प्रेम

इस कहानी का किसी जीवित या मृत या जाती धर्म या सम्प्रदाय या क्षेत्र से कोई संबंध नहीं है। कहानी के सिर्फ पात्र है। ये कहानी सिर्फ शिक्षा या मनोरंजन के लिए बनाया गया है।

सावन का महीना था। चारों तरफ घनघोर काले काले बादल छाए हुए थे। तेज हवा चल रहा था। मूसलाधार बारिश हो रही थी बीच बीच में बिजली भी कड़क रही थी।

ऐसा लग रहा था कि मानो प्रकृति मानव या पशु को सब कुछ प्रदान कर देना चाह रही हो।  पूरा वातावरण में जो गर्मी थी उसे वो शांत कर देना चाह रही हो। मूसलाधार बारिश से सभी को बहुत आराम मिल रहा था।

नदी नाले तालाब जो सूखे थे उसमें अब पानी जमा होना शुरू हो गया है। किसान जो बारिश की आश लिए प्रकृति से उम्मीद बनाए बैठे थे लगता है उसका असर हो रहा है।

पशु भी गर्मी से निजात पाने के लिए बारिश में उछल उछल कर नहा रहे है। एक तरफ बच्चों की टोली भी बारिश का आनंद उठा रहे है और खुश हो रहे है।

बरसात की गर्मी बहुत ही खराब होता है। बहुत लोगों को बरसाती घमौरी हो जाता है। लोगो की मानता है कि बरसात की पानी में नहाने से घमौरी से निजात मिल जाता है। जिन लोगों को घमौरी हो गया था वो भी बरसात के पानी में नहा रहे है प्रकृति का प्रसाद समझकर।

जहां बारिश लोगो को गर्मी से निजात दिला रहा है, किसान को फायदा होगा वहीं तेज आंधी और वारिश से पक्षियों का घोंसला बर्बाद हो गया है। पंछी अपने अपने पेड़ से उड़कर कही और जगह की तलाश कर रहे है। पक्षी भी अपने परिवार के साथ इस वारिश से परेशान है।

इस मूसलाधार बारिश और आंधी से कई पुराने और कमजोर पेड़ भी टूट कर गिर गए है। कई जगह रास्ता अवरोध हो गया है।

जिनके घर फूस का और मिट्टी का बना है उनके यह वारिश टिप टिप कर टपक रहा है लोग परेशान है।

 बारिश का मौसम हो और पकौड़े की बात न हो तो ठीक नहीं है। बहुत शौकिया लोग जो पकौड़े के शौकीन है उनके यहां पकौड़े तलना शुरू हो गया है और चटनी के साथ आनंद उठा रहे है बरसात का।

सड़क पर, गलिये में और लगभग सभी जगह घुटनों भर पानी जम गया है। वारिश है कि रुकने की नाम ही नहीं ले रहा है।

एक नमकीन, मिठाई और पकौड़े की मशहूर दुकान है।

इस वारिश में उस दुकान पर काफी भीड़ लगा है।

उस दुकान पर गर्म गरम जलेवी तली जा रही है शुद्ध देशी घी में। तरह तरह के पकौड़े भी छाना जा रहा है। प्याज, आलू, टमाटर, पनीर और न जाने कितने और तरह तरह के पकौड़े बन रहे है। नमकीन भी भरी मात्रा में बन रहा है। कही गरमा गर्म गुलाबजामुन भी बन रहा है।

जैसे जैसे वारिश की रफ्तार तेज होती जा रही है वैसे वैसे लोगों की भूख भी तेज हो रही है और खाएं जा रहे है। दुकान की बिक्री भी तेज हो रहा है।

बाहर कुछ पशु, पक्षी भी इंतजार में बैठे है कि हमें भी कुछ खाने को मिल जाएगा और टूट पर रहे है आपस में।

