साहब जी

इस कहानी का किसी जीवित या मृत या जाती धर्म या सम्प्रदाय या क्षेत्र से कोई संबंध नहीं है। कहानी के सिर्फ पात्र है। ये कहानी सिर्फ शिक्षा या मनोरंजन के लिए बनाया गया है।

मनुष्य का जीवन खट्टे मीठे उतार चढ़ाव उत्थान पतन के साथ चलता रहता है।

गुरुकुल या शैक्षणिक संस्थान का भी नियम है कि जो छात्र जितना मेहनती और ईमानदार होगा उसका गुरु उससे उतना ही कठिन प्रश्न करता रहेगा। इसपर कभी कभी मेहनती छात्र अपने गुरु से बोल भी देता है कि महोदय सिर्फ आप मुझसे ही कठिन प्रश्न पूछते है। बाकी से नहीं पूछते है। पर गुरु तो प्रकृति का अनुपम वरदान है मावव के लिए। गुरुजी मौन हो जाते है और अपने मेहनती छात्र से कठिन से कठिन प्रश्न पर प्रश्न पूछते रहते है। उन्हें पता है कि यही आदमी है जो इस कठिन प्रश्न का जवाब कही से लेकर देगा।

निकम्मों का जिंदगी तो दूसरे की बुराई करने में ही निकल जाता है।

ऊपर वाला या आपका गुरु को पता है यही वो मेरा शिष्य या छात्र है जो किसी भी स्थिति में सभी परेशानी से ऊपर उठकर समाज या प्रकृति में आईना दिखा सकता है। इसे ही अपना ज्ञान रूपी अनमोल खजाना को सौंपना है।

प्रकृति या ऊपर वाला या आपका गुरुजी आपको काफी कष्ट देगा । आपको कर्म या तपस्या रूपी आग की भट्टी में तपाएंगे। आपको बहुत कष्ट होगा। आप इन लोगों को बहुत बुरी नजर से देखेंगे । आप इनलोगों को बोलेंगे कि हे प्रकृति या हे गुरु जी या हे ऊपर वाला आप मुझे इतना कष्ट क्यों दे रहे है। पर इन लोग आपकी बात नहीं सुनेंगे। क्योंकि आपको आग रूपी जीवन में तपाकर २४ कैरेट सोना जो बनाना है। यदि आप भी इस तरह से अपने जीवन में गुजर रहे है तो समझे कि आप २४ कैरेट सोना बन रहे है।

आप लोग कहेंगे कि कहानी कम पकाता जाता है। पर इसका भी कारण है आप लोग जानते होंगे।

साहब जी की कहानी में गुरु जी या प्रकृति या ऊपर वाला कहा से आ गया भाई।

गुरु जी की महिमा तो सभी लोको में सभी जगह प्रकृति में या ब्रह्मांड से सभी जगह है। गुरु जी तो सभी जगह सम्मान प्राप्त है। एक दोहा है:-

गुरु गोविंद दोनों खरे है काके लागू पाई। बलिहारी गुरु अपना गोविंद दियो बताए।

मनुष्य को तो ये भी पता नहीं होता है कि किस रूप ऊपर वाला आपके पास आ जाएगा आप पहचान भी नहीं पाएंगे। पर गुरुजी की असीम कृपा से या उनकी पारखी नजर से आपको बता देंगे कि ऊपर वाला या प्रकृति आपके सामने खड़ा है। उनका आशीर्वाद ले और मानव विकास को अगसर करे। यही तो जीवन है।

अब मूल कहानी की तरफ आप लोगो को ले चलते। यदि आपको मेरी कहानी में पक रहे है तो सुधार करने का तरीका बताए। मै आपका आभारी रहूंगा। उसपर सुधार करने की कोशिश करूंगा। आप लोग मेरे लिए ऊपर वाला है या प्रकृति है।

