्तर: किसान अर्थव्यवस्था की रीढ़ थे, लेकिन उन्हें करों का भारी बोझ उठाना पड़ता था। राजकीय भूमि पर कृषि की जाती थी, और सिंचाई व्यवस्था को विशेष महत्व दिया गया था।
प्रश्न 55: किस यूनानी राजा ने अशोक के अभिलेखों में उल्लिखित “धर्म प्रचार” को समर्थन दिया था?
उत्तर: यूनानी राजा एंटियोकस द्वितीय ने अशोक के धम्म प्रचार को समर्थन दिया था।
प्रश्न 56: मौर्यकाल में कर प्रणाली का मुख्य स्रोत क्या था?
उत्तर: मौर्य काल में कर प्रणाली का मुख्य स्रोत भू–राजस्व (कृषि कर) था, जो कुल उत्पादन का 25% तक होता था।
प्रश्न 57: अशोक के कौन-से शिलालेखों में पशु बलि और मांसाहार के निषेध का उल्लेख है?
उत्तर: अशोक के शिलालेख संख्या 1 और 2 में पशु बलि और मांसाहार के निषेध का उल्लेख है।

प्रश्न 58: कौन-सा अभिलेख यह दर्शाता है कि अशोक ने बौद्ध संघ में विघटन को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए थे?
उत्तर: शिलालेख संख्या 12 में अशोक ने बौद्ध संघ के अनुशासन को बनाए रखने की बात कही है।
प्रश्न 59: मौर्य साम्राज्य के अंत के बाद भारत में कौन-कौन से राजवंश उभरे?
उत्तर: शुंग वंश, कण्व वंश, सातवाहन वंश और इंडो-ग्रीक राजवंश प्रमुख रूप से उभरे।
प्रश्न 60: मौर्यकाल में व्यापार के प्रमुख मार्ग कौन-कौन से थे?
उत्तर:
- उत्तरापथ – उत्तर भारत को तक्षशिला से जोड़ता था।
- दक्षिणापथ – दक्षिण भारत से पाटलिपुत्र को जोड़ता था।
- सिल्क रूट – चीन और मध्य एशिया से व्यापार के लिए महत्वपूर्ण था।
प्रश्न 61: किसने मौर्य वंश का पतन किया?
उत्तर: पुष्यमित्र शुंग ने 185 ईसा पूर्व में अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ मौर्य की हत्या कर शुंग वंश की स्थापना की।
प्रश्न 62: अशोक के स्तंभों पर किस पशु की आकृति प्रमुख रूप से दिखाई देती है?
उत्तर: सिंह (Lion), विशेष रूप से सारनाथ स्तंभ पर चार सिंहों की मूर्ति प्रसिद्ध है, जिसे भारत का राष्ट्रीय प्रतीक बनाया गया है।
प्रश्न 63: मौर्य प्रशासन में “अध्यक्ष” किसे कहा जाता था?
उत्तर: “अध्यक्ष” एक प्रशासनिक अधिकारी होता था, जो व्यापार, उद्योग, और समाज कल्याण से जुड़े कार्यों की देखरेख करता था।
प्रश्न 64: अशोक के समय में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक सभा कौन-सी थी?
उत्तर: तीसरी बौद्ध संगीति (250 ईसा पूर्व), जो पाटलिपुत्र में आयोजित हुई थी।
प्रश्न 65: चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध के किस अंतिम नंद शासक को हराकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी?
उत्तर: चंद्रगुप्त मौर्य ने धनानंद को हराकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।
प्रश्न 66: मौर्य काल में सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह कौन-से थे?
उत्तर:
- तम्रलिप्ति (बंगाल)
- सोपारा (महाराष्ट्र)
- भृगुकच्छ (भड़ौंच) (गुजरात)
- मुज़िरिस और अरिकामेडु (दक्षिण भारत)
प्रश्न 67: मौर्यकालीन समाज को कितने वर्गों में विभाजित किया गया था, और यह जानकारी किस स्रोत से मिलती है?
उत्तर:
मौर्यकालीन समाज को 7 वर्गों में विभाजित किया गया था, और इसका उल्लेख मेगस्थनीज की इंडिका में मिलता है।
प्रश्न 68: मौर्य प्रशासन में “राजूक” कौन था?
उत्तर: “राजूक” मौर्य काल में एक उच्च अधिकारी था, जो न्याय और भूमि संबंधी मामलों को देखता था।
प्रश्न 69: अशोक के कौन-से शिलालेख में सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता की बात की गई है?
उत्तर: शिलालेख संख्या 12 में सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता की बात की गई है।
प्रश्न 70: अशोक के किस शिलालेख में “कलिंग युद्ध” और उसके प्रभाव का उल्लेख है?
उत्तर: धौली और जौगढ़ शिलालेखों में कलिंग युद्ध और उसके प्रभाव का उल्लेख है।
प्रश्न 71: मौर्य शासन में कितने प्रकार के कर वसूले जाते थे?
उत्तर: मौर्य शासन में मुख्य रूप से 4 प्रकार के कर वसूले जाते थे –
- भू–राजस्व (कृषि कर)
- शुल्क (व्यापार पर कर)
- श्रम कर (कृषकों और श्रमिकों द्वारा दिया जाने वाला कर)
- अवशिष्ट कर (अन्य छोटे कर जैसे जंगल कर, सिंचाई कर)
प्रश्न 72: “सप्तांग सिद्धांत” क्या था, और इसे किसने प्रतिपादित किया?
