आधुनिक भारत का बजट: ब्रिटिश काल से डिजिटल युग तक

परिचय (INTRODUCTION):-

भारत का बजट हमेशा से हमारे देश के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। बजट केवल एक आर्थिक दस्तावेज नहीं, बल्कि यह देश के विकास की दिशा, सरकार के निर्णयों और जनकल्याण के प्रयासों का प्रतिबिंब भी है। यह यात्रा 1860 के दशक में ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुई थी और आज के डिजिटल युग में इसने कई मील के पत्थर तय किए हैं। इस लेख में हम भारत के बजट के ऐतिहासिक सफर को विस्तार से देखेंगे, जो ब्रिटिश काल से लेकर डिजिटल युग तक फैला हुआ है।

ब्रिटिश काल: भारतीय बजट की शुरुआत (BRITISH ERA: BEGINNING OF INDIAN BUDGET):-

ब्रिटिश शासन में भारत का बजट पूरी तरह से ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में था। 1860 में, भारत में ब्रिटिश शासकों ने एक केंद्रीय बजट पेश किया, जिसे भारत के पहले बजट के रूप में देखा जाता है। इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ब्रिटिश साम्राज्य के हितों के तहत संचालित हो रही थी। अधिकांश आय ब्रिटिश शासकों के लिए होती थी और भारतीयों के कल्याण के लिए कम ही बजट का प्रावधान किया जाता था।

ब्रिटिश सरकार का मुख्य उद्देश्य भारत से अधिकतम राजस्व प्राप्त करना था, जबकि भारतीय समाज की स्थिति को ध्यान में नहीं रखा जाता था। इस दौरान भारतीय कृषि, उद्योग और सामाजिक कल्याण की स्थिति बहुत खराब थी, और बजट में इन क्षेत्रों के लिए पर्याप्त आवंटन नहीं किया जाता था।

मुख्य बिंदु:-

भारत में ब्रिटिश काल में बजट का आरंभ

भारतीय समाज के लिए सीमित बजट आवंटन

ब्रिटिश नीतियों का बजट पर प्रभाव

स्वतंत्रता के बाद:

आर्थिक पुनर्निर्माण की दिशा में पहला कदम (POST-INDEPENDENCE: THE FIRST STEPS TOWARDS ECONOMIC RECONSTRUCTION):-

1947 में स्वतंत्रता के बाद, भारतीय नेतृत्व को एक नई दिशा में चलने की आवश्यकता थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का सबसे बड़ा लक्ष्य भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था को पुनर्निर्माण करना था। इस दिशा में सबसे पहला कदम था, 1950 में पेश किया गया पहला स्वतंत्र भारत का बजट। इसे मुरारजी देसाई ने पेश किया था।

इस बजट का मुख्य उद्देश्य था:-

अर्थव्यवस्था को स्थिर करना, बेरोज़गारी को कम करना और देश के सामाजिक-आर्थिक ढांचे में सुधार लाना। भारत के आर्थिक विकास के लिए कृषि और उद्योग क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया। हालांकि, भारत की अर्थव्यवस्था काफी कमजोर थी और सीमित संसाधनों के कारण सरकार को कई कठिन फैसले लेने पड़े।

मुख्य बिंदु:-

स्वतंत्रता के बाद के आर्थिक चुनौतियाँ

पहले बजट में कृषि और उद्योग के लिए आवंटन

सीमित संसाधनों के बावजूद प्रयास

1970-80 के दशक: औद्योगिकीकरण और सामाजिक कल्याण के उद्देश्य (1970S-80S: INDUSTRIALIZATION AND SOCIAL WELFARE):-

1970 और 1980 के दशक में भारत में औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया तेज हुई। औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए बजट में विशेष प्रावधान किए गए। इस समय तक भारतीय अर्थव्यवस्था ने खुद को काफी हद तक आत्मनिर्भर बना लिया था, लेकिन अभी भी कई क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता थी।

इस दौर में, सरकार ने योजना आयोग के माध्यम से विभिन्न योजनाओं की शुरुआत की, जिनमें शहरी और ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक कल्याण को प्राथमिकता दी गई।