मूल कहानी अंत में सुनाता हु। अभी एक अलग कहानी पर चलते है।

एक बहुत बड़े साहब जी थे। बहुत बड़े अधिकारी थे। उनका रुतबा मान सम्मान पूरे प्रकृति में में या यू कहे कि पृथ्वी पर फैला हुआ था। बहुत ही दयालु ईमानदार थे। अपने सेवा के दौरान बहुत लग्न के साथ कम किए। दिन भर सेवा का काम करते मतलब ड्यूटी करते और शाम को थक हारकर अपने घर आराम करते। ये दिनचर्या थी। बाकी किसी से कोई लेना देना नहीं था। कभी कोई प्रकृति या समझ या परिवार के लोग आए तो मिल लिए बात कर लिए। बाकी किसी से कोई लेना देना नहीं था। उन्हें किसी की बात अच्छी नहीं लगती थी क्योंकि साहब जी ज्ञाता जो थे। उन्हें अपने बच्चों और पत्नी के अलावा किसी को परिवार नहीं मानते थे। सभी करते है अपने पत्नी बच्चों के लिए इसमें कोई अलग बात न थी।

साहब जी अपने ऑफिस में रहते तो कई तरह के नौकर चाकर दिन भर उनकी सेवा में लगा रहता था। दिनभर साहब जी कया पानी पियेंगे कया चूस पियेंगे कया नाश्ता करेंगे पूरा खयाल रखा जाता। शाम को घर आते तो बहा भी दो तीन नौकर साहब जी पाल रखे थे। नौकर चाकर साहब जी का काफी ख्याल रखता था।

धीरे धीरे साहब जी की आदत खराब हो गई। उनके टेबल पर यदि एक हाथ की दूरी पर भी ग्लास का पानी रखा हो और साहब जी को प्यास लगी हो तो नौकर पानी का ग्लास लाकर देगा तो हो साहब जी पानी पी पाएंगे। नहीं तो साहब जी बोलेंगे कि सभी निकम्मा हों गया है चाहे बाकी लोग कही किसी कम में व्यस्त हो।

खैर साहब जी अपने बच्चों को बहुत ही अच्छी परवरिश कर अच्छी शिक्षा दिए और उनका बच्चा उनसे भी बहुत बड़ा अधिकारी बन गया। बहुत बड़ी कंपनी में बहुत बड़ा ऑफिसर बन गया।

दोनों लड़कों का अब विवाह लायक उमर हो गया था तो अब उनकी शादी विवाह भी करना था। बहुत सुखी सम्पन्न घर में दोनों बच्चों की शादी हो गई।

साहब जी की पास पैसों की तो कोई कमी नहीं थी। अतः दोनों बच्चों को एक साथ शादी विवाह बहुत ही धूम धाम से किए। इए तरह की शादी आमतौर पर कही देखने को नहीं मिलती है। शादी में क्या नहीं था। एक एवं आदमी के परिकल्पना के बाहर था। बहुत ही खाश मेहमान आए थे। तरह तरह के लजीज पकवान बने थे। सभी आगंतुक के लिए अलग अलग तरह का उपहार दिए। लगभग कई दिनों तक इस शादी की चर्चा चलता रहा।

साहब जी रिटायर होकर रह रहे थे। एक नौकर वाकी अब रह गया था। दोनों की शादी एक साथ हुई थी तो दोनों बच्चे अब हनीमून पर जाना चाह रहे थे। पर प्रकृति या ऊपर वाला कौन जनता है। कब कौन सा खेल खेल जाए। साहब जी को लकवा मर दिया। अच्छे खासे साहब जी अब लाचार हो गए। इलाज भी बच्चे कराए पर डॉक्टर ने जजब दे दिया की साहब जी अब बेड पर ही रहेंगे। अब उनकी आवाज भी  आही निकल पाता था। बच्चों की हनीमून पर जाना था तो सोचा कि नौकर को सारी जिम्मेदारी सौंप कर हनीमून से आता हु। साहब जी एक कमरे थे जो हिल भी नहीं पाते थे नहीं बोल पाते थे नहीं खाना खा पाते थे। एक किचन एक साहब जी का कमरा और एक नौकर का कमरा छोड़कर बाकी में ताला लगा दिया गया और नौकर को कुछ पैसे देकर दोनों बच्चे हनीमून पर चले गए की नौकर है ही साहब जी की देखभाल करते रहेंगे तब लौटकर आकर फिर देखते है कया करना है।