उत्तर: “सप्तांग सिद्धांत” शासन के सात महत्वपूर्ण अंगों का सिद्धांत था, जिसे चाणक्य (कौटिल्य) ने प्रतिपादित किया था। इसके सात अंग थे –
- स्वामी (राजा)
- अमात्य (मंत्री)
- जनपद (प्रदेश)
- दुर्ग (किला/सुरक्षा)
- कोष (राजकोष)
- दंड (न्याय/सैन्य शक्ति)
- मित्र (सहयोगी राज्य)
प्रश्न 73: चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कहाँ हुई थी?
उत्तर: चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में हुई थी, जहाँ उन्होंने जैन धर्म अपनाकर संन्यास लिया था।
प्रश्न 74: अशोक के शिलालेखों में “कल्याण” का क्या अर्थ है?
उत्तर: “कल्याण” का अर्थ सामाजिक और नैतिक उत्थान से है, जिसमें अहिंसा, दया, और परोपकार शामिल हैं।
प्रश्न 75: कौन-से अभिलेख यह साबित करते हैं कि अशोक ने विदेशों में बौद्ध धर्म का प्रचार किया था?
उत्तर:
शिलालेख संख्या 13 में उल्लेख है कि अशोक ने बौद्ध धर्म को श्रीलंका, ग्रीस, मिस्र, सीरिया, और अन्य देशों में भेजा था।
प्रश्न 76: मौर्यकाल में कौन-से महत्वपूर्ण किले थे?
उत्तर:
- पाटलिपुत्र का किला
- तक्षशिला का किला
- गिरिनगर का किला
- सुवर्णगिरि का किला
प्रश्न 77: मौर्य प्रशासन में “गोप” कौन था?
उत्तर: “गोप” एक अधिकारी था, जो ग्राम प्रशासन की देखरेख करता था।
प्रश्न 78: अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद कौन-सा नया नाम धारण किया था?
उत्तर: अशोक को बौद्ध धर्म अपनाने के बाद “धम्माशोक“ कहा जाने लगा।
प्रश्न 79: अशोक के किस अभिलेख में पहली बार “राजा प्रियदर्शी” शब्द का प्रयोग हुआ है?
उत्तर: मास्की शिलालेख में पहली बार “राजा प्रियदर्शी” शब्द का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 80: मौर्य प्रशासन में “संपत्ति” अधिकारी कौन था?
उत्तर: “संपत्ति” अधिकारी राज्य की संपत्ति, कर संग्रह और राजस्व को देखता था।
प्रश्न 81: मौर्यकालीन प्रशासन में कौन-सा विभाग कृषि की देखरेख करता था?
उत्तर: सर्वाध्यक्ष विभाग कृषि कार्यों, भूमि सुधार और सिंचाई प्रणाली की देखरेख करता था।
प्रश्न 82: अशोक के किस स्तंभ पर चार सिंहों की मूर्ति अंकित है?
उत्तर: सारनाथ स्तंभ पर चार सिंहों की मूर्ति अंकित है, जिसे भारत का राष्ट्रीय प्रतीक बनाया गया है।
प्रश्न 83: मौर्यकाल में “यवन” किसे कहा जाता था?
उत्तर: “यवन” शब्द का उपयोग यूनानी और विदेशी लोगों के लिए किया जाता था।
प्रश्न 84: अशोक के किस शिलालेख में दास प्रथा के उन्मूलन का उल्लेख है?
उत्तर: शिलालेख संख्या 5 में दासों और सेवकों के साथ अच्छे व्यवहार की बात कही गई है।
प्रश्न 85: मौर्यकालीन सेना का प्रमुख सेनापति कौन होता था?
उत्तर: सेना का प्रमुख सेनापति राजा स्वयं होता था, लेकिन संचालन के लिए सेनापति (सैन्य प्रमुख) नियुक्त किए जाते थे।
प्रश्न 86: मौर्य साम्राज्य का पतन किन मुख्य कारणों से हुआ?
उत्तर:
- विशाल साम्राज्य का कुशल प्रशासन न कर पाना।
- उत्तर-पश्चिमी आक्रमण (ग्रीक और शक आक्रमण)।
- कमजोर उत्तराधिकारी शासकों का शासन।
- आर्थिक अस्थिरता और राजकोषीय संकट।
- पुष्यमित्र शुंग द्वारा अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ मौर्य की हत्या।
प्रश्न 87: मौर्य प्रशासन में “श्रेणी” का क्या अर्थ था?
उत्तर: “श्रेणी” व्यापारिक और औद्योगिक संघों को कहा जाता था, जिन्हें आज के “गिल्ड” के समान माना जाता है।
प्रश्न 88: मौर्यकालीन समाज में शिल्प और उद्योग का क्या महत्व था?
उत्तर: मौर्यकाल में शिल्प और उद्योग अत्यधिक उन्नत थे। लोहे, हाथी दांत, रेशम, कांच, और जहाज निर्माण प्रमुख उद्योग थे।
प्रश्न 89: अशोक के किस शिलालेख में “धम्मगुप्त” का उल्लेख है?
उत्तर: बाराबर गुफा अभिलेख में “धम्मगुप्त” का उल्लेख मिलता है।
प्रश्न 90: मौर्यकाल में प्रमुख शिक्षा केंद्र कौन-से थे?
उत्तर: तक्षशिला, नालंदा, पाटलिपुत्र और उज्जैन प्रमुख शिक्षा केंद्र थे।
प्रश्न 91: मौर्य साम्राज्य की राजधानी कहाँ थी?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) थी।
प्रश्न 92: अशोक का सबसे महत्वपूर्ण अभियोग क्या था?