मुख्य बिंदु:-

औद्योगिकीकरण की दिशा में बजट की भूमिका

योजना आयोग का बजट में योगदान

शहरी और ग्रामीण विकास योजनाएं

1991 का आर्थिक सुधार:-

उदारीकरण, वैश्वीकरण और बजट की नई दिशा (1991 ECONOMIC REFORMS: LIBERALIZATION, GLOBALIZATION, AND THE NEW BUDGETARY APPROACH)

1991 में, भारत ने एक ऐतिहासिक आर्थिक सुधार शुरू किया, जिसे “उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण” (LPG REFORMS) कहा जाता है। इस समय के बजट में बड़े बदलाव हुए, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में शामिल करने के उद्देश्य से किए गए थे।

मनमोहन सिंह ने 1991 में अपनी बजट पेश किया, जिसमें उन्होंने आर्थिक सुधारों की दिशा में कई अहम कदम उठाए। विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए टैरिफ दरों को घटाया गया, और भारतीय उद्योगों को खुला प्रतिस्पर्धा देने के लिए कई संरचनात्मक परिवर्तन किए गए।

मुख्य बिंदु:-

1991 के सुधारों का बजट पर प्रभाव

वैश्वीकरण और विदेशी निवेश का स्वागत

भारतीय उद्योगों की खुली प्रतिस्पर्धा

2000 के दशक:

सूचना प्रौद्योगिकी और डिजिटल युग का प्रारंभ (2000S: THE RISE OF INFORMATION TECHNOLOGY AND THE BEGINNING OF THE DIGITAL ERA)

2000 के दशक में भारत में सूचना प्रौद्योगिकी का क्रांतिकारी विकास हुआ। सूचना प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के क्षेत्र में हुए बदलावों ने भारत के बजट को नई दिशा दी। इसके अलावा, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं का डिजिटलीकरण भी हुआ, जिससे बजट की प्रक्रिया और भी पारदर्शी और सुलभ हो गई।

इस समय के बजट में, सरकार ने न केवल औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भी विशेष प्रावधान किए।

मुख्य बिंदु:-

सूचना प्रौद्योगिकी का बजट पर प्रभाव

डिजिटल और वित्तीय संस्थाओं का डिजिटलीकरण

शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में निवेश

वर्तमान स्थिति:

डिजिटल बजट और स्मार्ट शासन (CURRENT STATUS: DIGITAL BUDGET AND SMART GOVERNANCE)

आज के समय में, भारत ने डिजिटल बजट पेश करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। 2024 में, भारत ने पहला पूरी तरह से कागज रहित डिजिटल बजट पेश किया, जिसमें न केवल पारदर्शिता को बढ़ावा मिला, बल्कि आम नागरिकों के लिए बजट की जानकारी को और अधिक सुलभ बनाया गया।

आजकल का बजट डिजिटल प्लेटफार्म पर पूरी तरह से निर्भर है, जिसमें तकनीकी उपकरणों का उपयोग किया जाता है ताकि इसे सही तरीके से प्रस्तुत किया जा सके। स्मार्ट शासन की ओर बढ़ते हुए, सरकार बजट के माध्यम से जनकल्याण योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू कर पा रही है।

मुख्य बिंदु:-

कागज रहित डिजिटल बजट

स्मार्ट शासन और पारदर्शिता

जनकल्याण योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन

निष्कर्ष:

बजट की ऐतिहासिक यात्रा (CONCLUSION: THE HISTORICAL JOURNEY OF THE BUDGET)

भारत का बजट केवल एक आर्थिक दस्तावेज नहीं, बल्कि यह भारतीय समाज की संघर्षों और प्रयासों का प्रतीक है। ब्रिटिश काल से लेकर आज के डिजिटल युग तक, यह प्रक्रिया न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था के उत्थान में सहायक रही है, बल्कि यह हमारे सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों को भी दर्शाता है।

आज के भारत में बजट केवल सरकार की वित्तीय नीतियों का प्रतिबिंब नहीं, बल्कि यह देश के नागरिकों की जीवनशैली, उनके कल्याण, और राष्ट्र के भविष्य की दिशा का निर्धारण करता है।

मुख्य बिंदु:-

बजट की ऐतिहासिक यात्रा

बजट का आर्थिक और सामाजिक महत्व

भविष्य में बजट की प्रक्रिया

ब्रिटिश काल: बजट का प्रारंभ (BRITISH ERA: BEGINNING OF THE BUDGET)