प्रकृति या ऊपर वाला का करिश्मा भी अलग होता है। प्रकृति या ऊपर वाला अपना अलग राग अलापता है। उसके सामने सबकी लीला फीकी पर जाती है।

[12/9, 20:58] शैलेन्द्र कुमार वर्मा: सुबह साहब जी के नाश्ते के लिए उनका नौकर बाजार समान लाने जाता है। रोड पर साहब जी के नौकर का एक्सिडेंट हो जाता है । आस पास के लोग सरकारों हॉस्पिटल में उसे एडमिट कर देते है। वह लगभग तीन महीने तक icu में भर्ती रहता है।

उधर साहब जी के दोनों बच्चे हनीमून की लंबी टूर पर है। उनका नौकर icu में भर्ती है।

साहब जी जो हिल भी नहीं पा रहे थे उनकी आवाज भी नहीं निकल पा रही थी। कोई आ जा भी नहीं रहा था तो आप लोग समझ सकते है कि क्या ही होगी। मुझे हिम्मत नहीं है कहानी में बताने की।

पूरे तीन महीने बाद बच्चे वापस आते है। सब दरवाजा खोलते है भी साहब जी को खोजते है। पर साहब जी तो तीन महीने पहले ही गुजर गए थे। कया हालत हुए होंगे। कया उनपर बीती होगी। ये बयान करना मुश्किल है।

अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ एक संस्कार भी दीजिए। आज मानव कही न कही हम हो या आप ही एक अच्छी संस्कार विहीन होता चला जा रहा है और मानव मूल्य कम होता जा रह है। अतः मानव चकाचौंध जीवन से ऊपर उठकर आगे हाथ बढ़ा कर फिर से मानव से अपने मूल्य में फिर से स्थापित आज करने की जरूरत है। मानव सामाजिक बनो।

अब इस कहानी को यही खत्म करता हु। मूल कहानी की तरफ चलते है।

एक दूसरे साहब जी है। ये अलग तरह का साहब जी है। ये कोई अधिकारी नहीं है। इनका पुरखों का मिला हुआ बहुत सारा खेती बारी का मालिक है। इनका कई एकड़ जमीन है। उनका ये मालिक है। पुरखों का मिला बहुत सा खजाना यानी सोना चांदी है।

इनका पूरे इलाके में काफी मान सम्मान है। ये काफी दयालु और नेक भी है। दरिया दिल इंसान भी है।

सुबह नौ दस बजे आराम से सो  कर उठते है। क्रिया कर्म से निपटकर स्नान बगैरह करते और  फिर तरह तरह का नाश्ता करते और भीड़ आराम करते।

 सुबह से ही इनके नौकर चाकर खेतों में जाकर काम करना शुरू कर देते। इन नौकरों की देखभाल के लिए एक मुंशी भी इनके यहां था जो का हिसाब किताब और सारे नौकरों को देखता था।

साहब जी कभी भी खेत पर घूमने नहीं जाते थे। सभी उनका मुंशी देखता था।

साहब जी का बहुत बड़ा सा हॉल था । उसमें नाश्ते के बाद बैठते थे। आप पड़ोस के काफी लोग उस हॉल में आकर बैठते थे। काफी बातों पर चर्चा होता था। फिर शेरों शायरी होती। लोग काफी आनंद का अनुभव करते थे। दोपहर में काफी तरह का पकवान बनता और कुछ खास लोग साहब जी के साथ पकवानों का लुत्फ उठाते थे।

फिर हॉल में लोग इकठ्ठा होते। फिर से शेरों शायरी होती। अब शाम हों गया है। शाम को फिर से कई तरह का नाश्ता और चाय का इंतजाम होता और फिर रात को डिनर होता और इस तरहबसे दिनचर्या चलता रहता था।

साहब जी के दो लड़के थे। इनकी भी दिनचर्या कुछ खास नहीं था।इन्हें पढ़ने के लिए कई विद्यालय में भेजा गया पर कुछ खास शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए। विद्यालय से भाग कर दिन भर गिल्ली डंटे खेलते और शाम को घर आ जाते। विद्यालय से कोई शिकायत आती तो साहब जी बोलते की पढ़ कर कया करेगा। इतना सता धन दौलत है इसे ही तो देखना है। इलाके के लोग भी इनकी है में है मिलाते। कुल मिलकर साहब की का लड़का दोनों अनपढ़ रह गया।

