परिचय:-
तारेगना, बिहार के पटना जिले में स्थित एक ऐतिहासिक कस्बा है, जो मसौढ़ी नगर परिषद के अंतर्गत आता है। यह स्थान प्राचीन काल से ही खगोलशास्त्र और विज्ञान के लिए प्रसिद्ध रहा है। कहा जाता है कि महान भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने यहीं से तारों और ग्रहों की गणना की थी, जिसके कारण इस स्थान का नाम “तारेगना” पड़ा, जिसका अर्थ होता है “तारों की गणना”।

तारेगना नाम का इतिहास:-
तारेगना नाम की उत्पत्ति इसके खगोलीय महत्व और प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्री आर्यभट्ट से जुड़े होने के कारण हुई। यह नाम दो शब्दों “तारे” (तारे) और “गना” (गणना) से बना है, जिसका अर्थ “तारों की गणना करने का स्थान” है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में आर्यभट्ट ने इसी स्थान से आकाशीय पिंडों और ग्रहों की गणना की थी, जिससे यह नाम प्रचलित हुआ।
ब्रिटिश काल में रेलवे स्टेशन की स्थापना के समय भी इस ऐतिहासिक नाम को बरकरार रखा गया, क्योंकि यह क्षेत्र खगोलशास्त्र और तारों के अध्ययन के लिए पहले से ही प्रसिद्ध था। इसके अलावा, स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, यहाँ आकाश अत्यंत स्वच्छ और स्पष्ट दिखाई देता था, जिससे लोग तारों की गणना कर सकते थे। यही कारण है कि यह नाम ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण बना रहा।
महान भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट और तारेगना का संबंध:-
आर्यभट्ट (476 ईस्वी) प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे, जिन्होंने गणित और खगोलशास्त्र के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ “आर्यभटीय” है, जिसमें उन्होंने शून्य की अवधारणा, π (पाई) का सटीक मान, और पृथ्वी की परिक्रमण गति जैसी महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी थीं। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने खगोल अध्ययन के लिए तारेगना को चुना था क्योंकि यह स्थान खगोलीय अवलोकन के लिए अत्यंत उपयुक्त था।
आर्यभट्ट: जीवन परिचय और उपलब्धियाँ:-
आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी में हुआ था। हालाँकि उनके जन्मस्थान को लेकर विवाद है, लेकिन माना जाता है कि वे पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) में अध्ययन और शोध कार्य करते थे। उन्होंने गणित और खगोलशास्त्र में कई क्रांतिकारी सिद्धांत प्रस्तुत किए। उनकी प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं:
गणितीय योगदान:-
दशमलव प्रणाली का विकास किया।
π (पाई) का सटीक मान (3.1416) निकाला।
त्रिकोणमिति की कई नई संकल्पनाएँ दीं।

बीजगणित के मूलभूत सिद्धांतों की खोज की।
वर्गमूल और घनमूल निकालने की विधियाँ प्रस्तुत कीं।
खगोलशास्त्र में योगदान:-
यह सिद्ध किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।
चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की वैज्ञानिक व्याख्या दी।
ग्रहों की गति और खगोलीय गणनाओं के सटीक नियम दिए।
उन्होंने बताया कि चंद्रमा और ग्रह सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं।
पृथ्वी और खगोलीय पिंडों की कक्षाएँ निर्धारित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आर्यभटीय ग्रंथ:-
इस ग्रंथ में 121 श्लोकों के माध्यम से गणित और खगोलशास्त्र की महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
इस ग्रंथ में बीजगणित, अंकगणित, त्रिकोणमिति और ग्रहों की चाल का वर्णन है।
उन्होंने “साइन” और “कोसाइन” जैसी त्रिकोणमितीय संकल्पनाओं को विकसित किया।

अन्य प्रमुख योगदान:-
उन्होंने ग्रहों और नक्षत्रों की गणना कर सटीक पंचांग प्रणाली विकसित की।
“कालनिर्णय” या समय मापन की विधियाँ प्रस्तुत कीं।
सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के दौरान छाया की स्थिति की गणना की।
तारेगना: खगोलीय अवलोकन के लिए आदर्श स्थान:-
तारेगना की भौगोलिक स्थिति इसे खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए विशेष रूप से उपयुक्त बनाती है। निम्नलिखित कारणों से यह स्थान खगोलीय अवलोकन के लिए महत्वपूर्ण रहा है:-
खुला और स्वच्छ आकाश:-
तारेगना क्षेत्र में ऊँची इमारतें और कृत्रिम रोशनी सीमित होने के कारण रात का आकाश स्वच्छ और स्पष्ट रहता है, जिससे खगोलीय पिंडों का अध्ययन करना आसान हो जाता है।
कम प्रदूषण:-
आज भी तारेगना क्षेत्र में वायुमंडलीय और प्रकाश प्रदूषण अपेक्षाकृत कम है, जिससे तारों और ग्रहों की गतिविधियों का अवलोकन बिना किसी रुकावट के किया जा सकता है।
भौगोलिक स्थिति:-
यह क्षेत्र गंगा के मैदानी भाग में स्थित होने के कारण खुले आकाश और विस्तृत क्षितिज का लाभ प्रदान करता है, जिससे दूरस्थ खगोलीय पिंडों को देखने में सहायता मिलती है।
प्राकृतिक ऊँचाई और समतल भूभाग:-
तारेगना क्षेत्र के आसपास ऊँचाई में हल्का उतार-चढ़ाव है, जो इसे एक आदर्श खगोलीय वेधशाला क्षेत्र बनाता है। यह भूगोल दूरबीनों और अन्य उपकरणों के लिए भी अनुकूल है।
खगोलविदों और वैज्ञानिकों का पसंदीदा स्थल:-
ऐतिहासिक रूप से, आर्यभट्ट के समय से लेकर आधुनिक युग तक, यह क्षेत्र खगोलशास्त्र प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण रहा है। 2009 में हुए पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान भी वैज्ञानिकों ने इसे ग्रहण अवलोकन के लिए सबसे बेहतरीन स्थानों में से एक माना था।
निष्कर्ष:-
तारेगना रेलवे स्टेशन और इसका क्षेत्र न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत के लिए ऐतिहासिक, खगोलीय और कृषि महत्व रखता है। ब्रिटिश काल से लेकर अब तक यह क्षेत्र परिवहन, खगोलशास्त्र और कृषि गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। यह स्थान अपने प्राचीन वैज्ञानिक धरोहर के कारण आज भी देश-विदेश के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
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