भारत में बजट की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी। हालांकि भारतीय उपमहाद्वीप में वित्तीय प्रबंधन और आर्थिक नीति के बारे में प्राचीन काल से कई विवरण मिलते हैं, लेकिन आधुनिक बजट प्रणाली का आरंभ ब्रिटिश शासकों के तहत हुआ। यह न केवल ब्रिटिश शासन के आर्थिक दृष्टिकोण को दर्शाता था, बल्कि भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था पर उनके नियंत्रण को भी स्पष्ट रूप से प्रकट करता था।

भारतीय बजट का पहला साल: 1860:-

भारत में बजट का इतिहास 1860 में शुरू हुआ, जब ब्रिटिश सरकार ने औपचारिक रूप से केंद्रीय बजट पेश किया। यह बजट भारत के वित्तीय प्रबंधन की पहली आधिकारिक कड़ी थी, जो ब्रिटिश साम्राज्य की वित्तीय नीतियों के अनुरूप थी। ब्रिटिश शासन ने भारतीय उपमहाद्वीप की अर्थव्यवस्था को अपने साम्राज्य के आर्थिक हितों को प्राथमिकता देने के लिए संरचित किया था और बजट इसे लागू करने का मुख्य औजार था।

1860 के बजट में महत्वपूर्ण विशेषताएँ:-

वित्त मंत्री का कार्य:-

1860 में भारत के पहले वित्त मंत्री, जेम्स विल्सन ने भारतीय बजट पेश किया। जेम्स विल्सन ने यह बजट ब्रिटिश साम्राज्य के हितों के लिए प्रस्तुत किया था, और यह भारतीय प्रशासन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।

राजस्व की प्रमुख स्रोत:-

इस बजट का मुख्य उद्देश्य भारत से ब्रिटिश सरकार के लिए राजस्व जुटाना था। ब्रिटिश साम्राज्य ने भारतीय भूमि से विभिन्न करों (जैसे भूमि कर, आयकर) के माध्यम से राजस्व जुटाने के उपायों की शुरुआत की थी।

कस्टम ड्यूटी और आयातनिर्यात नीति:-

ब्रिटिश काल में भारत में कस्टम ड्यूटी पर विशेष ध्यान दिया गया। कस्टम ड्यूटी भारत से ब्रिटिश साम्राज्य के लिए अधिक राजस्व उत्पन्न करने का एक प्रमुख तरीका था। इसके तहत, भारत में आयात और निर्यात की नीतियाँ ब्रिटिश व्यापारिक हितों को ध्यान में रखते हुए बनाई गईं।

भारतीय समाज पर प्रभाव:-

ब्रिटिश काल में बजट का उद्देश्य भारतीय समाज के कल्याण से अधिक ब्रिटिश साम्राज्य के आर्थिक लाभ को बढ़ाना था। भारतीय समाज में उस समय अत्यधिक गरीबी थी, और ब्रिटिश शासन ने सामाजिक कल्याण के लिए बजट में पर्याप्त प्रावधान नहीं किए थे। भारत में कृषि और उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुए थे, और आर्थिक संसाधनों की कमी थी। फिर भी, ब्रिटिश सरकार ने अपने खर्चे को प्राथमिकता दी और राजस्व की एक बड़ी राशि को अपने साम्राज्य की अन्य हिस्सों में भेजा।

भारत के लिए बजट का प्रभाव:-

भारत में कल्याणकारी योजनाओं की कमी:-

ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई विशेष बजट आवंटन नहीं था। ब्रिटिश शासन का मुख्य ध्यान केवल उपनिवेशी खर्चे और साम्राज्य के लिए अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त करने पर था।

संरचनात्मक विषमताएँ:-

भारतीय समाज में आर्थिक असमानता बढ़ी क्योंकि सरकार का बजट केवल ब्रिटिश साम्राज्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए था, न कि भारतीय समाज के कल्याण के लिए। उदाहरण के तौर पर, भारतीय किसानों पर भारी कर लगाया गया था, जिससे उनकी हालत और खराब हो गई थी।

ब्रिटिश बजट के आर्थिक पहलू:-

ब्रिटिश काल में भारतीय बजट के मुख्य आर्थिक उद्देश्य थे:-

भारत से अधिकतम राजस्व संग्रहण और उपनिवेश की वृद्धि। इन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए विभिन्न कराधान नीतियाँ अपनाई गईं, जिनमें प्रमुख थे:

