इस कहानी का किसी जीवित या मृत या जाती धर्म या सम्प्रदाय या क्षेत्र से कोई संबंध नहीं है। कहानी के सिर्फ पात्र है। ये कहानी सिर्फ शिक्षा या मनोरंजन के लिए बनाया गया है।
संवेद या इन्द्रियबोध (sense) उन शारीरिक क्षमताओं को कहते हैं जिनसे प्राप्त हुए ज्ञान से किसी जीव को अपने वातावरण का बोध होता है। मनुष्यों में पाँच प्रमुख संवेदी अंग (इन्द्रियाँ) हैं- देखना, सुनना, छूना, सूंघना और स्वाद लेना ।
संवेदना शब्द बहुत ही विस्तृत महत्व अपने में छिपा रखा है। मनुष्य हो या जीव जंतु ये सभी में ऊपर वाला या प्रकृति कूट कूट कर भर रखा है। पर मनुष्य में ये प्रकृति या ऊपर वाला कुछ ज्यादा ही दिया है। पर मनुष्य इसका इस्तेमाल अपने शान शौकत या दिखवा के लिए करना शुरू कर देता है। वहीं मनुष्य के लिए बेकार हो जाता है।
मनुष्य जीव जंतु हो या पक्षी सभी को अपने कैद में रखकर उसके साथ रहकर अपना जीवन बिताना चाहता है। पर यही कभी कभी पशु या पक्षी के लिए घातक बन जाता है।
मनुष्य हो या पक्षी या जीव जंतु कोई भी गुलामी का जीवन नहीं जीना चाहता है। पक्षी चाहता है कि वो भी अपने छोटे से घोंसले में रहे और आसमान में खुला विचरण करे। जीव जंतु भी चाहता है कि मैं भी खुला विचरण करे। मनुष्य भी यही चाहता है। पर जीव जंतु या पक्षी पर मनुष्य भारी पड़ जाता है और अपने कैद में रखना चाहता है।
मनुष्य धीरे धीरे पशु पक्षी का सारा जमीन बन उपवन पर अधिकार कर लिया और बाकी बचे हुए जगह और उसे भी कैद करके रखना चाहता है। ये कही न कही संवेदना की कमी मनुष्य में है।
मनुष्य जिस तरह से सामाजिक प्राणी है उसी तरह से पशु पक्षी भी सामाजिक प्राणी है। पशु पक्षी भी चाहता है कि वो भी अपने परिवार समाज के साथ रहे और उसके सभी सुख दुख मिल बाटकर साझा करे।

मनुष्य में तो सामाजिकता जिस तरह से धीरे धीरे कम होता जा रहा है उसी तरह मनुष्य पशु पक्षी को कैद में रखकर उसे भी उनकी सामाजिकता में कमी लाने की कोशिश करता रहता है।
अब कहानी की तरफ चलते है।
एक बहुत बड़े अधिकारी हैं। अधिकारी यानी साहब जी ।
आज जहां सभी देशों में बेरोजगारी एक बहुत बड़ा मुद्दा है। वहीं एक बड़े पद पर पहुंचना एक बहुत बड़ी बात होती है। एक बड़े पद पर पहुंचने के लिए लोग न जाने कितने बुक कितना अध्ययन कितनी तपस्या करते है उनका विवरण नहीं किया जा सकता है।
बहुत समय पहले की बात है। अधिकारी जी अपने पूरे परिवार के साथ कही जा रहे थे। साहब जी के साथ पूरा उनका सुरक्षा के लोग और जो भी तमाम चीजें उपलब्ध होना चाहिए वो पूरा काफिला चल रहा था।
साहब जी का काफिला शहर से निकल कर गांव से होते हुए वन उपवन होते हुए गुजर रहा था। सभी लोग बहुत खुश थे। प्रकृति का आनंद उठा रहे थे और आगे बढ़ते जा रहे थे।
मनुष्य प्रकृति का सबसे ज्ञानी आदमी है। मनुष्य एक से बढ़कर एक आविष्कार एक से बढ़कर एक महल पुल सभी का निर्माण कर चुका है और दिन प्रतिदिन उसमें विकास भी कर रहा है।