उत्तर: अशोक का सबसे महत्वपूर्ण अभियोग कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) था, जिसने उसे अहिंसा और बौद्ध धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न 93: मौर्य प्रशासन में “नगराध्यक्षक” की क्या भूमिका थी?
उत्तर: नगराध्यक्षक नगर प्रशासन का प्रमुख अधिकारी था, जो साफ–सफाई, सुरक्षा, व्यापार, कर संग्रह, और जनकल्याण की देखरेख करता था।
प्रश्न 94: मौर्य प्रशासन में “कोटवाल” कौन था?
उत्तर: “कोटवाल” नगर की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए नियुक्त किया गया अधिकारी था।
प्रश्न 95: मौर्यकालीन व्यापारिक मार्ग कौन-कौन से थे?
उत्तर:
- उत्तरापथ – यह गांधार से पाटलिपुत्र तक फैला हुआ था।
- दक्षिणापथ – यह महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु तक जाता था।
- सिल्क रूट – यह चीन, मध्य एशिया और भारत के बीच व्यापार के लिए था।
प्रश्न 96: मौर्यकाल में “अर्थशास्त्र” किसने लिखा था?
उत्तर: अर्थशास्त्र मौर्य प्रशासन और अर्थव्यवस्था पर आधारित एक प्रसिद्ध ग्रंथ है, जिसे चाणक्य (कौटिल्य) ने लिखा था।
प्रश्न 97: मौर्य शासन में कितने प्रकार की फौज थी?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य की सेना में पांच प्रकार की फौज थी –
- पैदल सेना
- अश्वारोही सेना (घुड़सवार सेना)
- गज सेना (हाथी सेना)
- रथ सेना
- नौसेना
प्रश्न 98: अशोक के किस अभिलेख में महिलाओं के लिए कल्याणकारी नीतियों का उल्लेख है?
उत्तर: अशोक के शिलालेख संख्या 5 में महिलाओं और सेवकों के कल्याण का उल्लेख है।
प्रश्न 99: मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद कौन-सा राजवंश सत्ता में आया?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद शुंग वंश सत्ता में आया, जिसकी स्थापना पुष्यमित्र शुंग ने की थी।
प्रश्न 100: “धम्म महामात्र” का कार्य क्या था?
उत्तर: धम्म महामात्र अशोक के प्रशासन में विशेष अधिकारी थे, जो बौद्ध धर्म के प्रचार, नैतिकता, और जनकल्याणकारी कार्यों को सुनिश्चित करते थे।
प्रश्न 101: मौर्यकाल में कृषि को बढ़ावा देने के लिए कौन-से प्रमुख कदम उठाए गए थे?
उत्तर:
- नहरों और तालाबों का निर्माण किया गया।
- कृषि पर कम कर लगाया गया।
- किसानों को ऋण और बीज उपलब्ध कराए गए।
- राज्य द्वारा कृषि भूमि का सर्वेक्षण किया गया।
प्रश्न 102: मौर्य प्रशासन में “शुल्काध्यक्ष” कौन था?
उत्तर: “शुल्काध्यक्ष” एक अधिकारी था, जो टोल, व्यापार कर और अन्य शुल्कों की वसूली करता था।
प्रश्न 103: मौर्य काल में प्रमुख धातुएँ कौन-सी थीं?
उत्तर:
- लौह धातु (Iron) – शस्त्र निर्माण में उपयोग किया जाता था।
- तांबा (Copper) – सिक्के और औजार बनाने के लिए।
- सोना और चांदी – आभूषण और सिक्के बनाने में।
प्रश्न 104: अशोक के किस अभिलेख में पशुओं की हत्या पर प्रतिबंध लगाया गया है?
उत्तर: शिलालेख संख्या 1 में पशु हत्या पर प्रतिबंध का उल्लेख है।
प्रश्न 105: मौर्य प्रशासन में “धर्म युक्त” कौन थे?
उत्तर: “धर्म युक्त” वे न्यायाधीश थे, जो न्यायिक फैसले और दंड प्रणाली को लागू करते थे।
प्रश्न 106: कौन-से चीनी यात्री ने मौर्यकालीन भारत की यात्रा की थी?
उत्तर: चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग मौर्य काल के बाद भारत आए थे, लेकिन मौर्यकालीन जानकारी हमें मेगस्थनीज की “इंडिका” से मिलती है।
प्रश्न 107: अशोक द्वारा निर्मित प्रसिद्ध गुफाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर: बाराबर और नागार्जुनी गुफाएँ, जो बिहार में स्थित हैं।
प्रश्न 108: मौर्यकाल में कौन-सा प्रमुख सिक्का प्रचलित था?
उत्तर: पंचमार्क (Punch Marked Coins) नामक चाँदी और तांबे के सिक्के प्रचलित थे।
प्रश्न 109: “यवनराज” शब्द का प्रयोग मौर्यकाल में किसके लिए किया गया था?
उत्तर: “यवनराज” शब्द का प्रयोग यूनानी शासकों के लिए किया जाता था।
प्रश्न 110: अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को कहाँ बौद्ध धर्म प्रचार के लिए भेजा था?
उत्तर: अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा था।
प्रश्न 111: अशोक द्वारा लगाए गए स्तंभों में प्रयुक्त पत्थर कहाँ से लाए जाते थे?
उत्तर: अशोक के स्तंभों के लिए पत्थर मुख्य रूप से चुनार (उत्तर प्रदेश) और मिर्जापुर से लाए जाते थे।
प्रश्न 112: अशोक के किस अभिलेख में चिकित्सा सुविधा और औषधियों की उपलब्धता का उल्लेख है?
