साहब की दीपावली

इस कहानी का किसी जीवित या मृत या जाती धर्म या सम्प्रदाय या क्षेत्र से कोई संबंध नहीं है। कहानी के सिर्फ पात्र है। ये कहानी सिर्फ शिक्षा या मनोरंजन के लिए बनाया गया है।

मनुष्य प्रकृति का या ऊपर वाले का एक बनाया हुआ खिलौना मात्र है। प्रकृति या ऊपर वाले खिलौने में जितना चाभी भरते है खिलौना उतना देर तक चलता है। पर मनुष्य थोड़ा ज्ञान या धन या शोहरत पाकर समझता है कि मैं तो बहुत महान हु। बाकी सब बेकार है। यही मनुष्य को समझना उस पर भारी पर जाता है। मनुष्य समझता है कि मैं और लोगो से अलग हु। सो सकता है सब मनुष्य में अलग अलग गुण विचार होते है। सबकी सोच अलग अलग होता है। कोई कम मेहनती होता है तो कोई ज्यादा। कोई कम धनी तो कोई ज्यादा धनी । कोई मंद बुद्धि तो कोई ज्यादा बुद्धि वाला हो सकता है। पर ऊपर वाले या प्रकृति सब संतुलन बना कर रखता है। तभी तो ये संसार चल रहा है।

त्योहारों का महीना भी कितना गजब होता है। कितनी खुशी जीवन में लेकर आता है। त्योहार की महीनों में मनुष्य तो क्या प्रकृति भी हरि भरी और आनंदित रहती है। हरेक जगह खुशी ही खुशी का माहौल रहता है। बाजार हो रेलवे स्टेशन हो या सड़क हो ये एयरपोर्ट सभी जगह भीड़ ही भीड़ लगी रहती है। सभी जगह खरीदारी होते रहता है। लगभग सभी लोगों की आमदनी भी ज्यादा हो जाता है।

पर कभी किसी गरीब आदमी का त्यौहार लोगो ने जानने की कोशिश की होगी। किसी को क्या मतलब है किसी गरीब के बारे में जानने के लिए। पर समाज में या इस प्रकृति में आज भी ऐसे लोग है । पर कम है। जो गरीब का ख्याल रखते है।कम पैसे वाले अमीरों से ज्यादा खुशी और नियम मुताबिक अपनी त्यौहार मनाते है।

जो लोग बहुत ही बड़े बारे आला अधिकारी है या अमीर है उनकी भी त्योहारों के बारे में क्या कहना। उनकी त्यौहार भी बहुत ही निराला होता है। बहुत ही आवभगत होता है तरह तरह का गिफ्ट मिलता रहता है। तरह तरह से उनका अभिनंदन किया जाता है।

चलिए अब एक साहब की तरफ कहानी लेकर चलते है।

एक साहब है। बहुत बड़े आला अधिकारी है। उनका बहुत बड़ा रुतबा है। ईमानदार भी है। उदार प्रवृत्ति के भी है। सभी उन्हें आदर से देखते है और इज्जत भी करते है।

ऐसे तो साहब के पास हमेशा कोई न कोई लोग किसी न किसी तरह का गिफ्ट हमेशा लाते ही रहते है। इसकी कोई कारण नहीं था। साहब के पास जा रहे है तो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।

 सिर्फ गिफ्ट की बात कर रहा हु। इसे घुस या कुछ और न समझा जाए। ये सिर्फ कहानी को आगे ले जाने की प्रक्रिया है।

त्योहारों में दीपावली का त्यौहार सबसे अच्छा गिफ्ट के मामले में और बहुत कुछ में अच्छा माना जाता है।

 ऐसे सभी त्यौहार अपने अपने जगह अपनी अपनी मान्यता के कारण मशहूर होता है। सबका अपना अपना रीति रिवाज है।

दीपावली से लगभग दस दिन पहले से ही साहब के पास लोगो का भीड़ लगा रहता था। दीपावली की शुभकामना और गिफ्ट देने के लिए। क्योंकि कुछ लोग अपने घर जाने वाले थे तो कुछ लोग को उस दिन समय नहीं मिल पाता। उनके जितने जानने वाले अपनी हाजरी साहब के पास लगा लेना चाहते थे। दीपावली से पहले ही साहब का पूरा घर गिफ्ट से भर जाता था।

दीपावली से पहले जो वर्किंग दिन होता उस दिन तो साहब के पास गिफ्ट की बरसात हो जाती। इसे ले जाने के लिए अलग से गाड़ी मंगवानी पार्टी थी। साहब इस तरह के चीजों का आदि हो गए थे। की यदि बच गया तो दीपावली के दिन जरूर मिलकर शुभकामनाएं और गिफ्ट दे आता।

इस बार साहब दीपावली से दो महीने पहले सेवानिवृत हो गए है। साहब अब अपने घर पर आ गए है। आराम से उनकी जिंदगी कट रही है। अब उन्हें ऑफिस का कोई चिंता नहीं है। सुबह सबेरे उठकर नित्यकर्म से निपटकर बहुत सारे औषधि का सेवन करते और मॉर्निंग वॉक पर जाते योगा करते फिर स्नान ध्यान करके नाश्ता। फिर पेपर लाकर बैठ जाते। साहब की लगभग ये दिनचर्या बन गई थी।

आज दीपावली है। सुबह बहुत ही खुश है कि लोग मुझे मिलने आएंगे। कुछ गिफ्ट लाएंगे। पहले दीपावली में दस दिन पहले ये शिलशिला शुरू हो जाता था। साहब सोच रहे है कि शायद मैं सेवानिवृत हो गया हु इसलिए दीपावली के दिन ही मिलने और गिफ्ट लेकर आएंगे।