पूरा वातावरण मानो वहा के सुगंध से मन मोहित है। इसकी सुगंध चारों तरफ फैल गया है।

एक संत / फकीर / बाबा है जो कि इस वारिश में अपने आप में मग्न है। वारिश में झूम रहे है। प्रकृति को आशीर्वाद दे रहे है। इन्हें किसी से कोई लेना देना नहीं है। वो अपनी दुनिया में मग्न है और झूमकर वारिश में आगे चले जा रहे है।

वो प्रकृति का शुक्रिया अदा कर रहे है। बाबा सोचते है कि हे ऊपर वाले वारिश का आनंद तो आपकी दया से उठा ही रहा हु। बस अब कुछ खाने की व्यवस्था हो जाती तो बहुत अच्छा होता।

तभी दुकान की पकड़े, जलेवी, गुलाबजामुन इत्यादि की सुगंध बाबा के नाक में पड़ती है। बाबा उसका अनुसरण करते हुए उस मिठाई की दुकान पर पहुंच जाते है और एक किनारे पर खरा हो जाते है। दुकानदार बाबा को पहचानता है। दुकानदार बाबा को आकर जलपान करने बोलता है। पर बाबा कहते है कि मेरे पास पैसा नहीं है। दुकानदार बोलता है कि बाबा आपसे पैसा नहीं लेंगे। बाबा उस दुकान पर भरपेट और मन भर जलपान करते है। को लगभग वहां बनी हुई सभी चीजों का स्वाद लेकर खाते है। फिर बाबा दुकानदार को आशीर्वाद देकर फिर से वारिश में झूमते हुए वहा से चल देते है।

इधर एक नव विवाहिता जोड़ी कही से लौट रहा है। पति और पत्नी दोनों काफी सजे धजे थे। पर वारिश ने उन जोड़ी की सारी सजावट पर पानी फेर दिया है। फिर भी वो दोनों काफी खुश है और जल्दी बारिश से निजात पाने के लिए घर पहुंच जाना चाहते है। वो दिनों अपने घर के तरफ तेजी से चले जा रहे है।

इधर बाबा भी पानी से खेलते हुए चले जा रहे है

अचानक पानी से जो बाबा चहलकदमी करते आगे जा रहे थे उसका पानी का कुछ हिस्सा गलती से नव विवाहिता पर जा पड़ता है

अब इसके पति को बहुत गुस्सा आता हैं और बाबा को बहुत मरता है। बाबा गिर जाते है और फिर आगे चल देते है

नव विवाहिता जोड़ी अब अपने घर पहुंचता है

वारिश से भीगने के कारण उसका पति तेजी से सीढ़ियों पर चला जा रहा था। इस दौरान वो सीढ़ी से गिर जाता है और उसकी मौत हो जाता है।

अब उसके घर में सन्नाटा छा जाता है। पास पड़ोसी सभी इकट्ठा होते है और वारदात की जानकारी हासिल करता है। उसकी पत्नी सारा वारदात बता देती है।

इधर बाबा सोचते है कि हे ऊपर वाले आपकी कया लीला है। अभी अपने कितना अच्छा जलपान कराया और अब मार खिलाई। पर ऊपर वाले से शिकायत नहीं किए बाबा और शुक्रिया अदा किए।

नव विवाहिता का परिवार बाबा को पकड़ कर ले आता है और कहता है कि आप ने ही शायद कोई श्राप दिया होगा तभी इसका पति मर गया है।

 बाबा कहते है कि ये अपनी पत्नी से इतना प्यार करता है कि पानी का थोड़ा सा छोटा गलती से पर गया तो हमें बहुत मारा । आपलोग सोचिए कि मैं ऊपर वाले से दिनरात इतना प्रेम करता हु कि कोई हिसाब नहीं और बिना कोई लोभ के तो उसे कितना गुस्सा आया होगा । ये इसके कर्मों का फल है। ऊपर वाले या प्रकृति से प्रेम करे। ऊपर वाला या प्रकृति आपसे प्रेम करेगी आपको सुरक्षित रखेगा।