उत्तर: शिलालेख संख्या 2 में चिकित्सा सुविधा और औषधियों की उपलब्धता का उल्लेख किया गया है।
प्रश्न 113: किस मौर्य शासक को “देवानांप्रिय” कहा जाता था?
उत्तर: अशोक को “देवानांप्रिय” (देवताओं का प्रिय) कहा जाता था।
प्रश्न 114: मौर्यकाल में प्रमुख शिक्षा संस्थान कौन-कौन से थे?
उत्तर:
- तक्षशिला विश्वविद्यालय
- उज्जैन विश्वविद्यालय
- नालंदा (बाद के काल में प्रसिद्ध हुआ)
प्रश्न 115: अशोक के कौन-से अभिलेख ग्रीक और अरामाइक भाषा में लिखे गए थे?
उत्तर: कंधार अभिलेख ग्रीक और अरामाइक भाषा में लिखे गए थे।
प्रश्न 116: मौर्यकाल में “अष्टाध्यक्ष” का क्या कार्य था?
उत्तर: “अष्टाध्यक्ष” प्रशासन के विभिन्न विभागों का प्रमुख अधिकारी होता था।
मौर्य काल (322 ईसा पूर्व – 185 ईसा पूर्व) पर और महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर:
प्रश्न 117: चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर के उत्तराधिकारी सेल्यूकस निकेटर को कब पराजित किया?
उत्तर: चंद्रगुप्त मौर्य ने 305 ईसा पूर्व में सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया था।
प्रश्न 118: सेल्यूकस निकेटर और चंद्रगुप्त मौर्य के बीच हुए संधि के अनुसार सेल्यूकस ने कौन-कौन से क्षेत्र चंद्रगुप्त को सौंपे थे?
उत्तर:
- गांधार
- अراکौसिया (कंधार)
- गेड्रोसिया (बलूचिस्तान)
- पेरोपेमिसदाई (हिंदुकुश क्षेत्र)
प्रश्न 119: सेल्यूकस निकेटर ने चंद्रगुप्त मौर्य को अपनी पुत्री का विवाह किस उद्देश्य से कराया था?
उत्तर: भारत के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए सेल्यूकस निकेटर ने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से कराया था।
प्रश्न 120: अशोक के किस अभिलेख में “सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय” की भावना व्यक्त की गई है?
उत्तर: शिलालेख संख्या 7 में यह भावना व्यक्त की गई है।
प्रश्न 121: अशोक का धर्म क्या था?
उत्तर: अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया था, लेकिन वह सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु था।
प्रश्न 122: अशोक का सबसे बड़ा धम्म संदेश क्या था?
उत्तर: अहिंसा, सत्य, दया, धर्म और सामाजिक कल्याण।
प्रश्न 123: मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्या था?
उत्तर: कृषि, व्यापार, कर संग्रह और शिल्प उद्योग।
प्रश्न 124: “महामात्य” कौन होते थे?
उत्तर: महामात्य मौर्यकालीन प्रशासन के उच्च अधिकारी होते थे, जो राजा के प्रमुख सलाहकार होते थे।
प्रश्न 125: अशोक ने बौद्ध धर्म प्रचार के लिए किन-किन देशों में अपने दूत भेजे थे?
उत्तर:
- श्रीलंका
- यूनान (ग्रीस)
- सीरिया
- मिस्र
- बर्मा (म्यांमार)
- थाईलैंड
प्रश्न 126: अशोक के किस अभिलेख में संपूर्ण विश्व में धम्म प्रचार की बात कही गई है?
उत्तर: शिलालेख संख्या 13 में।
प्रश्न 127: मौर्य शासन में “अंतःपुर” क्या था?
उत्तर: राजा के महल और राजमहल में रहने वाली महिलाओं के लिए अंतःपुर था।
प्रश्न 128: चाणक्य को और किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
- कौटिल्य
- विष्णुगुप्त
प्रश्न 129: मौर्य साम्राज्य में सड़क निर्माण का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर: सामरिक, प्रशासनिक और व्यापारिक गतिविधियों को सुगम बनाना।
प्रश्न 130: चाणक्य द्वारा रचित “अर्थशास्त्र” में कितने अध्याय हैं?
उत्तर: 15 अध्याय।
प्रश्न 131: अशोक ने अपने पुत्र और पुत्री को बौद्ध धर्म प्रचार के लिए कहाँ भेजा?
उत्तर: श्रीलंका।
प्रश्न 132: “सारनाथ का अशोक स्तंभ” किस धातु से बना है?
उत्तर: बलुआ पत्थर।
प्रश्न 133: मौर्य प्रशासन में “धम्म लिपिक” कौन थे?
उत्तर: धम्म लिपिक बौद्ध धर्म का प्रचार करने वाले अधिकारी थे।
प्रश्न 134: अशोक के शासनकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या थी?
उत्तर: बौद्ध धर्म का विश्वव्यापी प्रचार।
प्रश्न 135: मौर्य प्रशासन में “कुलिक” कौन था?
उत्तर: कुलिक प्रशासनिक अधिकारी थे जो शिल्पकारों और कारीगरों के काम की देखरेख करते थे।
प्रश्न 136: मौर्य साम्राज्य की मुद्रा कौन-सी थी?
उत्तर: पंचमार्क सिक्के (Punch Marked Coins)।
प्रश्न 137: “मौर्यकालीन लिपि” कौन-सी थी?
उत्तर: प्रमुख लिपियाँ ब्राह्मी और खरोष्ठी थीं।
प्रश्न 138: मौर्य शासन में “कण्टक शोधन” विभाग किससे संबंधित था?