भूमि कर:-

भारतीय भूमि पर ब्रिटिश शासन ने भूमि कर को एक प्रमुख स्रोत के रूप में देखा। ब्रिटिश शासन ने भारतीय किसानों पर भूमि कर (जैसे ज़मींदारी प्रथा) को बहुत ही कठोर तरीके से लागू किया। इससे किसानों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ा।

आयकर:-

1860 में ब्रिटिश सरकार ने आयकर प्रणाली की शुरुआत की। हालांकि, यह प्रणाली ब्रिटिश साम्राज्य की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए थी और भारतीय जनसंख्या पर अत्यधिक बोझ डालने के लिए नहीं थी।

निर्यात शुल्क और कस्टम ड्यूटी:-

ब्रिटिश सरकार ने भारतीय उत्पादों पर भारी शुल्क लगाए थे, ताकि उन उत्पादों के निर्यात से ब्रिटेन को अधिक लाभ हो सके। इस नीति ने भारतीय उद्योगों और कारीगरी को भारी नुकसान पहुँचाया। विशेष रूप से भारत के कपड़ा उद्योग को बुरी तरह से प्रभावित किया गया था क्योंकि ब्रिटिश उद्योगों द्वारा भारत में आयातित कपड़े भेजे जाते थे।

भारतीय बजट का राजनीतिक प्रभाव;-

ब्रिटिश काल में, भारतीय बजट का राजनीतिक प्रभाव भी महत्वपूर्ण था। यह भारत के प्रशासन में ब्रिटिश सरकार की पकड़ को मजबूत करता था और भारतीय राजनीतिक नेतृत्व की शक्तियों को सीमित करता था। भारतीय जनसंख्या की बहुसंख्या को बजट प्रक्रिया में कोई वास्तविक भागीदारी नहीं थी। बजट के निर्णय केवल ब्रिटिश शासकों द्वारा किए जाते थे और भारत की आर्थिक नीतियाँ ब्रिटिश साम्राज्य के हितों के अनुसार बनाई जाती थीं।

राजनीतिक दृष्टिकोण से बजट के प्रभाव:-

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम:-

बजट के दुरुपयोग ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया। भारतीय नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों ने यह महसूस किया कि ब्रिटिश शासन भारत की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है। इसके परिणामस्वरूप, कई स्वतंत्रता सेनानियों ने भारतीय बजट में सुधार की मांग की और ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की राह पर कदम बढ़ाए।

भारतीय राजनीतिक जागरूकता:-

ब्रिटिश बजट के दुरुपयोग ने भारतीय जनता में राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा दिया। भारतीय जनसंख्या ने महसूस किया कि बजट के संसाधनों का उपयोग उनकी भलाई के बजाय ब्रिटिश साम्राज्य के हितों के लिए किया जा रहा था। इसने भारतीय राजनीति में एक नई ऊर्जा का संचार किया।

ब्रिटिश काल में बजट के प्रमुख वित्तीय निर्णय:-

ब्रिटिश काल में बजट के दौरान कुछ प्रमुख वित्तीय निर्णय लिए गए थे, जो भारतीय अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव डालने वाले थे:-

आर्थिक निर्भरता का निर्माण:-

ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से अपने साम्राज्य पर निर्भर बना दिया। भारतीय उद्योगों का विकास रोक दिया गया और भारतीय कारीगरी और वस्त्र उद्योगों को नष्ट कर दिया गया। भारत का अधिकांश उत्पादन ब्रिटेन में निर्यात किया जाता था और भारतीय बाजारों को ब्रिटिश उत्पादों से भर दिया गया था।

विकासशील बुनियादी ढांचे में निवेश की कमी:-

ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में औद्योगिकीकरण और बुनियादी ढांचे में निवेश की कमी थी। हालांकि कुछ रेलवे लाइनें और सड़कें बनाई गईं, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के आर्थिक हितों को बढ़ावा देना था, न कि भारतीय समाज के विकास के लिए।