समय का पहिया इसी तरह से चलता रहा। सब ठीक ठाक चल रहा था। पर समय अपनी गति से चलता रहता है। मानव को समय की गति के साथ चलना पड़ता है। जो जीव जंतु या मनुष्य बदलते परिवेश में अपने आप को नहीं परिवर्तित कर पाए उसे समय ने खत्म कर दिया या समय ने परिवर्तित कर दिया। समय ने बड़े बड़े शूर बीर को मिट्टी में मिला दिया या धरातल से आसमान की ऊंचाई तक पहुंचा दिया। यही समयबकी महिमा है।

साहब जी के खेतों में पैदावार तो बहुत होती पर अब समय के साथ उनके घर कम आने लगी। धीरे धीरे उनका इनकम का स्रोत कम होता जा रहा है। समय चलता जा रहा है।

जब आदमी का इनकम का स्रोत कम होता हैं तो आदमी बहुत कुछ अपने आप में बदलाव करता है । लेकिन साहब जी अपने आप में कुछ बदलाब करने की मूड में नहीं थे। सब कुछ वैसा ही चल रहा था।

अब साहब जी का इनकम का स्रोत लगभग न के बराबर हो गया। साहब जी को लगा कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा। पर कोई भी चीज जब डिरेल हों जाता है तो उसे फिर से अपने सही समय पर लाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। पर साहब जी कहा मेहनत मशक्कत करने वाले।

साहब जी अब अपनी पुश्तैनी जमीन बेचना शुरू कर दिए। इनका मानना था कि थोड़ा जमीन बेच देंगे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

ये शिलशिला लगातार कई बरसों तक चलता रहा। साहब जी जमीन बेचते रहे और आराम से जीते रहे। अब उनका सारा जमीन बिक गया। अब कोई नौकर भी नहीं था। अब हॉल में कोई आता जाता नहीं था।

साहब जी के पास कई किलो सोना और चांदी पुश्तैनी रखी थी। अब उनका ध्यान उधर जाता है। अब धीरे धीरे अपनी पुश्तैनी जेवरात बेचना शुरू किए। ये शिलशिला भी कई बरसों तक चलता रहा। उनका बच्चा  भी इसी माहौल में पलटा बढ़ता रहा और अब वो भी जवान हो गया है।

साहब जी का पुश्तैनी जेवरात भी सभी बिक गए। अब उनका पुश्तैनी मकान बचा है।

ऊपर वाला या प्रकृति ने मनुष्य या पशु पक्षी को एक भूख नामक बीमारी भी दिया है ताकि मनुष्य होन्य पशु पक्षी अपना पेट पालने के लिए कुछ कर्म कर ले। नहीं तो पूरा ब्रह्मांड ही निकम्मा बैठा रहेगा। कोई कर्म करेगा ही नहीं। एक कहावत भी है कि कर्म प्रधान विश्व करी राखा।

अब साहब जी अपनी पुश्तैनी मकान भी बेच देते है। कुछ दिन कही बाहर रहकर गुजारा करते है। अब वो पैसा भी साहब जी का खत्म हो जाता है।

 जो लोग साहब जी का दरियादिली का मिशेल दिए नहीं थकते थे अब वो लोग साहब जी के आसपास भी नहीं फटकते है। कोई उनसे बात नहीं करता है। इनके रास्ते से लोग कन्नी काटकर निकल जाते।

जब समय आपका ठीक है तो हजार दोस्त मिल जाएंगे । पर समय खराब हो तो कोई दोस्त नहीं रह जाता है।

आप लोग खुद ही सोच लीजिए कि साहब जी अब कया कर रहे होंगे। ये मुझे बताने की जरूरत नहीं है।

शिक्षा:-

आज ऊपर वाला या प्रकृति या ब्रह्मांड मनुष्य से एक उच्च शिक्षा के साथ में अच्छा संस्कार की भी उम्मीद कर रहा है। अतः हम सभी मानव को बढ़ते हुए मानव के पैर जो चांद पर भी जा  रहा है उसे एक अच्छे संस्कार देने की भी जरूरत है

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