उत्तर: यह विभाग गुप्तचर व्यवस्था (इंटेलिजेंस सिस्टम) को नियंत्रित करता था।
प्रश्न 139: मौर्यकाल में विदेशों से कौन-से प्रमुख वस्त्र आयात किए जाते थे?
उत्तर: यूनान और चीन से रेशम और ऊनी वस्त्र आयात किए जाते थे।
प्रश्न 140: अशोक ने कौन-से प्राणी वध पर रोक लगाई थी?
उत्तर:
- गाय
- हाथी
- तोता
- मोर
प्रश्न 141: मौर्य प्रशासन में “कुंभकार” का क्या कार्य था?
उत्तर: यह मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य करता था।
प्रश्न 142: अशोक के शिलालेख किस प्रकार की लिपि में लिखे गए थे?
उत्तर: ब्राह्मी, खरोष्ठी, अरामाइक और ग्रीक लिपि में।
प्रश्न 143: “मेगस्थनीज” कौन था?
उत्तर:
मेगस्थनीज एक यूनानी राजदूत था, जिसे सेल्यूकस निकेटर ने चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था। उसने “इंडिका“ नामक पुस्तक लिखी।
प्रश्न 144: अशोक के शिलालेखों में प्रयुक्त प्रमुख शब्द कौन-से हैं?
उत्तर:
- धम्म – नीति और धर्म।
- देवानांप्रिय – अशोक के लिए प्रयुक्त।
- प्रिया दर्शन – अशोक का दूसरा नाम।
प्रश्न 145: “कनिष्क” किस वंश का राजा था और उसका बौद्ध धर्म से क्या संबंध था?
उत्तर: कनिष्क कुषाण वंश का राजा था और उसने महायान बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया।
प्रश्न 146: मौर्य प्रशासन में “अमात्य” कौन थे?
उत्तर: “अमात्य” राजा के सलाहकार और उच्च अधिकारी होते थे।
प्रश्न 147: किस अभिलेख से यह पता चलता है कि अशोक ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी?
उत्तर: सांची अभिलेख।

प्रश्न 148: मौर्यकालीन कर प्रणाली कैसी थी?
उत्तर: भूमि कर, व्यापार कर, खनिज कर, पशु कर आदि वसूले जाते थे।
प्रश्न 149: मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक कौन था?
उत्तर: बृहद्रथ मौर्य, जिसकी हत्या पुष्यमित्र शुंग ने कर दी थी।
प्रश्न 150: मौर्य साम्राज्य का पतन किन कारणों से हुआ?
उत्तर:
- कमजोर उत्तराधिकारी।
- विशाल साम्राज्य का प्रबंधन कठिन होना।
- आंतरिक विद्रोह।
- आर्थिक संकट।
प्रश्न 151: अशोक के किस शिलालेख में कलिंग युद्ध के प्रभावों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर: शिलालेख संख्या 13 में कलिंग युद्ध और उसके प्रभावों का उल्लेख किया गया है।
प्रश्न 152: चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में कहाँ संन्यास लिया?
उत्तर: चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में जैन धर्म अपनाकर संन्यास लिया और वहीं उनकी मृत्यु हुई।
प्रश्न 153: मौर्य प्रशासन में “युक्त” कौन थे?
उत्तर: “युक्त” मौर्य शासन में एक महत्वपूर्ण अधिकारी थे, जिनका कार्य प्रशासन और कर संग्रह की निगरानी करना था।
प्रश्न 154: अशोक ने बौद्ध धर्म कब अपनाया?
उत्तर: अशोक ने कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व) के बाद बौद्ध धर्म अपनाया।
प्रश्न 155: मौर्यकालीन प्रमुख नगर कौन-कौन से थे?
उत्तर:
- पाटलिपुत्र (राजधानी)
- तक्षशिला (शिक्षा केंद्र)
- उज्जैन (व्यापार केंद्र)
- सांची (बौद्ध धर्म का केंद्र)
- सोपारा और भरुकच्छ (गुजरात के प्रमुख बंदरगाह)
प्रश्न 156: मौर्य काल में सबसे अधिक कर किस पर लगाया जाता था?
उत्तर: कृषि पर – किसानों को उत्पाद का लगभग 25% कर के रूप में देना पड़ता था।
प्रश्न 157: चाणक्य द्वारा रचित “अर्थशास्त्र” किस विषय पर आधारित है?
उत्तर: अर्थशास्त्र राजनीति, प्रशासन, कर प्रणाली, अर्थव्यवस्था और सैन्य रणनीति पर आधारित है।
प्रश्न 158: अशोक ने किस बौद्ध संगीति का आयोजन किया था?
उत्तर: अशोक ने तीसरी बौद्ध संगीति (250 ईसा पूर्व) का आयोजन पाटलिपुत्र में कराया था।
प्रश्न 159: मौर्य शासन में “संपत्ति” विभाग का क्या कार्य था?
उत्तर: “संपत्ति” विभाग राजकीय संपत्तियों, भूमि, और वन संसाधनों की देखरेख करता था।
प्रश्न 160: अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कौन-से शिलालेख लिखवाए थे?
उत्तर: अशोक ने राजकीय शिलालेख और स्तंभ लेख लिखवाए, जिनमें धम्म नीति का प्रचार किया गया।
प्रश्न 161: अशोक के शिलालेखों की भाषा क्या थी?
उत्तर:
- ब्राह्मी (भारत में)
- खरोष्ठी (उत्तर-पश्चिम भारत)
- ग्रीक और अरामाइक (अफगानिस्तान)
प्रश्न 162: मौर्यकालीन गुप्तचर विभाग का प्रमुख अधिकारी कौन था?