निष्कर्ष:-

ब्रिटिश काल में भारत का बजट एक साधन था जो ब्रिटिश साम्राज्य के आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिए उपयोग किया गया था। भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था के लिए इसका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं था, क्योंकि बजट का मुख्य उद्देश्य भारत से अधिकतम राजस्व प्राप्त करना और ब्रिटिश साम्राज्य की वृद्धि को सुनिश्चित करना था। इस अवधि के दौरान बजट में कोई खास ध्यान भारतीय कल्याण पर नहीं दिया गया, बल्कि यह भारतीय समाज को उपनिवेशीकरण की चपेट में रखने का एक उपकरण था।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इस आर्थिक शोषण के खिलाफ जागरूकता बढ़ी और यह भारतीय जनमानस में एक गहरी राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता का कारण बना, जो अंततः भारतीय स्वतंत्रता की ओर एक कदम था।

स्वतंत्रता के बाद भारत के वित्त मंत्रियों द्वारा बजट प्रस्तुत करना:-

भारत में 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बजट प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को नए तरीके से स्थापित किया गया। स्वतंत्रता के बाद भारतीय सरकार ने न केवल आर्थिक प्रबंधन की दिशा तय की, बल्कि इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को भी जिम्मेदारी दी। भारत के पहले वित्त मंत्री से लेकर अब तक कई वित्त मंत्रियों ने बजट प्रस्तुत किया है, और प्रत्येक वित्त मंत्री का योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण रहा है।

यहां हम स्वतंत्रता के बाद के विभिन्न वित्त मंत्रियों और उनके द्वारा प्रस्तुत बजटों पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।:-

मुरारजी देसाई (1950-1956):-

भारत के पहले वित्त मंत्री मुरारजी देसाई थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद 1950 में पहला बजट प्रस्तुत किया। यह बजट भारतीय आर्थिक ढांचे के पुनर्निर्माण की दिशा में पहला कदम था। इस बजट में कृषि, उद्योग और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया था।

महत्वपूर्ण निर्णय:-

भारतीय समाज के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत

भारतीय रिजर्व बैंक को और अधिक स्वतंत्रता देने की दिशा में कदम

आयकर प्रणाली में सुधार की शुरुआत

मुरारजी देसाई का बजट भारतीय विकास को प्राथमिकता देने वाला था, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना था।

जवाहरलाल नेहरू (1956-1964):-

नेहरू जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, उनके शासन में आर्थिक सुधारों का सिलसिला शुरू हुआ। हालांकि वह खुद वित्त मंत्री नहीं थे, लेकिन उनके नेतृत्व में कई अहम बजट नीतियां लागू की गईं। इन बजटों का मुख्य उद्देश्य औद्योगिकीकरण, कृषि सुधार और शिक्षा में सुधार करना था।

महत्वपूर्ण निर्णय:-

औद्योगिकीकरण के लिए प्रोत्साहन

योजना आयोग द्वारा दी गई दिशा

कृषि सुधारों की शुरुआत और हरित क्रांति की नींव

टीटी कृष्णमाचारी (1964-1966):-

टीटी कृष्णमाचारी ने 1964 में वित्त मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से कई बजट निर्णय लिए। उनके कार्यकाल के दौरान भारतीय उद्योगों को और अधिक प्रोत्साहन दिया गया और विशेषकर भारी उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया गया।

महत्वपूर्ण निर्णय:-

भारी उद्योगों और सार्वजनिक क्षेत्र के विकास के लिए बजट आवंटन

विदेशी निवेश को आकर्षित करने की दिशा में कदम

इंदिरा गांधी (1966-1977, 1980-1984):-

इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था दोनों में बड़े बदलाव हुए। 1971 का बजट, जिसे इंदिरा गांधी ने प्रस्तुत किया, भारतीय समाज के सामाजिक और आर्थिक सुधारों का प्रतीक था। उनके वित्त मंत्रियों में से कुछ ने विशेष रूप से यह सुनिश्चित किया कि सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार हो और सरकारी कंपनियों का निर्माण किया जाए।

महत्वपूर्ण निर्णय:-

हरित क्रांति को बढ़ावा देने के लिए बजट में प्रावधान

सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश और राष्ट्रीयकरण की दिशा में कदम

