इस कहानी का किसी जीवित या मृत या जाती धर्म या सम्प्रदाय या क्षेत्र से कोई संबंध नहीं है। कहानी के सिर्फ पात्र है। ये कहानी सिर्फ शिक्षा या मनोरंजन के लिए बनाया गया है।
आंख पर न जाने कितने फिल्म कितने शायरी बनी है न जाने कितनी कहानी लिखी गई है। ना जाने कितने उपन्यास लिखा गया है। उसका गणना करना मुश्किल है।
पर आंखे है कि जितना भी व्याख्या करे सब कम हो जाता है।
आंख मनुष्य के जीवन में एक बहुत ही अहम रोल अदा करता है। आंख मनुष्य के सारे कायाकल्प रूपी चरित्र का प्रतीक है। आंखे किसी को किस तरह से तरजीह दे रहा है वो सब बाया कर देता है।
आंखों की कई प्रकार होता है। उसका मै यह वर्णन नहीं करूंगा। ये श्रृंगार रस का विषय है।
आंखे एक प्रकार का वो डिजिटल उपकरण है जिसमें सारे विकल्प उपलब्ध है। इसमें रिकॉर्डिंग की असीमित क्षमता है। आंखे जो एक बार देख लेता है उसे जीवन भर बस जाता हैं। भले ही उसका ज्ञानेंद्रियों का काम करना बंद हो जाता हो।
लोग नाग नागिन की किदवंती तो सभी लोग जानते होंगे। जिसमें किसी एक नाग या नागीन को कोई मनुष्य मार देता है तो मरे हुए नाग या नागीन के आंखों में मारने वाले की तस्वीर उनके आंखों में रिकॉर्ड हो जाता है। बाद में वो नाग या नागीन उस आदमी से बदला लेकर अपना प्रतिशोध लेता है ।
हमारे समाज में या प्रकृति में भी बहुत सारे आंखे है जो निरन्तर देख रहा है मनुष्य रूपी नाटककार को जो अलग अलग रूप बना कर लोगो को धोखा दे रहे है
पहले हमलोग प्रकृति को धोखा दे रहे हैं। प्रकृति को तरह तरह से उत्पीड़न कर उसका उपहास बना कर प्रकृति के साथ मजाक कर रहे है। कभी प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग करके तो कभी नदी नाले में कचरे डाल कर के तो कभी अनायास ही तरह तरह के असामान्य व्यवहार प्रकृति के साथ करके। हम मानव ये समझते है कि कोई कुछ नहीं देख रहा है । पर प्रकृति में लाखों लाखों में डिजिटल कैमरा लगा रखा है जो सब देख रहा है कि कौन आदमी अपनी कूड़ा कचरा अपनी पड़ोसी के दरवाजे पर रख रहा है और अपना दरवाजा साफ रख रहा है। कौन अपनी मानसिक कमजोरी रूपी कचरा समाज में फेक रहा है। प्रकृति सब देख रहा है और समय समय पर प्रकृति उसका भयंकर रूप भी मनुष्य को देता है। पर मानव रूपी अहंकारी और जानी को अश्क भी असर नहीं पड़ता है । इसके बावजूद भी मनुष्य प्रकृति को बरबाद करने पर तुला हुआ है
मनुष्य जिस तरह से चाहता है कि मेरा आदर सत्कार करे। उसी तरह से प्रकृति भी मनुष्य से ये चाहता है कि मनुष्य मेरे साथ आदर से बर्ताव करे । बदले में प्रकृति किसी लाभ के मनुष्य को जीवनभर फ्री में सेवा करता रहेगा। अतः प्रकृति को जीवंत रखे उसका ख्याल रखें । वो आपको हमेशा किसी लाभ के आपके लिए काम करता रहेगा।
अब कहानी आगे ले चलते है।
रामलाल की एक शब्जी की दुकान है। उसके घर में दो बच्चे और एक पत्नी है। रामलाल अभी युवा है। शब्जी की दुकान से जो कमाई होती है उससे उसके घर का चूल्हा चौका चलता है। राम लाल एकदम की बहुत ईमानदार और मेहनती आदमी है। वो बहुत दयालु भी है।
मनुष्य का शरीर प्रकृति का दिया हुआ अनमोल वरदान है। इस वरदान सही रख रखा नहीं होता है तो प्रकृति उसका हिसाब भी ले लेती है। इसी का कुछ हिसाब था कि राम लाल की दूर की दृष्टि कुछ खराब हो गया था।
हमारे समाज परिवार या देश विदेश में हरेक जगह सभी तरह के लोग रहते है। उसमें अमीर या गरीब या महा गरीब लोग भी रहते है। इसमें कुछ लोग महा मेहनती और दूर की दृष्टि रखने वाले भी होते है। पर समय की दीमक के साथ टूटने लगते है। पर समाज में या प्रकृति में जो उस बुझते हुए दिए को जला दे वो महा परोपकारी या पुण्यात्मा है। उसी तरह का ख्याल और कर्मों के मालिक रामलाल जी थे।
रामलाल जी के पास प्रकृति ने एक शब्जि की दुकान के अलावा कुछ और न दिया था। पर प्रकृति ने उन्हें बहुत बड़ा दिल दिया था जो बहुत सारे अमीरों के पास न था।
एक गरीब परिवार का लड़का था जो बाहर किसी शहर में अपनी पढ़ाई करने गया हुआ है।
छात्र जीवन तो सभी लोग जानते है। ये वो जीवन होता है जहां लोग अपने जीवन का बेहतरीन शिक्षा प्राप्त करता है। चाहे वो पैसे का हो या सामाजिक या व्यवहारिक ज्ञान। इसी भट्टी में पककर छात्र सोना रूपी अपना जीवन को चमकाने लग जाता है। जो इस भट्टी में जितना पकता है उसमें उतना निखार आता है।