उत्तर: अंतर्वेदीक नामक अधिकारी गुप्तचर विभाग का प्रमुख था।
प्रश्न 163: मौर्यकाल में राजस्व संग्रहण का प्रमुख अधिकारी कौन था?
उत्तर: समाहर्ता राजस्व संग्रहण का प्रमुख अधिकारी था।
प्रश्न 164: “मेगस्थनीज” ने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्यकालीन समाज को कितने वर्गों में विभाजित किया था?
उत्तर: मेगस्थनीज ने मौर्य समाज को 7 वर्गों में विभाजित किया था –
- दार्शनिक (ब्राह्मण)
- किसान
- चरवाहे
- शिल्पकार
- योद्धा
- न्यायाधीश एवं प्रशासक
- गुप्तचर एवं दास वर्ग
प्रश्न 165: अशोक द्वारा निर्मित प्रमुख स्तूप कौन-से हैं?
उत्तर:
- सांची स्तूप (मध्य प्रदेश)
- भरहुत स्तूप (मध्य प्रदेश)
- धमेक स्तूप (सारनाथ, उत्तर प्रदेश)
- रामनगर स्तूप (उत्तर प्रदेश)
प्रश्न 166: मौर्यकालीन स्तंभों पर उत्कीर्ण “लॉटस कैपिटल” (कमल की आकृति) का क्या अर्थ था?
उत्तर: लॉटस कैपिटल पुनर्जन्म और आध्यात्मिकता का प्रतीक था।
प्रश्न 167: अशोक के किस अभिलेख में दासों और सेवकों के कल्याण की बात कही गई है?
उत्तर: शिलालेख संख्या 5 में।
प्रश्न 168: “सप्तांग सिद्धांत” क्या था?
उत्तर: सप्तांग सिद्धांत चाणक्य द्वारा प्रतिपादित शासन प्रणाली थी, जिसमें राज्य के सात अंग बताए गए थे –
- स्वामी (राजा)
- अमात्य (मंत्री)
- जनपद (प्रजा एवं राज्य)
- दुर्ग (किले एवं सुरक्षा व्यवस्था)
- कोष (राजकोष/आर्थिक संसाधन)
- दंड (सेना एवं प्रशासन)
- मित्र (सहयोगी राज्य)
प्रश्न 169: मौर्यकाल में “परिषद” का क्या कार्य था?
उत्तर: परिषद एक प्रकार की सलाहकार समिति थी, जो राजा को नीतिगत और प्रशासनिक सुझाव देती थी।
प्रश्न 170: मौर्य प्रशासन में “अकस्मिक निधि” किसके लिए रखी जाती थी?
उत्तर: युद्ध, अकाल, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के लिए।
प्रश्न 171: मौर्यकाल में हाथियों की देखरेख के लिए कौन-सा विभाग था?
उत्तर: हस्त्याय विभाग।
प्रश्न 172: अशोक के शासनकाल में कौन-सा कर “सैनिकों के वेतन” के लिए लगाया जाता था?
उत्तर: बलि कर।
प्रश्न 173: मौर्यकालीन व्यापार का प्रमुख केंद्र कौन-सा था?
उत्तर: पाटलिपुत्र।
प्रश्न 174: मौर्य शासन में “धर्मस्थेय” का क्या कार्य था?
उत्तर: धर्मस्थेय न्यायिक अधिकारी थे, जो धार्मिक और नागरिक मामलों में न्याय प्रदान करते थे।
प्रश्न 175: मौर्यकाल में प्रमुख विदेशी व्यापारिक देश कौन-कौन से थे?
उत्तर:
- चीन – रेशम और कागज के लिए।
- ग्रीस और रोम – धातुएँ और आभूषण के लिए।
- श्रीलंका – मसाले और हाथीदांत के लिए।
प्रश्न 176: अशोक का कौन-सा शिलालेख “मानवता और अहिंसा” की शिक्षा देता है?
उत्तर: शिलालेख संख्या 11।
प्रश्न 177: मौर्य साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
- कमजोर उत्तराधिकारी।
- विशाल साम्राज्य का प्रबंधन कठिन होना।
- सैन्य शक्ति की कमी।
- प्रशासनिक भ्रष्टाचार।
- ब्राह्मणों और क्षत्रियों का विरोध।
प्रश्न 178: मौर्यकाल में “गुप्तचर विभाग” को क्या कहा जाता था?
उत्तर: मौर्य शासन में गुप्तचर विभाग को “गुह्याध्यक्ष“ कहा जाता था, जो राज्य की आंतरिक और बाह्य गतिविधियों पर निगरानी रखता था।
प्रश्न 179: अशोक के किस शिलालेख में पशु बलि पर प्रतिबंध की बात कही गई है?
उत्तर: पांचवें शिलालेख में पशु बलि पर प्रतिबंध लगाने का उल्लेख है।
प्रश्न 180: अशोक के शासनकाल में कौन-से तीन महत्वपूर्ण धार्मिक सुधार किए गए?
उत्तर:
- पशु बलि पर रोक
- शराब और मांसाहार के सेवन में कमी
- धम्म प्रचार और सामाजिक नैतिकता को बढ़ावा
प्रश्न 181: मौर्यकाल में “अधिकरण” क्या था?
उत्तर: “अधिकरण” एक प्रकार की न्यायिक संस्था थी, जो नागरिक और आपराधिक मामलों की सुनवाई करती थी।
प्रश्न 182: अशोक ने अपने शिलालेखों में स्वयं को किस नाम से संबोधित किया है?