शाम के पांच बज गए। पर उनसे कोई नहीं मिलने आया। साहब बहुत निराश है। बार बार दरवाजे की तरफ जा रहे है कि शायद कोई मिलने आ जाए और कोई मुझे शुभकामना दे जाए और बैठकर कुछ बाते करे।

पर कोई नहीं आया।

हारकर साहब पेपर लेकर बैठ गए।

उनकी नजर एक आध्यात्मिक लेख पर पर गया। साहब उसे पढ़ने लगे।

आध्यात्मिक लेख ये है जो साहब पड़ रहे है :

एक गांव में कई दार्शनिक मूर्ति थी जिसे किसी अन्य उपयोगी जगह ले जाना था। काफी विचार के बाद पता लगाया गया तो पाया गया कि इसे किसी गधे से ले जाना उचित है। गधे के मालिक को बुलाया गया। गधे के मालिक को कई दिनों से कोई कम नहीं मिला था तो गधे का मालिक बहुत खुश था कि कुछ तो कम मिला। ऐसे भी गधा कई दिनों से बिना काम किए ही खाना खा रहा था।

अब गधे के ऊपर कई दार्शनिक मूर्ति लाद दी गई। गधा आगे आगे चलना शुरू कर दिया और गधे के मालिक उसके पीछे चलने लगा।

जहां जहां जिस गांव से गधा गुजरता वहां वहां गांव के लोग उस दार्शनिक मूर्ति को प्रणाम करते आदर सत्कार करते। गधे के साथ साथ उसके मालिक को भी गांव वाले कुछ खाने को दे देते। गधे और उसका मालिक को ये सब बहुत ही अच्छा लग रहा था। गधे और उसका मालिक को लग रहा था कि मैं और मेरा गधा कितना महान है कि जहां से भी गुजर रहा हु वहां वहां गांव वाले नत्मस्तक हो रहे है और आदर सम्मान कर रहे है। इसी तरह का सिलसिला चलता रहा और गधा और उसका मालिक गंतव्य स्थान तक पहुंच गया। दार्शनिक मूर्ति को वह रख दिया गया। गधा और उसका मालिक रात भर वही आराम करता है।

अगले दिन जब वहां से चलता है तो गधे के मालिक अब वापसी में  गधे के ऊपर आलू प्याज और हरि सब्जियां लड़ देता है। गधा आगे आगे और उसका मालिक पीछे पीछे चलने लगता है। एक गांव दूसरा गांव गुजर जाता है। पर कोई गांव वाला अब उस गधे और उसका मालिक पर कोई ध्यान नहीं देता है। गधा और उसका मालिक सोचता है कि जाते समय तो लोग झुककर प्रणाम कर रहे थे। आरती उतार रहे थे खाने को भी मिल रहा था। अब गधे को काफी गुस्सा आता है। अब गांव वाले का ध्यान आकर्षित करने के लिए गधा अब जोर जोर से ढेंचू ढेंचू शोर करना शुरू कर देता है। इसपर गांव वाले को काफी गुस्सा आता है और गांव वाले गधे और उसके मालिक को बहुत पिटाई करता है। गधा बेचारा निसहाय प्राणी बहुत सोच में पर जाता है। पर कर क्या सकता है। किसी तरह गधे का मालिक गांव वाले से पिटाई खाने के बाद गधे को लेकर अपना घर पहुंचता है।

साहब तो तेज तरार और तेज बुद्धि के थे ही। तुरंत उनकी दिमाग में बैठ गया कि जिस तरह गधे पर जब तक दार्शनिक मूर्ति थी तब तक गधे और उसका मालिक का लोग आवभगत करते रहे। जैसे कि दार्शनिक मूर्ति की जगह आलू प्याज और हरि सब्जियां गधे पर लाद दी गई उसका मन घट गया। दरअसल उस दार्शनिक मूर्ति का महत्व था। साहब सोचते है कि मैं भी तो सिर्फ एक गधा ही था। जब तक मेरे ऊपर ओहदे रूपी दार्शनिक मूर्ति था तब तक लोग मुझे मिलने और गिफ्ट देने आया करते थे। अब तो मैं सिर्फ गधा ही रह गया। जो कि सिर्फ गधे का महत्व कोई नहीं देता है। जब तक दार्शनिक ओहदे रूपी दार्शनिक मूर्ति मेरे पास था तब तक मेरे यहां इतना ड्राई फ्रूट फल मिठाई और न जाने कितने गिफ्ट आया करता था कि परिवार और दोस्तों में बांटने के बाद भी ड्राई फ्रूट साले के लिए बच जाता था।

साहब अब सहज होकर सोचते है कि चलो पत्नी के कामों में कुछ सहायता कर देता हु। पर साहब की धर्मपत्नी उन्हें काफी देर से देख रही थी कि साहब आज आध्यात्मिक वाला पन्ना पड़ रहे है। पर उनकी भी उन्हें ये कह कर माना कर दी कि पूरा जीवन मेरे कामों में सहायता नहीं किए तो आज आध्यात्मिक जान पाकर सहायता करने चले है। मैं तो पहले की कहती थी को आप मात्र गधे के अलावा कुछ नहीं है। साहब अब निराश होकर बैठ गए।

शिक्षा:-

जब तक आप अपने ओहदे पर है उस समय भी अपना व्यवहार समझ परिवार में सामान्य रखे। जन कल्याण का काम करे। लोग दुआ देंगे जो कि जीवन भर का उपहार होगा।

 प्रकृति का भी सुरक्षा करे। पर्यावरण का भी ध्यान रखें। ये प्रकृति आपको जीवन भर गिफ्ट देता रहेगा।

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