गरीबी उन्मूलन और कल्याणकारी योजनाओं के लिए बजट आवंटन

मुरारजी देसाई (1977-1979):-

इंदिरा गांधी के शासन के बाद, मुरारजी देसाई फिर से प्रधानमंत्री बने और उन्होंने वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली। मुरारजी देसाई का बजट आम आदमी के लिए कई सुधारों का हिस्सा था। उनका लक्ष्य था कि भारतीय अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता आए और आयकर सुधार लागू किया जाए।

महत्वपूर्ण निर्णय:-

आयकर में कमी और टैक्स प्रणाली में सुधार

कल्याणकारी योजनाओं के लिए अधिक आवंटन

मनमोहन सिंह (1991-1996):-

मनमोहन सिंह भारत के सबसे महत्वपूर्ण वित्त मंत्रियों में से एक हैं। उन्होंने 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक ऐतिहासिक बजट पेश किया, जिसे भारतीय आर्थिक सुधारों का मार्गदर्शक माना जाता है। उनका बजट पूरी तरह से वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की दिशा में था। इस बजट ने भारत को एक नई दिशा में चलने के लिए प्रेरित किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक मानचित्र पर प्रमुख स्थान दिलाया।

महत्वपूर्ण निर्णय:-

आर्थिक सुधारों की शुरुआत

विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए नीतियों में सुधार

आयात-निर्यात नीति में बदलाव और आयकर दरों में कमी

मनमोहन सिंह के बजट ने भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में शामिल किया और भारतीय बाजारों में विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया।

पी चिदंबरम (1996-1998, 2004-2008):-

पी चिदंबरम ने भारतीय वित्त मंत्रालय में दो बार कार्य किया। उनके द्वारा प्रस्तुत बजटों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में कई प्रमुख बदलाव लाए, खासकर जब उन्होंने 2004 में UPA सरकार के तहत बजट प्रस्तुत किया। उनकी नीतियों ने कृषि, छोटे और मझोले उद्योगों, और गरीब वर्ग के लिए कई लाभकारी योजनाओं की शुरुआत की।

महत्वपूर्ण निर्णय:-

गरीबों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत

विनिवेश (प्राइवेटाइजेशन) की दिशा में कदम

नई कर सुधारों का आगमन

अरुण जेटली (2014-2019):-

अरुण जेटली ने नरेंद्र मोदी सरकार में वित्त मंत्रालय संभाला और उन्होंने बजट में कई क्रांतिकारी कदम उठाए। उनके द्वारा प्रस्तुत 2015 का बजट विशेष रूप से आर्थिक सुधारों के लिए महत्वपूर्ण था, जिसमें प्रमुख रूप से GST (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) लागू करने की दिशा में कदम उठाए गए।

महत्वपूर्ण निर्णय:-

GST को लागू करने की दिशा में कदम

डिजिटल और स्मार्ट शासन को बढ़ावा देना

कर सुधारों में उल्लेखनीय बदलाव

अरुण जेटली के कार्यकाल में भारतीय बजट में डिजिटलाइजेशन और वित्तीय समावेशन पर ध्यान दिया गया।

निर्मला सीतारमण (2019-वर्तमान):-

निर्मला सीतारमण ने 2019 में वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली और वे भारत की पहली महिला वित्त मंत्री बनीं। उनके द्वारा प्रस्तुत बजट ने कोविड-19 महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनः सुधारने की दिशा में कई योजनाओं की शुरुआत की। उनकी नीतियों में कृषि, डिजिटल अर्थव्यवस्था, और बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दी गई।

महत्वपूर्ण निर्णय:-

कोविड-19 के बाद आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए प्रोत्साहन पैकेज

कृषि और बुनियादी ढांचे के लिए बड़ी राशि आवंटित करना

डिजिटल अर्थव्यवस्था और नवाचार को बढ़ावा देना

निर्मला सीतारमण ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया और भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण पहल कीं।

निष्कर्ष”-

स्वतंत्रता के बाद से अब तक भारत के विभिन्न वित्त मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत बजटों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कई ऐतिहासिक मोड़ों पर सुधारने और सशक्त बनाने का काम किया। प्रत्येक वित्त मंत्री के बजट ने भारतीय समाज की जरूरतों और वैश्विक परिवर्तनों के अनुसार नीतियों में बदलाव लाने का प्रयास किया। अब डिजिटल युग में, बजट प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और नागरिकों के लिए सुलभ बनाया गया है, जो आगामी पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक साबित होगा।

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