वहीं पशु या पक्षी को भी कम नहीं आका जा सकता है।
पक्षी के घोंसले को ध्यान से देखे तो उसमें उनका सारा इंजीनियरिंग छिपा हुआ है। एक छोटे से पक्षी जिसने कही कोई विद्यालय में या कही कोई उसे ट्रेनिंग नहीं दिया पर फिर भी पक्षी कितना मनोहर मनमुग्ध करने वाला और वातावरण अवरोधक और सुरक्षित घर बना लेता है। ये प्रकृति का ही तो वरदान है।
साहब जी का काफिला गुजर रहा था। अचानक साहब जी की धर्म पत्नी जी का ध्यान एक सुंदर सा गौरैया के घोंसले पर जाता है।उस गौरैया के घोंसले को देखकर सोचने लगती है कि यदि मैं अपने घर में ये घोंसले को लगा देती हु तो घर कितना सुंदर लगेगा। अतः वो साहब जी को अपनी बात बताती है। साहब जी अचानक से अपनी काफिला वन उपवन में रुकवा देते है। सुरक्षाकर्मी को कहते है कि ये घोंसले लाकर मुझे दे दो। बगल में एक गरीब जैसा दिखने वाला गांव का आदमी खरा था। साहब जी कहते है कि उस आदमी को पचास रुपया दे दो वो आदमी पेड़ से उस गौरैया का घोंसला उतार कर दे देगा।
मनुष्य के पास जब ज्यादा धन हो या ज्ञान या शोहरत तब कोई भी चीज बहुत आसान लगती है। उसे लगता है कि हम पैसे फेकेंगे और सब काम हो जाएगा। पर ऐसा भी नहीं है।
सुरक्षाकर्मी उस गांव वाले से कहता है कि ये लो भाई पचास रुपया और वो गौरैया के घोंसले को उतार कर लाकर दे दो। साहब जी की धर्मपत्नी को ये घोंसला पसंद आ गया है। गांव वाला आदमी ने बहुत ध्यान से उस गौरैया के घोंसले को देखा और उसे मना कर दिया।
सुरक्षाकर्मी ने साहब जी तक बात पहुंचा दिया कि साहब वो गांव वाला आदमी माना कर दिया।
किसी की भी धर्मपत्नी हो । उनकी बात मानना सबकी मजबूरी होती है या खुश करना एक बहुत बड़ी बात होती है।
साहब जी सोच रहे है कि कही उस गांव वाला को कम पैसे दे रहे है । इसीलिए वो उस गौरैया के घोंसले को पेड़ से उतार कर नहीं दे रहा है।
किसी के वेदना हो या संवेदना पैसों से नहीं खरीदी जाती है।
साहब जी अब गुस्से से उतर कर उस गांव वाले के पास जाते है। उस गांव वाले से साहब जी कहते है कि ये लो एक हजार रुपया और उस गौरैया के घोंसले को उतार कर दे दो।
आज से पचास साल पहले एक हजार रुपया का मूल्य बहुत होता था। साहब जी किसी भी तरह से उस घोंसले को प्राप्त करना चाहते थे । पैसा उनके लिए कोई मूल्य नहीं रख रहा था।
पर गांव वाला गरीब सा दिखने वाला आदमी ने फिर साहब जी को माना कर दिया उस गौरैया के घोंसले को उतार कर देने से।

साहब जी उस गांव वाले आदमी के सामने खड़े थे। उनके पिछे तमाम सुरक्षा कर्मी और उनका परिवार भी खरा था।
साहब जी का गुस्सा सातवें आसमान पर था और उस गांव वाले आदमी को घूरे जा रहे थे। साहब जी को लगा कुछ तो कारण होगा । वो तो जान लेते है । आखिर वजह कया है।
साहब जी उस गांव वाले जो गरीब सा दिख रहा था उससे पूछते है कि मैं तुम्हे इतना पैसा दे रहा हु। फिर भी उस गौरैया के घोंसले जो ज्यादा ऊंचाई पर नहीं है लाकर क्यों नहीं दे रहे हो
गांव वाला आदमी पहले साहब जी को फिर सुरक्षा कर्मी और उनके परिवार को देखता है और बोलता है कि साहब जी आप जिस गौरैया के घोंसले की जिद कर रहे है उसमें गौरैया अपने अंडे रख कर गई है। गौरैया का बच्चा उसमें पल रहा है। यदि हम कुछ पैसों के लिए उसे उतार कर आपको दे देते है तो आप लेकर अपने घर चले जाएंगे और खुश हो जाएंगे। पर आप सोचिए शाम को जब वो गौरैया पक्षी आएगी और पहले अपना घोंसला खोजेगी । उसका घोंसला नहीं मिलेगा और उनके अंडे या बच्चे नहीं मिलेगा तो उस गौरैया पर कया बीतेगा उसका थोड़ा सा भी अंदाजा है आपको। आप भी दिन को ड्यूटी जाते है और शाम को घर आने पर आपका घर या बच्चा या परिवार सब नहीं मिलेगा तो आपको कैसा लगेगा।
पशु या पक्षी के साथ भी अपने जीवन की तरह संवेदना रखिए। हमलोग तो इन लोगों के बीच में रहते है उस गौरैया को भी पहचानते है जिसका ये घर है। हमलोग प्रकृति के बीच में रहते है और सभी का सम्मान और सभी पशु पक्षी के साथ संवेदना रखते है।
उस गरीब सा दिखने वाला गांव का आदमी की बात सुनकर साहब जी सुरक्षा कर्मी और उनके परिवार का तो मानो पैरों तले जमीन ही घिसक गई।
साहब जी का काफिला अब वापस फिर से चलने लगा। साहब जी अब गौरैया के घोंसला बिना लिए चल दिए।
साहब जी के दिमाग में अब एक बहुत ही गहरी बात छप गई उस गांव वाले आदमी की बात सुनकर।
साहब जी सोचते है कि हमने कितनी सारी किताबें पढ़ी। कितना अध्ययन किया । नौकरी के लिए कितना परिश्रम किया। पर जो बात उस गांव वाले अनपढ़ आदमी के दिमाग में आया मेरे दिमाग में क्यों नहीं आया। फिर साहब जी ने ये प्रतिज्ञा लिया कि अब मैं सभी के साथ जीव जंतु हो या मनुष्य सभी के साथ संवेदना रखूंगा।
शिक्षा:-
मनुष्य को मनुष्य के अलावा सभी जीव जंतु या पशु पक्षी के साथ संवेदना रखना चाहिए।
Excellent