उत्तर:
- देवानांप्रिय (देवताओं का प्रिय)
- प्रियदर्शी (सुंदर और दयालु दृष्टि वाला)
प्रश्न 183: “धम्म यात्रा” का क्या उद्देश्य था?
उत्तर: अशोक ने धम्म यात्रा शुरू की, जिसमें वह विभिन्न बौद्ध स्थलों की यात्रा करके धम्म (धर्म) का प्रचार करता था।
प्रश्न 184: मौर्य साम्राज्य में न्याय व्यवस्था कैसी थी?
उत्तर: न्याय व्यवस्था राजा, धर्मस्थेय (न्यायाधीश) और पंचायतों द्वारा संचालित होती थी।
प्रश्न 185: अशोक ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में कौन-सा स्थान अपनाया था?
उत्तर: माना जाता है कि अशोक ने सांची या सारनाथ में अपने अंतिम दिन व्यतीत किए।
प्रश्न 186: मौर्य शासन में “व्यवसायिक कर” किस पर लगाया जाता था?
उत्तर: मौर्य प्रशासन में व्यापारियों, कारीगरों और शिल्पकारों पर शुल्क (टोल टैक्स) लगाया जाता था।
प्रश्न 187: “अशोक चक्र” का क्या महत्व है?
उत्तर: अशोक चक्र धम्म का प्रतीक है और यह जीवन के सतत प्रवाह और प्रगति का प्रतीक माना जाता है। यह आज भारत के राष्ट्रीय ध्वज में भी शामिल है।
प्रश्न 188: अशोक के किस अभिलेख में महिलाओं के कल्याण पर ध्यान देने की बात कही गई है?
उत्तर: शिलालेख संख्या 9 में महिलाओं के कल्याण पर बल दिया गया है।
प्रश्न 189: मौर्य प्रशासन में “नागरिक मामलों” का प्रमुख अधिकारी कौन था?
उत्तर: नागरिक मामलों का प्रमुख अधिकारी नगराधिपति कहलाता था।
प्रश्न 190: अशोक ने किस स्थान पर बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण की?
उत्तर: अशोक ने उज्जैन में बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण की थी।
प्रश्न 191: “मौर्यकालीन लोहा गलाने के केंद्र” कौन-से थे?
उत्तर:
- गया (बिहार)
- तक्षशिला (पाकिस्तान)
- विदिशा (मध्य प्रदेश)
प्रश्न 192: अशोक का सबसे प्रसिद्ध शिलालेख कौन-सा है?
उत्तर: 13वां शिलालेख, जिसमें कलिंग युद्ध और धम्म नीति का उल्लेख किया गया है।
प्रश्न 193: अशोक द्वारा श्रीलंका भेजे गए प्रमुख बौद्ध मिशनरी कौन थे?
उत्तर:
- महेंद्र (पुत्र)
- संघमित्रा (पुत्री)
प्रश्न 194: अशोक ने किन राजाओं को बौद्ध धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया?
उत्तर:
- मिस्र के टॉलेमी द्वितीय
- सीरिया के एंटियोकस
- मकदूनिया के एंटिगोनस
प्रश्न 195: अशोक ने अपने शासनकाल में किस प्रकार के अस्पताल बनवाए?
उत्तर:
- मानव अस्पताल
- पशु चिकित्सालय
प्रश्न 196: “मौर्य शासन” में सेना की देखरेख का प्रमुख अधिकारी कौन था?
उत्तर: सेनापति मौर्य सेना का प्रमुख अधिकारी था।
प्रश्न 197: मौर्य प्रशासन में “सामंत” कौन होते थे?
उत्तर: सामंत वे थे जो राजा को कर देते थे और बदले में अपने क्षेत्र में शासन करते थे।
प्रश्न 198: “अशोक का सिंह स्तंभ” आज कहाँ स्थित है?
उत्तर: सारनाथ, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
प्रश्न 199: मौर्य शासन के पतन का प्रमुख कारण क्या था?
उत्तर:
- कमजोर उत्तराधिकारी
- अत्यधिक केंद्रीकरण
- सैन्य शक्ति की कमी
- राजकोष की कमजोरी
प्रश्न 200: मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद कौन-सा वंश सत्ता में आया?
उत्तर: मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद शुंग वंश सत्ता में आया, जिसके संस्थापक पुष्यमित्र शुंग थे।
प्रश्न 201: अशोक चक्र में कुल कितनी तीलियाँ होती हैं और उनका क्या महत्व है?
उत्तर: अशोक चक्र में कुल 24 तीलियाँ होती हैं, जो दिन के 24 घंटे और निरंतर प्रगति तथा समय के चक्र का प्रतीक हैं।
प्रश्न 202: अशोक चक्र को भारतीय ध्वज में कब शामिल किया गया?
उत्तर: 22 जुलाई 1947 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अशोक चक्र को राष्ट्रीय ध्वज के केंद्र में अपनाया गया।
प्रश्न 203: अशोक चक्र को तिरंगे में किस रंग में दर्शाया गया है?
उत्तर: अशोक चक्र तिरंगे में गहरे नीले रंग में दर्शाया गया है।
प्रश्न 204: अशोक चक्र का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
उत्तर: अशोक चक्र बौद्ध धर्म में धर्मचक्र प्रवर्तन का प्रतीक है और यह सम्राट अशोक द्वारा अपनाई गई धम्म नीति को दर्शाता है।
प्रश्न 205: भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला “अशोक चक्र पुरस्कार” किस क्षेत्र में दिया जाता है?