रोहन भी किसी शहर में गया हुआ है। अपनी जीवन की नई उम्मीद को तराशने के लिए।
रोहन रोज शाम को रामलाल की शब्जी की दुकान से कुछ हरि शब्जी और आलू प्याज लेता है। और अपनी जीवन को तराशने में लगा हुआ है।
कही किसी तरह की वेकेंसी यदि निकलती है तो छात्र के जीवन में एक नई उम्मीद जग जाता है। वो अपनी मेहनत अपनी क्षमता से 100 गुना करना शुरू कर देता है।
कही पुलिस की वेकेंसी निकली है। रोहन भी अपनी तैयारी तेज कर देता है। पर रोहन के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उसके घर से पैसा नहीं मिलता है।
रोहन रोज की तरह आज शाम को भी रामलाल की दुकान पर जाता है। रामलाल से रोहन कहता है कि चचा आलू दे दीजिए। इसपर रामलाल जी कहते है कि बेटा तुम तो रोज आलू के साथ हरि शब्जी भी ले जाते थे पर आज क्या हुआ। इसपर रोहन अपनी सारी बात कहता है। वो ये भी कहता है कि पुलिस वेकेंसी निकली है । पर मैं क्या करूं। इसपर रामलाल कहते है कि बेटा तुम चिंता मत करो आयो मेरे साथ खाना खाओ। मै घर से हरि शब्ज़ी रोटी दाल और चावल लाया हु। खाली आलू की शब्जी खाकर पुलिस की तैयारी कैसे करोगे । रामलाल रोहन को खाना खिलाते है और कहते है शान की चिंता मत करना। शाम को भी मेरे साथ दुकान पर आकर खाना खा लेना। तुम सिर्फ अपनी पुलिस की तैयारी पर ध्यान दो। समय बीतता गया। रोहन को पुलिस की नौकरी लग गई। वो अचानक अब रामलाल जी की पास अब आना बंद कर दिया । पर राम लाल जी अपनी दिनचर्या अपनी शब्जी की दुकान से चलाते रहे। अब धीरे धीरे उनकी उमर आगे चलनी लगी और वो बुजुर्ग हो गए।
रोज की तरह आज भी रामलाल जी अपनी शब्जी की दुकान पर बैठे थे। कोई कस्टमर नहीं था। अब उनकी दूर की दृष्टि खराब हो गई थी।
एक कस्टमर दूर से ही कहता है कि मुझे एक को आलू दे दीजिए। रामलाल जी एक किलो आलू कस्टमर को दे देते है। पर कस्टमर कहता है कि मुझे पकी पकाई शब्जी चाहिए। इसपर रामलाल जी कहते है कि बेटा शब्जी की दुकान पर पकी पकाई शब्जी कौन बेचता है। इस पर कस्टमर कहता है कि नहीं चाचा आप तो पहले रखते थे। हमने आपके यहां खाई है।
अब रामलाल जी को संदेह होता है। रामलाल जी कहते है कि बेटा मेरा दूर की दृष्टि खराब है। तुम कौन हो। अब रोहन रामलाल जी के नजदीक जाता है और रोहन बोलता ही की पहचानो चाचा मैं रोहन। रोहन चाचा के सामने पुलिस की बर्डी में खरा था।
रोहन रामलाल चाचा को पैर छू कर आशीर्वाद लेता है। बहुत सारी बातें होता है। रोहन अब बहुत सारी हरि शब्जी चाचा से खरीदता है। रोहन चाचा को कहता है कि चचा इन हरि शब्जी का पैसा मेरे घर आकर ले लीजिएगा। मेरी पत्नी आपको और आपके परिवार को मेरे घर खाने पर बुलाई है। रोहन की पोस्टिंग अब इसी शहर में हो गया था। अब वो पुलिस इंस्पेक्टर के पद पर तैनात था।
इतने दिनों में रोहन के माता पिता गुजर चुके थे। रामलाल और उसका परिवार रात्रि के खाने पर रोहन के पास जाते है। खाना खाते है। बहुत सारा बात होता है। अब रामलाल जी कहते है कि बेटा अब मैं घर चलता हु। इस पर रोहन कहता है कि कौन सा घर चाचा अब यही आपका घर है। आज से अपलोग मेरे माता पिता है और यही रहेंगे। अब सब लोग रोहन के यहां ही रहने लगे। रामलाल चाचा कहते है रोहन से की बेटा मेरा दूर की दृष्टि खराब है पर दूरदृष्टी बहुत अच्छी है वो मै बहुत पहले ही देख लिया था तेरा छिपा हुआ टेलेंट। दूर की दृष्टि खराब होना अलग है और दूरदृष्टी अलग।
शिक्षा :-
आज जहां मनुष्य के गिरते मूल्य में संस्कार और हितकारी बनना दूर होता चला जा रहा है। थोड़ा कुछ पाकर ही मनुष्य अपने आप को मानव के अपने गुण को अलग थलग रख कर जहां दोस्त दोस्त को, पड़ोसी पड़ोसी और न जाने कितने लोग एक दूसरे को नहीं पहचान पा रहे है। वहीं रोहन और रामलाल चाचा जैसे भी लोग है जो एक मिसाल पेश कर रहे है। अतः मनुष्य को अपने अंदर की सारी बीमारी रूपी अहंकार को दूर कर अपना जीवन समाज कल्याण या मानव कल्याण में भी योगदान देना चाहिए। भले ही आपका दूर की दृष्टि खराब हो गया हो पर दूरदृष्टी बने।
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