उत्तर: अशोक चक्र पुरस्कार शांतिकाल में अद्वितीय वीरता और सर्वोच्च बलिदान के लिए दिया जाता है।
प्रश्न 206: भारतीय मुद्रा में अशोक चक्र कहाँ अंकित होता है?
उत्तर: भारतीय नोटों और सिक्कों पर अशोक स्तंभ का चित्र अंकित किया जाता है, जिसमें अशोक चक्र भी मौजूद रहता है।
प्रश्न 207: अशोक चक्र को बौद्ध धर्म में किस प्रकार से दर्शाया गया है?
उत्तर: बौद्ध धर्म में अशोक चक्र को धर्मचक्र प्रवर्तन का प्रतीक माना जाता है, जो बुद्ध के उपदेशों का प्रतीक है।
प्रश्न 208: अशोक स्तंभ कहाँ स्थित है, जिसे भारत का राष्ट्रीय प्रतीक माना गया है?
उत्तर: सारनाथ में स्थित अशोक स्तंभ को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है।
प्रश्न 209: सम्राट अशोक के शासनकाल में अशोक चक्र का क्या महत्व था?
उत्तर: सम्राट अशोक ने अशोक चक्र को धम्म चक्र के रूप में प्रचारित किया, जो धर्म और नीति के मार्ग पर चलने का प्रतीक था।
प्रश्न 210: अशोक चक्र को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाने का उद्देश्य क्या था?
उत्तर: अशोक चक्र को अपनाने का उद्देश्य भारत की धर्मनिरपेक्षता, न्याय, शांति और सतत विकास को दर्शाना था।
प्रश्न 211: अशोक चक्र को तिरंगे में शामिल करने का क्या उद्देश्य था?
उत्तर: इसका उद्देश्य भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों, धर्मनिरपेक्षता और सतत प्रगति को दर्शाना था।
प्रश्न 212: अशोक चक्र को बौद्ध धर्म में किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर: इसे ‘धर्मचक्र’ के नाम से जाना जाता है, जो बौद्ध धर्म में ज्ञान और धर्म के प्रचार का प्रतीक है।
प्रश्न 213: अशोक चक्र की 24 तीलियाँ किसे दर्शाती हैं?
उत्तर: ये 24 तीलियाँ जीवन के 24 गुणों को दर्शाती हैं, जैसे प्रेम, साहस, धैर्य, दया, परोपकार आदि।
प्रश्न 214: भारतीय सेना और पुलिस में अशोक चक्र का क्या महत्व है?
उत्तर: अशोक चक्र वीरता पुरस्कार उन सैनिकों और नागरिकों को दिया जाता है जिन्होंने अद्वितीय साहस और बलिदान का परिचय दिया हो।
प्रश्न 215: क्या अशोक चक्र का उपयोग किसी और देशों में भी किया जाता है?
उत्तर: अशोक चक्र विशेष रूप से भारत से जुड़ा है, लेकिन अन्य बौद्ध देश भी इसे धर्मचक्र के रूप में सम्मान देते हैं।
प्रश्न 216: अशोक चक्र का उपयोग किन भारतीय संस्थानों में किया जाता है?
उत्तर: इसे भारत सरकार, सुप्रीम कोर्ट, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और विभिन्न सरकारी एजेंसियों के प्रतीकों में शामिल किया गया है।
प्रश्न 217: अशोक चक्र से प्रेरित किसी अन्य भारतीय प्रतीक का नाम बताइए?
उत्तर: भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक में अशोक स्तंभ से लिया गया सिंह शीर्ष भी शामिल है।
प्रश्न 218: अशोक चक्र और राष्ट्रध्वज का संबंध क्या है?
उत्तर: अशोक चक्र भारतीय ध्वज के केंद्र में स्थित है और यह प्रगति, धर्म और न्याय का प्रतीक है।
प्रश्न 219: सम्राट अशोक ने अशोक चक्र का उपयोग कहाँ-कहाँ किया?
उत्तर: सम्राट अशोक ने इसे अपने स्तंभों और शिलालेखों में उपयोग किया, विशेष रूप से सारनाथ, संकिसा और वैशाली में।
प्रश्न 220: अशोक चक्र और भारतीय संविधान में क्या संबंध है?
उत्तर: भारतीय संविधान में न्याय, स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांत अशोक चक्र के मूल्यों से मेल खाते हैं।
प्रश्न 221: अशोक चक्र का स्वरूप किस प्रकार का होता है?
उत्तर: अशोक चक्र एक गोलाकार चक्र होता है, जिसमें 24 तीलियाँ होती हैं, जो जीवन, समय और निरंतर प्रगति का प्रतीक हैं।
प्रश्न 222: अशोक चक्र को भारत के किन-किन प्रमुख स्थानों पर देखा जा सकता है?
उत्तर: अशोक चक्र को भारतीय संसद, सुप्रीम कोर्ट, सरकारी भवनों, मुद्रा और राष्ट्रीय ध्वज पर देखा जा सकता है।
निष्कर्ष
सम्राट अशोक और अशोक चक्र भारत के इतिहास और संस्कृति के दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। अशोक का धम्म नीति और उनकी शिक्षा आज भी प्रासंगिक हैं और हमें नैतिकता, अहिंसा और सत्य की राह पर चलने की प्रेरणा देती हैं। अशोक चक्र, जिसे आज हम अपने राष्ट्रीय ध्वज में देखते हैं, हमें निरंतर कर्म करने, सच्चाई के मार्ग पर चलने और भारत को एक सशक्त और विकसित राष्ट्र बनाने की प्रेरणा देता है।
Excellent